आज राघोपुर में उत्सव है। विवाहोत्सव। ब्रह्मस्थान के पास विशाल तोरण-द्वार लगाया गया है। ठाकुरजी के घर से मिडिल स्कूल तक लगे वन्दनवार की छटा निराली है । तैय्यारियाँ तो सारी हो चुकी हैं। विवाहपूर्व के विधि-व्यवहार भी संपन्न हो चुके हैं। फिर भी ठाकुर जी की हवेली में जबर्दश्त गहमा-गहमी है। रामदुलारी का नख-शिख श्रृंगार किया गया। बड़की मामी ने गीत की तान छोडी, "सिया जी होइहैं राम सजनमा..... घर-भर बाजत रे बधाई.... !!
चन्दन-गुलाबजल और इतर मिले पानी से स्नान कर बांके बिहारी बाहर वाली कोठरी में आ गए हैं। नाई दूल्हे को धारण करने बाले वस्त्र डाला में लेकर सामने खड़ा है। बांके नए हलके पीले रंग की शिरवानी पर कत्थई रंग का दुशाला करीने से बांधता है। दुल्हे के रूप में सज चुके बांके के समक्ष उसकी बहनें खड़ी थीं। सिर्फ सिर पर मौर लगाना बांकी है। माताजी ने सुपुत्र को काजल बड़े प्यार से काजल का टीका लगाया... थीक उसी तरह जैसे कि वो बांके को बचपन में लगाती थीं। महिला मंडली ने नया गीत उठाया, "नजरियों न लागे............ नजरियों न लागे............ मोर बबुआ के नजरियों न लागे.............. !!"
बांके का सुंदर मुख अब और सुंदर लगने लगा। कुल देवता के समक्ष पूजा अर्चना कर उसके माथे पर मोड़ चढ़ाने की रस्म स्वयं ठाकुर बचन सिंह ने अदा की। पिता पुलकित हो उठे। आँख भर कर उन्होंने पुत्र के रूप का रसपान किया। बस अब वर का चुमावन होगा और बारात को ले प्रस्थान करेंगे। हाथों में पान के पत्ते पर दही की मटकी लिए अरिपन किये पीढ़े पर बैठे बांके के सामने कमावन का डाला रखा जाता है। सबसे पहले अम्मा ही आती है अपने लालन का चुमावन करने। पीछे नारी-वृन्द के स्वर में आनंद की लहर हिलोरे मार रहा है, "चुमबे जे चलली अम्मा सुहागिन.... चुमाबहुं हे ललना धीरे-धीरे......... ! अम्मा ने बड़े प्यार से बांके के पाँचों अंग का चुमावन कर ललाट पर एक प्यार की चुम्मी ली। अब बारी थी भाभी की। अचानक गीत के स्वर में हास्य-विनोद की तरंगे उठने लगी, "धीरे से भौजी चुमैहो हो......... तोरा यौवन... पहाड़.... !!"
घर भर की विवाहित स्त्रियों ने चुमानादि कर लड़के को शुभाच्छा दी। ऐलई शुभ के लगनमा...शुभे.... हो....शुभे... गीत अनवरत गाया जा रहा था। दूल्हा बांके को मोटर में बिठाने की रस्म अदायगी के वक़्त बहनें रास्ता रोक कर खड़ी हो गई और मानों बांके ने देर न हो जाए वाली स्थिति से निबटने के लिए सौ-सौ के नोटों को बांट कर बहनों से पीछा छुड़ाया। बैंड बाजे की धुन तेज हो गयी थी, "घोड़ी पे हो के सवार.... चला है दुल्हा यार.... कमरिया में बांधे तलवार....... अकड़ता है छैला.... मिली है ऐसी लैला........ कि जोड़ी है नहले पे दहला...... !!
बांके बिहारी की बारात चल पड़ीं है राघोपुर। मिथिलांचल में कहावत है, 'विवाह से विध भारी.... !" थोड़ा सब्र कीजिये और लीजिये मिथिला की परिणय समारोह का आनंद इसी ब्लॉग पर अगले हफ्ते !!
त्याग पत्र के पड़ाव |
भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥ |
बहुत अच्छा दृश्य खींचा है मिथलांचल के विवाह का। अब प्रतीक्षा है कन्या पक्ष के विध और विवाहोत्सव का।
जवाब देंहटाएंऔर हां, बीच-बीच में लोक गीतों की प्रस्तुति ने वातावरण को साकार कर दिया है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुन्दर,अगली कडी का इन्तज़ार है.
जवाब देंहटाएंye episode b acha raha ab to bas nxt episode ka intzar hai :)
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