राष्ट्रीय आन्दोलन
161. मुस्लिम लीग की स्थापना
1906
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग
की स्थापना 30 दिसंबर 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वैकल्पिक राजनीतिक समूह के रूप में ढाका में की गई थी। 1906 में
नवाब ख्वाजा सलीम उल्ला खान के नियंत्रण में ढाका
नवाब परिवार के अहसान
मंजिल महल में एक सम्मेलन में हुआ था। सम्मेलन में लगभग 3000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। नवाब ने एक राजनीतिक पार्टी
बनाने का प्रस्ताव रखा, जो ब्रिटिश भारत में मुसलमानों
के हितों की रक्षा करेगी। उन्होंने
यह भी कहा कि राजनीतिक दल का नाम 'ऑल इंडिया मुस्लिम लीग' रखा जाए। हकीम अजमल
खान ने इसका समर्थन किया। प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप ढाका में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का आधिकारिक गठन हुआ। लॉर्ड मिंटो (1905-1910) मुस्लिम लीग की स्थापना के समय वह भारत का वायसराय था। तब कुछ प्रसिद्ध मुस्लिम नेताओं ने ब्रिटिश भारत में मुस्लिम हितों को सुरक्षित करने के लक्ष्य के साथ भारत के वायसराय लॉर्ड मिंटो से मुलाकात की थी।
एक और
गौर करने वाली बात यह है कि इसी वर्ष मुहम्मद अली जिन्ना ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की
सदस्यता ली। कांग्रेस के 1906 के
सम्मलेन में जिन्ना ने अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी के
निजी सचिव के तौर पर काम किया था। इस सम्मलेन में कांग्रेस ने पहली बार स्वराज्य की
मांग की थी। जिन्ना ने 1913 में इस लीग की
सदस्यता ग्रहण की। मुहम्मद अली जिन्ना 1916 में लीग के अध्यक्ष
चुने गए।
मुस्लिम
सुधारक सर सैयद
अहमद खान समकालीन मुस्लिम समुदाय के उन अग्रदूतों में से एक थे, जिन्होंने एक अलग राष्ट्र की स्थापना की
आवश्यकता महसूस की, जहाँ
प्रशासन में हिंदुओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। उन्हें एक
मुस्लिम व्यावहारिक व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। वह
मुसलमानों की शैक्षणिक और सामाजिक उन्नति चाहते थे। लेकिन उनका मानना था कि अंग्रेजों
के खिलाफ विद्रोह करने के बजाय उनके साथ गठबंधन करना समुदाय के लिए सबसे ज़्यादा
फ़ायदेमंद है। 1886 में उन्होंने मुहम्मदन एजुकेशन
असेंबली नामक एक
संगठन की स्थापना की। 20 वर्षों के बाद उनकी विचारधारा
समय के साथ अखिल भारतीय मुसलिम लीग के रूप में आकार ग्रहण की। शुरुआत में मुसलिम लीग शिक्षित
कुलीन मुसलमानों की पार्टी थी। इसका मुख्य उद्देश्य मुसलमानों के नागरिक अधिकारों को बढ़ावा देना और उन्हें
सुरक्षित करना था। मुस्लिम लीग के अन्य प्रमुख नेता थे मुस्तफा चौधरी, सैयद नबीउल्लाह, ख्वाजा सलीमुल्लाह, खान बहादुर गुलाम।
लीग का पहला अधिवेशन 1907 में कराची में हुआ था। सुल्तान मुहम्मद शाह (आगा खान तृतीय) मुस्लिम लीग के पहले मानद अध्यक्ष बने। उन्हीं दिनों संयुक्त प्रांत और अलीगढ़ के मुसलमान समूह द्वारा अलग निर्वाचक मंडल की मांग उठने लगी थी। इन लोगों ने जल्द ही मुस्लिम लीग पर भी कब्ज़ा जमा लिया। फिर काफी दिनों तक यह एक दुर्बल संगठन ही रही। दिसंबर 1907 में इसके सदस्यों की संख्या 400 थी।
1912 तक मुस्लिम लीग ने कई युवा मुसलमानों और मुस्लिम
कांग्रेस सदस्यों को आकर्षित किया। लेकिन, इन
व्यक्तियों ने कांग्रेस में अपनी सदस्यता बनाए रखी। यहाँ तक की जिन्ना ने भी
कांग्रेस की सदस्यता नहीं छोड़ी थी। प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के बाद मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन की वकालत करने के लिए कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया। 1920 में, जब सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया गया, तो मुस्लिम लीग ने असहयोग की इस नीति का विरोध किया क्योंकि उन्हें यह दृष्टिकोण बहुत कट्टरपंथी लगा। इसी वर्ष मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
1920 के दशक के अंत और 1930 के दशक की शुरुआत में जिन्ना ने भारत में मुसलमानों के अधिकारों की मांग लीग के बैनर
तले प्रस्तुत की। इनमें संघीय सरकार बनाने और केंद्रीय सरकार में मुसलमानों का एक तिहाई प्रतिनिधित्व रखने के प्रस्ताव शामिल थे। हालाकि लीग के
प्रारंभिक वर्षों में भारतीय मुसलमानों के मन में देश के विभाजन की बात नहीं थी, फिर भी 1930 के बाद यह
विचार सामने आया।
1937 में चुनावों से पहले, जिन्ना ने मुस्लिम लीग के साथ सत्ता-साझाकरण समझौता तैयार करने के लिए कांग्रेस से संपर्क किया। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया और प्रांतीय सरकारों के गठन में मुस्लिम लीग को शामिल नहीं किया।
जब ब्रिटेन ने 1939 में जर्मनी के साथ युद्ध की घोषणा की तो मुस्लिम लीग ने स्वतंत्रता के लिए बातचीत करने के लिए बेहतर लाभ प्राप्त करने की उम्मीद में युद्ध में भारत की भागीदारी का समर्थन करने पर सहमति व्यक्त की। जिन्ना के
नेतृत्व में पार्टी ने 1940 के दशक
में पाकिस्तान के लिए अभियान चलाया।
1940 में, जिन्ना ने 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' प्रस्तुत किया जिसमें उसने उन क्षेत्रों
से अलग मुस्लिम राज्य के निर्माण की मांग शुरू की जो वर्तमान में ब्रिटिश भारत में
थे। मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत को हिंदुओं और मुसलमानों के सांप्रदायिक बहुमत के
आधार पर दो संप्रभु राज्यों में विभाजित करने का विचार प्रस्तावित किया। पाकिस्तान बनने की कड़ी में एक अहम
पड़ाव 23 मार्च 1940 को आया। इस दिन
मुस्लिम लीग ने लाहौर में एक प्रस्ताव रखा जिसे बाद में ‘पाकिस्तान
प्रस्ताव’ के नाम से
भी जाना गया। इसके तहत
एक पूरी तरह आज़ाद मुस्लिम देश बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया। पाकिस्तान के एक अलग राज्य का विचार पूरे भारत में मुसलमानों के बीच लोकप्रिय होने लगा। 1946 में
मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना से खुद को अलग कर लिया और आंदोलन छेड़ दिया
जिसके बाद देश भर में भारी नरसंहार हुआ।
मुस्लिम
लीग ने 1940 के दशक में निर्णायक भूमिका
निभाई, जो धार्मिक आधार पर भारत के
विभाजन और पाकिस्तान
के निर्माण के पीछे एक प्रेरक शक्ति बन गई। 14 अगस्त, 1947 को एक
नया मुल्क पाकिस्तान बना और पाकिस्तान ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया। भारत के विभाजन और
पाकिस्तान की स्थापना के बाद , भारत में
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग औपचारिक रूप से भंग हो गई। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग भारत में इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग के रूप में स्थापित रही।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद
संदर्भ : यहाँ पर
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