-- करण समस्तीपुरी
महाभारत का प्रसंग था। यक्ष-युद्धिष्ठिर संवाद चल रहा था। यक्ष महाराज के एक से एक उलझे हुए प्रश्न का धर्मराज युद्धिष्ठिर सुलझे हुए उत्तर दे रहे थे। एक प्रश्न समाप्त हुआ। अगला प्रश्न.... किमाश्चर्यम... ? अर्थात आश्चर्य क्या है ? लगे युद्धिष्ठिर बगले झाँकने। तभी मास्टर काका ने काकी को आवाज़ लगाई। पतिव्रता काकी ने विनम्रता से कहा, 'चावल चुन रही हूँ।' मैं ने सोचा शायद युद्धिष्ठिर को किमाश्चर्यम का उत्तर मिल गया। चावल से एकाध कंकर-तिनके चुनने में घंटो लग जाते हैं। काकी जी तो चावल ही चुन रही हैं। फिर पता नही कब तक काका जी का हुकुम बजायेंगी। किंतु युद्धिष्ठिर मेरी तरह कुशाग्र बुद्धि होते तब तो। बेचारे ढूंढ़ते रहे उत्तर। लेकिन भगवान की कृपा.... विज्ञान में स्नातक काका जी जोर से चिल्लाये, 'अरे भगवान जल्दी करो. देखो पानी नीचे गिर गया।' मुझे लगा कि युद्धिष्ठिर को अब तो जवाब मिल गया। पानी-पत्थर या कुछ भी, आज तक मैं ने ऊपर गिरते हुए नहीं देखा। लेकिन धैर्यवान युद्धिष्ठिर महराज अभी तक प्रतीक्षा मे थे। तभी काका के मित्र नयनसुखजी एक हाथ से छतरी और दुसरे से लूंगी संभाले तशरीफ लाये। अस्त व्यस्त नयनसुखजी को देखते ही काका ने धडाक से सवाल दाग दिया, "अरे मियाँ इस तरह.... ? बाहर बारिश हो रही है क्या... ??" अब आश्चार्य के मारे मेरी हंसी निकल गयी बारिश अन्दर तो होती नही है... लेकिन युद्धिष्ठिर महाराज थे कि अभी भी इंतज़ार मे. नयनसुखजी छाता को मोड़ कर एक ओर कोने मे रखते हुए बोले, "अरे क्या बताएं यार ! यह लड़की तो एकदम से मेरे माथे का हेडेक हो गयी है। इसपर तो यक्ष महाराज की भी हंसी निकलते निकलते रही। [अब भला पैरों मे तो हेडेक होता नही...] लेकिन धीरोदात्त युद्धिष्ठिर अभी भी शांतचित्त। फिर काका जी ने पूछा, 'अबे कौन लड़की... ?' जवाब मे नयनसुखजी ने कहा, 'अजी वही, मेरी भतीजी...एक आँख से कानी जो है...? मैंने इतना कुछ प्रीप्लान कर रखा था.... [भैय्या ! दो आँख से कानी तो होगी नही और प्लान तो प्री ही होता है। आज तक किसी ने पोस्ट प्लान किया है क्या... ?] लेकिन सारी मिहनत पे पानी फिर गया। सभी लोग सकते में। किंतु युद्धिष्ठिर अभी शांत। अन्य प्रश्नों के धड़-धड़ उत्तर देने वाले युद्धिष्ठिर को निरुत्तर देख यक्ष महाराज बोले,
"हे धर्मराज ! आपने सुना ? कलियुग मे लोग बहुत पढ़े लिखे होंगे। उच्च डिग्री धारक। किंतु वे छोटी-छोटी बातों में बड़े-बड़े ब्लंडर मिस्टेक करेंगे। यही सब से बड़ा आश्चर्य है। 'इति आश्चर्यम' !! "
महाभारत का प्रसंग था। यक्ष-युद्धिष्ठिर संवाद चल रहा था। यक्ष महाराज के एक से एक उलझे हुए प्रश्न का धर्मराज युद्धिष्ठिर सुलझे हुए उत्तर दे रहे थे। एक प्रश्न समाप्त हुआ। अगला प्रश्न.... किमाश्चर्यम... ? अर्थात आश्चर्य क्या है ? लगे युद्धिष्ठिर बगले झाँकने। तभी मास्टर काका ने काकी को आवाज़ लगाई। पतिव्रता काकी ने विनम्रता से कहा, 'चावल चुन रही हूँ।' मैं ने सोचा शायद युद्धिष्ठिर को किमाश्चर्यम का उत्तर मिल गया। चावल से एकाध कंकर-तिनके चुनने में घंटो लग जाते हैं। काकी जी तो चावल ही चुन रही हैं। फिर पता नही कब तक काका जी का हुकुम बजायेंगी। किंतु युद्धिष्ठिर मेरी तरह कुशाग्र बुद्धि होते तब तो। बेचारे ढूंढ़ते रहे उत्तर। लेकिन भगवान की कृपा.... विज्ञान में स्नातक काका जी जोर से चिल्लाये, 'अरे भगवान जल्दी करो. देखो पानी नीचे गिर गया।' मुझे लगा कि युद्धिष्ठिर को अब तो जवाब मिल गया। पानी-पत्थर या कुछ भी, आज तक मैं ने ऊपर गिरते हुए नहीं देखा। लेकिन धैर्यवान युद्धिष्ठिर महराज अभी तक प्रतीक्षा मे थे। तभी काका के मित्र नयनसुखजी एक हाथ से छतरी और दुसरे से लूंगी संभाले तशरीफ लाये। अस्त व्यस्त नयनसुखजी को देखते ही काका ने धडाक से सवाल दाग दिया, "अरे मियाँ इस तरह.... ? बाहर बारिश हो रही है क्या... ??" अब आश्चार्य के मारे मेरी हंसी निकल गयी बारिश अन्दर तो होती नही है... लेकिन युद्धिष्ठिर महाराज थे कि अभी भी इंतज़ार मे. नयनसुखजी छाता को मोड़ कर एक ओर कोने मे रखते हुए बोले, "अरे क्या बताएं यार ! यह लड़की तो एकदम से मेरे माथे का हेडेक हो गयी है। इसपर तो यक्ष महाराज की भी हंसी निकलते निकलते रही। [अब भला पैरों मे तो हेडेक होता नही...] लेकिन धीरोदात्त युद्धिष्ठिर अभी भी शांतचित्त। फिर काका जी ने पूछा, 'अबे कौन लड़की... ?' जवाब मे नयनसुखजी ने कहा, 'अजी वही, मेरी भतीजी...एक आँख से कानी जो है...? मैंने इतना कुछ प्रीप्लान कर रखा था.... [भैय्या ! दो आँख से कानी तो होगी नही और प्लान तो प्री ही होता है। आज तक किसी ने पोस्ट प्लान किया है क्या... ?] लेकिन सारी मिहनत पे पानी फिर गया। सभी लोग सकते में। किंतु युद्धिष्ठिर अभी शांत। अन्य प्रश्नों के धड़-धड़ उत्तर देने वाले युद्धिष्ठिर को निरुत्तर देख यक्ष महाराज बोले,
"हे धर्मराज ! आपने सुना ? कलियुग मे लोग बहुत पढ़े लिखे होंगे। उच्च डिग्री धारक। किंतु वे छोटी-छोटी बातों में बड़े-बड़े ब्लंडर मिस्टेक करेंगे। यही सब से बड़ा आश्चर्य है। 'इति आश्चर्यम' !! "
What the extra-ordinary I see in this story is your excellent sense of humor. Heartly congr8s
जवाब देंहटाएंha ha ... kahaan se yaad rakhte ho inni chhoti chhoti baten ?
जवाब देंहटाएंachcha likhtha hai. but humlog se mistake to hona hotha na.... to bathane wale hona na ki majaak banaane wala
जवाब देंहटाएं- thyagrajan
Keshav Ji...
जवाब देंहटाएंApne likha to sahi hai log chhoti chhoti bate bolte hue dhayn nai dete aur galat bol jate hai... lakn ap bataiye bahar barish ho rai hai isme galat kya hai????????barish to bahar he hoti hai na? pani niche gir gaya..pani to niche he girta hai to isme b galat kya hai??? matha me headache aur blunder mistake..ye lines log kahte hai to galat kahte hai ..chawal chun rai
hun mai thoda confusion hai ajtak sabi ke muh se yahi sunte aai hun chawal chun rai hun...ab ye
sahi ya galat mai ni kah sakti...
waise ye vyang padhne ke bad log kosis jarur karenge ki bolte hue chhoti chhoti galatiya na karen...Dhanyabad
धन्यवाद रचना जी !
जवाब देंहटाएंवो तो मैं यूँ ही फुरसत में पन्ने कला कर रहा था. आपने संज्ञान लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद. जैसा कि आपने कहा है कि बारिश तो बाहर ही होती है और पानी नीचे ही गिरता है तो फिर इन वाक्यों मे बाहर और नीचे लिखने की किया आवश्यकता है ???? जब बारिश बाहर ही होती है तो बाहर बारिश हो रही है, क्यूँ पूछें ? सीधा पूछ सकते हैं, बारिश हो रही है ? उसी तरह न्यूटन ने सदियों पूर्व सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण कोई भी वस्तु गिरती नीचे ही है. उपर तो गिरेगी नहीं सो अगर हम कहें कि पानी गिर गया तो सही नहीं होगा क्या ??? खैर ये तो मेरे छोटे दिमाग की दलील है. पता नहीं कितने लोगों ने इसे पढ़ा होगा और अगर पढ़ा भी होगा तो कितनों ने इस पे ध्यान दिया होगा और अगर ध्यान चला भी गया हो तो "टिपण्णी" करने की दुरूह कोशिश कौन करे..... लेकिन आपने अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया से हमारा उत्साहवर्धन किया.... हम शुक्रगुजार हैं ! आप इसी तरह हमारे ब्लॉग पर आयें और अपने अमूल्य सुझावों से हमरा मार्गदर्शन करें !! धन्यवाद !!!
Good marketing funda. shabdon ke wrapper me aapne to galtiyon ka khajana chupa kar bech liya. fun reading.
जवाब देंहटाएंAapne ek chote se prashn ka uttar hame vayangyatmak rup me parosa iske liye aap dhanyawaad ke paatr hai.Yudhisther ko is prashn ka uttar us yug me nahi mila lakin aapne to uttro ki jhari laga di.Aisi rachna likhte rahe.
जवाब देंहटाएंHashya pradhan rachna likhne ke liye dhanyawaad. Mohsin
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंaschry ghor ashchry.....
जवाब देंहटाएंबढिया रहा यह आपका यह चक्रव्यूह भी भी ............लोग अकसर कह देते है मगर सोचते नहीं ........ऊपर छत पे, नीचे बेसमेंट में अब इन्हें कौन समझाए कि छत ऊपर ही होती है और बेसमेंट नीचे !
जवाब देंहटाएंbhai ! Ab hame bahot sambhal kar likhna bolna padega.... !
जवाब देंहटाएंWah!!!kya khub likha hai aapne....Es stressful day mein aapki es rachna ne mann khush kar diya....
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