शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

त्याग पत्र -- 25

पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का परिवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना ! रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! फिर पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत ! गाँव में रामदुलारी के खुले विचारों की कटु-चर्चा ! शिवरात्रि में रामदुलारी गाँव आना और घरवालों द्वरा शादी की बात अनसुनी करते हुए शहर को लौट जाना ! फिर शादी की सहमति ! रिश्ता और तारीख तय ! शादी की तैय्यारी ! अब पढ़िए आगे !! -- करण समस्तीपुरी

आज राघोपुर में उत्सव है। विवाहोत्सव। ब्रह्मस्थान के पास विशाल तोरण-द्वार लगाया गया है। ठाकुरजी के घर से मिडिल स्कूल तक लगे वन्दनवार की छटा निराली है । तैय्यारियाँ तो सारी हो चुकी हैं। विवाहपूर्व के विधि-व्यवहार भी संपन्न हो चुके हैं। फिर भी ठाकुर जी की हवेली में जबर्दश्त गहमा-गहमी है। रामदुलारी का नख-शिख श्रृंगार किया गया। बड़की मामी ने गीत की तान छोडी, "सिया जी होइहैं राम सजनमा..... घर-भर बाजत रे बधाई.... !!


दिन के अवसान पर पुरुषों की अबूझ व्यस्तता और बढ़ जाती है। स्त्री समाज काली-ब्रहम पूजने की तैय्यारी में है। सबसे पहले लाल काकी कदम बढाती हैं मंगल गीत के साथ.... एलई शुभ के लगनमा शुभे हो शुभे......... ! छोटकी चाची रामदुलारी के माथे पर आँचल रखे हौले-हौले कदम बढ़ा रही थी। मैय्या, मझली चाची, दोनों मौसी, मामी, बुआ, चचेरी बहनें, ममेरी बहनें, मौसेरी बहने.... रंग-विरंगी परिधानों में सजी नारी-वृन्द मंगल-गान के साथ काली-ब्रहम पूजन के लिए प्रस्थान करती हैं। लक्ष्मण भी मचल रहा है... साथ में जाने के लिए। मामा जी ने लक्ष्मण को समझाया, "धुर्र बुरबक... ! काली-भुइयां पूजने के लिए मरद जाता है का.... ! आओ इहाँ... । इधर काम देखो।" लक्ष्मण कुछ संकोच के साथ मामा जी के पास रुक जाता है। अतरुआ वाली ओझाइन, गीत शुरू करती हैं, "यौ अहाँ ब्रह्मण बाबू........ !" घर से उत्तर का मार्ग पर स्त्रियों का हजूम बढ़ जाता है।

इधर बांके के घर में उल्लास की तरंगें थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। सुहागन स्त्रियाँ दुल्हे को हल्दी का उबटन लगा रही हैं। स्त्री-समुदाय के मंगल स्वर फूट पड़े, "सुन्दर लालन जी के होई छैन्ह पसाहिन.... देखि-देखि नयना जुडाऊ हे........ !!" आज बांके को पांच बार उबटन लगाया जाएगा। रिश्ते की भाभियाँ चुहल करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। आज ही तो बांके बाबू हाथ आये हैं।मजफ्फरपुर का इबरार बैंड पार्टी भी दरवाजे पर दस्तक दे चुका है। ढोलपुजाई हुई और शुरू हो गया, "तु...रु..तु...तु....रु....तु....तु....रु...तु....रु...तु... ! आज मेरे यार की शादी है.......... !!"

चन्दन-गुलाबजल और इतर मिले पानी से स्नान कर बांके बिहारी बाहर वाली कोठरी में आ गए हैं। नाई दूल्हे को धारण करने बाले वस्त्र डाला में लेकर सामने खड़ा है। बांके नए हलके पीले रंग की शिरवानी पर कत्थई रंग का दुशाला करीने से बांधता है। दुल्हे के रूप में सज चुके बांके के समक्ष उसकी बहनें खड़ी थीं। सिर्फ सिर पर मौर लगाना बांकी है। माताजी ने सुपुत्र को काजल बड़े प्यार से काजल का टीका लगाया... थीक उसी तरह जैसे कि वो बांके को बचपन में लगाती थीं। महिला मंडली ने नया गीत उठाया, "नजरियों न लागे............ नजरियों न लागे............ मोर बबुआ के नजरियों न लागे.............. !!"

बांके का सुंदर मुख अब और सुंदर लगने लगा। कुल देवता के समक्ष पूजा अर्चना कर उसके माथे पर मोड़ चढ़ाने की रस्म स्वयं ठाकुर बचन सिंह ने अदा की। पिता पुलकित हो उठे। आँख भर कर उन्होंने पुत्र के रूप का रसपान किया। बस अब वर का चुमावन होगा और बारात को ले प्रस्थान करेंगे। हाथों में पान के पत्ते पर दही की मटकी लिए अरिपन किये पीढ़े पर बैठे बांके के सामने कमावन का डाला रखा जाता है। सबसे पहले अम्मा ही आती है अपने लालन का चुमावन करने। पीछे नारी-वृन्द के स्वर में आनंद की लहर हिलोरे मार रहा है, "चुमबे जे चलली अम्मा सुहागिन.... चुमाबहुं हे ललना धीरे-धीरे......... ! अम्मा ने बड़े प्यार से बांके के पाँचों अंग का चुमावन कर ललाट पर एक प्यार की चुम्मी ली। अब बारी थी भाभी की। अचानक गीत के स्वर में हास्य-विनोद की तरंगे उठने लगी, "धीरे से भौजी चुमैहो हो......... तोरा यौवन... पहाड़.... !!"


घर भर की विवाहित स्त्रियों ने चुमानादि कर लड़के को शुभाच्छा दी। ऐलई शुभ के लगनमा...शुभे.... हो....शुभे... गीत अनवरत गाया जा रहा था। दूल्हा बांके को मोटर में बिठाने की रस्म अदायगी के वक़्त बहनें रास्ता रोक कर खड़ी हो गई और मानों बांके ने देर न हो जाए वाली स्थिति से निबटने के लिए सौ-सौ के नोटों को बांट कर बहनों से पीछा छुड़ाया। बैंड बाजे की धुन तेज हो गयी थी, "घोड़ी पे हो के सवार.... चला है दुल्हा यार.... कमरिया में बांधे तलवार....... अकड़ता है छैला.... मिली है ऐसी लैला........ कि जोड़ी है नहले पे दहला...... !!


बांके बिहारी की बारात चल पड़ीं है राघोपुर। मिथिलांचल में कहावत है, 'विवाह से विध भारी.... !" थोड़ा सब्र कीजिये और लीजिये मिथिला की परिणय समारोह का आनंद इसी ब्लॉग पर अगले हफ्ते !!


त्याग पत्र के पड़ाव

भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥



5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा दृश्य खींचा है मिथलांचल के विवाह का। अब प्रतीक्षा है कन्या पक्ष के विध और विवाहोत्सव का।

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  2. और हां, बीच-बीच में लोक गीतों की प्रस्तुति ने वातावरण को साकार कर दिया है।

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  3. सुन्दर,अगली कडी का इन्तज़ार है.

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