शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

त्यागपत्र : भाग ---12

पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का पैवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना! फिर रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! गाँव की गोरी रामदुलारी अब पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत है ! उधर समीर के पिता के कालेज की अध्यापिका रुचिरा का आकर्षण समीर के प्रति बढ़ता ही जा रहा है ! अब पढ़िए आगे !!

-- मनोज कुमार

उस दिन काफी अंतराल के बाद समीर के यहां रुचिरा पहुंची। पता नहीं समीर कई दिनों के बाद आने के कारण शिकायत करने लगे। किसी काम के बोझ का बहाना बनाना पड़ेगा। वह मन-ही-मन यह सोच ही रही थी कि समीर सामने आ गया। उसके चेहरे पर मुस्कान की कांति फैली हुई थी। उसकी मन्द-मन्द मुस्कान ही तो रुचिरा को काफी भाती थी। निस्संकोच व्यवहार से आकर समीर का मिलना रुचिरा को अच्छा लगा। उसके चेहरे पर कोई शिकायत का भाव नहीं था। रुचिरा को अब किसी बहाने की आवश्यकता ही नहीं रह गई थी। समाने सोफा पर बैठते ही समीर ने साहित्य की चर्चा शुरु कर दी।

सूर्यास्त का समय होने को आ गया। साहित्य की विवेचना से अधिक रुचिरा को समीर का साथ होना अच्छा लग रहा था। उसके चेहरे पर हर्ष का गुलाबीपन तैर रहा था। सहसा समीर को ध्यान आया, चाय का समय हो चला है। बोला, चाय पीयेंगी?”

इतनी भी जल्दी क्या है? .... .... ठहर कर पी लेंगे।रुचिरा ने कहा। यह उत्तर सुन समीर को अच्छा लगा। एक पल उसकी आंखों में देखा, फिर साहस कर पूछ बैठा,आप कुछ अलग-सी दिख रहीं हैं आज। ये आपके चेहरे पर जो भाव हैं ... ... मानों आपके सौंदर्य से कविता फूट रही हो।

रुचिरा के रोम-रोम तरंगित हो गए। बोली, तुम भी आज अधिक अच्छे लग रहे हो।फिर समीर की आंखों में विश्‍वास से देखते हुए बोली, एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगे?”

समीर ने सिर हिला कर ना कहा।

सच्ची!”

हां।

एक बार फिर सोच लो।

कहा तो हां।

प्रामिस! रुचिरा ने हाथ बढ़ाया। समीर की नज़रें रुचिरा की नज़रों से मिली। समीर ने हाथ आगे कर दिया। रुचिरा ने अपने हाथ में उसका हाथ लेकर कहा, हाथ दिया है, साथ भी दोगे? छुड़ाओगे तो नहीं? रुचिराके स्वर कांप रहे थे।

समीर ने साहस संजोकर कहा, नहीं, .. कभी नहीं। बात उसने दिल से कही थी और स्वर में गाम्भीर्य था। उसने अपना हाथ नहीं हटाया।

रुचिरा बोली, मैंने तुमसे कुछ ऐसा तो नहीं मांग लिया जो तुम्हें असहज हो। जानती हूं, मैं तुम्हारे योग्य नहीं। मेरी तुम्हारी समानता भी नहीं। सामाजिक और पारिवारिक स्थिति हमारे और तुम्हारे बीच दूरी तो नहीं बना देगी?”

समीर का हृदय भर आया। रुद्ध कंठ से बोला, आप कैसी बातें करती हैं? मैं ही कौन आपके योग्य हूं? आप तो महान् हैं। साहित्य की विद्वान हस्ती। एक स्थापित लेखिका। मैं तो एक अदना इंसान हूं।” उसकी आंखों में जल-कण तैर गए। वह उठा, अंदर की ओर चला गया।

थोड़ी देर बाद जब समीर लौटा तो उसके हाथ में चाय की ट्रे थी। इस बार वह संयत था। चाय का प्याला रुचिरा की ओ बढ़ाते हुए उसने पूछा, आपने हमारे आपके बीच असामनता की बात क्यों की?”

रुचिरा समीर के सरल व्यवहार से मुग्ध हो बोली, तुम इतने सहृदय हो ... ... तुम्हें मैं दबाव में निर्णय लेने को प्रेरित नहीं करूँगी। मैं उम्र में तुमसे बड़ी हूँ। समाज इसे सहज स्वीकृति नहीं देगा। तुम एक सम्पन्न परिवार से हो, जिसका इस शहर में साख एवं रुतबा है। .. .. और मैं एक साधरण, क़र्ज़ में डूबे लिपिक की पुत्री। एक प्राइवेट कॉलेज में शिक्षिका। .. .. किन्तु मुझे अपने सामर्थ्य और भविष्य पर विश्‍वास है।

समीर को रुचिरा पसंद थी। उसे उसकी सादगी और स्पष्टवादिता ने सदा ही प्रभावित किया है। मुझे इस साख और रुतबा से कोई लेना-देना नहीं है। मुझे आप अच्छी लगती हैं। आपके ज्ञान और विद्वता का मैं कायल हूं। एक साहित्यकार के रूप में सब आपका सम्मान करते हैं, मैं भी।

इस वार्तालाप ने दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्‍वास को जन्म दिया। समीर ने अपने भविष्य को निर्धारित कर लिया। उसे न धनाढ्य परिवार चाहिए न ऊंची बिरादरी। समीर ने न कभी अपने पिता के पैसों पर विलासिता का जीवन जिया था, न वैसी कोई महात्वाकांक्षा थी उसकी। उसने रुचिरा में जीवन-सहचरी देखना शुरु कर दिया।


एक साहित्य शिक्षिका और शहर के एक बड़े धन-कुबेर के पुत्र का यह सम्बन्ध कितना आगे जाता है, जानने के लिए पढ़ते रहिये अगले हफ्ते इसी ब्लॉग पर !!

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त्याग पत्र के पड़ाव

भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥



15 टिप्‍पणियां:

  1. kahani dheere dheere aage bad rahi hai .Dhekhna hai aage kya hota hai . Intezar rahega.

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  2. कथा रोचक होती जा रही है..मन लग गया है कि क्या मिलाप होता है..जारी रहिये.

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  3. agalee kadee kee pratiksha ....
    prarambh ho chukee hai.........

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  4. shukriya, hausla-afzayee ke liye. apki kahani achchi lagi, aage ka intezar.

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  5. आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
    बहुत ही सुन्दर और रोचक कहानी लिखा है आपने!

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