शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

त्यागपत्र - भाग ३

इस से पहले आपने पढ़ा --- सी.पी.डब्ल्यू.डी. के अभियंता बांके बिहारी सिंह की इच्छा थी कि एक पढ़ी लिखी लड़की से उसकी शादी हो। राघोपुर के गोवर्धन बाबू की कन्या रामदुलारी पर परिवार की सहर्ष सहमति भी बनी। इधर विद्यालय की पढाई पूरी कर रामदुलारी ने जब कॉलेज जाने का मन बनाया तो घर के सदस्यों की राय उसकी इच्छा के विपरित थी। ... बाबू, मैय्या और चाचा के विरोध के बाद अब आगे पढ़िए ....

विरोध मे हमारी मनोवृत्तियाँ और प्रबल हो जाती हैं। घर भर की लाडली रामदुलारी आज पहली बार चतुर्दिक विरोध का सामना कर रही थी। मैय्या तो हाई स्कूल भी नही जाने दे रही थी। गाँव की अनमिल आखर मैय्या से रामदुलारी को इस से अधिक उम्मीद भी नही थी। लेकिनी बाबू और छोटके चाचा... ?? छोटके चाचा तो रामदुलारी से कुछ ही बड़े थे उम्र में और ख़ुद यूनिवर्सिटी से पढाई कर के लौटे थे। कितना प्यार करते थे रामदुलारी को... बचपन में तो साथ खेलते भी थे। लेकिन आज चाचा भी विपरीत हैं। चौतरफा विरोध ने रामदुलारी के संकल्प को और दृढ़तर कर दिया है। भविष्य के सुनहरे सपने बुने उसका किशोर मन हार मानने के लिए कतई तैयार न था। पीले सूत की साड़ी मे लिपटी कोमलांगी कृषवदना किशोरी की काया भले ही कुम्हला गयी हैं किन्तु उस में आशा की लौ अभी भी दीपशिखा की भाँती जल रही थी। घर में तूफ़ान के बाद जैसा सन्नाटा था। लोग वार्तालाप भी प्रश्नोत्तर में कर रहे थे। रामदुलारी सुबह से ही मैय्या के कामो में हाथ बँटा रही है लेकिन मैय्या यथासम्भव उस से बचने का प्रयास कर रही है। रामदुलारी चाहती है कि मैय्या के गोद मे सर रख कर प्यार से अपना अधिकार मांग ले.... लेकिन मैय्या तो आज नजर उठा कर देख भी नहीं रही। हाँ दोनों में एक समानता भी है। दोनों ने ही कल सांझ से अन्नपूर्ण देवी का बहिष्कार कर रखा है। कुल धर्म परायाना मैय्या की सारी आशाएं अपनी बिटिया पर है.... और बिटिया की आशा तो अब केवल दालान की राह देख रही है, जहां बाबा आसनी लगाए बैठे हैं।
हवेली का फाटक पार करते ही सीमेंट का बना एक बड़ा सा चबूतरा है। चबूतरे पर तोसक जाजिम लगाए बांये भाग में तिजोरी और दायें में रामायण-महाभारत जैसी कुछ किताबें और बीच में एक रोबदार सज्जन। ऊंचा कद, बुढापे में भी रक्तिम लाल रंग, प्रशस्त भाल पर त्रिपुंड, और आँखों पर गोल-गोल चश्मा.... यही हैं प्रजापति ठाकुर। रामदुलारी के बाबा। राघोपुर और आस-पास के गावों मे भी प्रजापति ठाकुर की तूती बोलती है। महाशय जितने ही सरल और सदय हैं उतने ही न्यायप्रिय भी। हवेली मे नौकार चाकर की एक छोटी सी पलटन है लेकिन ठाकुर जी के तीनो बेटे खेती-पटवारी में जिम्मेदारी के साथ लगे रहते हैं तो घर का काम बहुओं के हवाले है। हाँ, पोते-पोतियों के लिए पूरी छूट है। रामदुलारी तो घर की सबसे बड़ी लाडली है। परम रूपसी और कुशाग्र बुद्धि। बाबा तो उसे सर आँखों पर रखते हैं। आज बाबा ने रामदुलारी की सूरत नहीं देखी है। हवेली के लम्बे-चौरे आँगन में मंगनू दास और उनकी लुगाई नयका गेंहू को धूप में सूखा रहे हैं। चबूतरे के सामने ही निर्धन नीबू की डाल में थल्ही लगा रहा है। सात साल का लक्ष्मण बाबा से प्यारी-प्यारी बातें कर रहा है। निर्धन को नीबू मे थल्ही लगाते देख बाबा से पूछता है, "बाबा ! बाबा !! निर्धन क्या कर रहा है ?" "वो नीबू मे कलम लगा रहा है।" बाबा ने कहा। 'हा..हा...हा.... बाबा को तो कुछ भी नहीं पता... कलम कोई नीबू मे लगाता है क्या... कलम तो जेब मे लगाते हैं। कलम से तो लिखते हैं.... निर्धन तो नीबू मे मिटटी लगा रहा है.... बाबा को नहीं पता... बाबा को कुछ भी नहीं पता...।" लक्ष्मण के अबोध चुहल पर बाबा को भी हंसी आ गयी। उसकी पीठ पर प्यार से चपत लगाते हुए बोले, "धुर बुरबकहा... एक कलम से लिखते हैं और एक कलम यह भी है। देखो पीछे बाड़ी में नीबू की कैसी घनी झार हो गयी है... नीबू फलते भी कम हैं और तोड़ना भी मुश्किल। लेकिन डाल को बीच से काट कर कलम लगा देने से, पेड़ मनमानी बढेगा नहीं और नीबू भी अच्छे लगेंगे। समझे.... ? और सामने छोटे-छोटे पौधे रहेंगे तो आसानी से तोड़ भी लेंगे।" बाबा की बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि लक्ष्मण बीच में ही बोल पड़ा, "अच्छा ! तभी तो मैं कहूँ... बड़का बाबू रामदुलारी दीदी के कलम क्यूँ लगा रहे हैं? दीदी की पढाई को भी बिच से काट देंगे तो मनमानी बढेगी नहीं और........ और क्या... लक्ष्मण तो बात बीच में ही छोड़ कर डमरू की आवाज़ सुन दौड़ पड़ा सोनपापरी लेने। लेकिन बाबा के स्नेहमय अंतर्मन को झकझोड़ने के लिए आधी बात ही काफी थी। आँगन की तरह मुंह कर के आवाज़ लगाया, "रामदुलारी..... !!!

[क्या बाबा रखेंगे रामदुलारी का अरमान ....? या आएगा कोई नया तूफ़ान ....?? जानने के लिए पढिये श्रृंखला की अगली कड़ी ! इसी ब्लॉग पर !! अगले हफ्ते !!!]

त्याग पत्र के पड़ाव

भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥



11 टिप्‍पणियां:

  1. Hmmm........ The story just seems going. Nothing extra-ordinary...........

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  2. Kaafi dilchasp lagne lagi hai raamdulari ki yeh kahani....Intezaar hai agli kari ka....

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  3. Ye kahani to star plus ke serial jaise hoti ja rai hai...log nxt episode ka wait karte hai ki kuch naya hoga lakn kahani last episode ke ird gird he ghumti rahti hai...hope agli kadi kahani ki antim kadi aur sath me inresting b ho..aur is kahani ka ant acha ho..
    Dhanyabaad..

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  4. achchhe mod par chhoda hai story ko... aglee kadee ka intizaar rahega.

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  5. pata nahi story kis karwat baithegee... let's enjoy your episode writing.

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  6. Aapne kahani ko bade hi vistrit rup me prastut kiya hai.Anth me Baba ko Laxman dwara hasi me kaha gaya katu vakya bahut hi sundar rup me prustut karne ke liye dhanyawaad.Mujhe lagta hai yahi samwaad kahani me mode layega. Ab aage ki katha ka intejaar hai. MOHSIN

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