पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का परिवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना ! रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! फिर पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत ! गाँव में रामदुलारी के खुले विचारों की कटु-चर्चा ! शिवरात्रि में रामदुलारी गाँव आना और घरवालों द्वरा शादी की बात अनसुनी करते हुए शहर को लौट जाना ! फिर शादी की सहमति ! रिश्ता और तारीख तय ! अब पढ़िए आगे !!
-- करण समस्तीपुरी
मुरली बाबू कार्ड ले कर आँगन में गए। हाथों में लाल-लाल लिफ़ाफ़े का बण्डल देख उर्मिला देवी के साथ मझली और छोटकी चाची भी लपक के आ गयीं। छोटकी चाची मुरली बाबू के पीछे खड़ी हो छपे के अक्षर पढने लगी तो मझली चाची सहसा ही उनके हाथों में रखे लिफ़ाफ़े पर झपट पड़ीं। पास में खड़ी उर्मिला देवी के मुँह से निकल पड़ा, "हे... हे...! स्थिर से !" फिर मुरली बाबू भी कहाँ चूकने वाले थे। झट से मजाक दाग दिया, "अरे भौजी ! इतना काहे धर्फराय रही हैं ? सबसे पहिले आपही के नैहर (मायके) भेज दिए हैं कार्ड।" "हाँ ! हाँ !! हमरे नैहर काहे.... ई कहो न कि अपने ससुराल भेजे हैं। अपने भैय्या से ज्यादा तो आप ही जाते रहे थे मेरे नैहर।" मझली चाची ने नहले पे दहला दागा था। छोटकी चची की त्योरियां चढ़ी थी और मुरली बाबू ठठा कर हंस दिए थे।
सब को बारीकी से कार्ड दिखा कर पूछा, 'रामदुलारी कहाँ है ?" आँखें घुमा कर अपने कमरे की ओर बाईं हाथों से इशारा करते हुए उर्मिला देवी के हाथों की पीली-पीली चुदियाँ खनक उठी थी। "अच्छा वह आपके कमरे में है, तभी तो हम कहें कि....." कहते हुए मुरली बाबू मैय्या के कमरे की ओर बढ़ गए।
रामदुलारी मैय्या के कमरे के बड़े से पलंग के एक किनारे चुपचाप अकेली बैठी थी। हाथें अंक मे पड़े एक पुरानी डायरी से लिपटी थी और आँखें खिड़की के छड़ों के बीच से पीछे के पगडण्डी को अपलक निहार रही थी। जब तक सूर्य का प्रकाश रहता है, इस पगडण्डी पर भी कितनी चहल-पहल रहती है। पैदल आने जाने वाले लोगों के बीच बहुधा साइकिलों की घंटियों का रन-झुन और पास के परती जमीन में कबड्डी खेलते बच्चों का हुजूम मानो राघोपुर की शांत प्रकृति को लोल-किलोल से प्रतिध्वनित कर देता है। लेकिन यही पगडण्डी के झल-फल से कितनी वीरान हो जाती है..... यदा-कदा एकाध परिंदे नीड़ की ओर तेज उड़ान भर रहे होते हैं। प्रकाश के जाते ही अन्धकार का साम्राज्य पाँव पसारने लगता है। कहीं कहीं जुगनू तमस में डूब रही धरा के लिए तिनके का सहारा बनने की कोशिश तो करते हैं लेकिन रात की कालिमा से उन्हें मुँह की खानी पड़ती है। शायद ऐसे ही कुछ विचार रामदुलारी के शून्य मनोस्थिति में कोलाहल मचा रहे थे। तभी तो वह कमरे में छोटके चाचा के आने की आहट को भी नहीं सुन सकी थी।
"ए दुलारी ! तू उधर खिड़की से का निहार रही है ? ए... इधर देख, इधर देख। देख हमरे हाथ में क्या है ?" छोटके चाचा के इतना कहने के बाद ही कहीं जा कर रामदुलारी की तन्द्रा भंग हुई थी। नीले दुपट्टे से खुद को ढकते हुए बहुत ही नीरीह दृष्टि फेरा था उसने छोटके चाचा पर। एक क्षण के लिए तो मुरली बाबू का रोम-रोम काँप उठा लेकिन उन्होंने सँभालते हुए बोला, "देख कार्ड कैसा है ? ये तो तेरे व्याह की तैय्यारी का एक नमूना है। बाबू मुरली मनोहर ठाकुर पहली-पहली बार समधी बनने जा रहे हैं..... यादगार न बनाया इस उत्सव को तो फिर जमींदारी काहे की ?" कार्ड को खोलते हुए मुरली बाबू ने रामदुलारी को हंसाने का पूरा प्रयास किया था। रामदुलारी के सौम्य मुखमंडल पर सामान्य भाव तो आये पर मुस्कान तिरोहित था।
कार्ड को दोनों हाथों से पकड़ कर 'मंगलं भगवान विष्णु: ! मंगलं गरुराध्वजः .....!!' से पढना आरम्भ किया और 'सौभाग्यवती रामदुलारी संग चिरंजीवी बांके-बिहारी' तक आते-आते उसकी दृष्टि अन्तक सी गयी थी। एक साथ कई चेहरे, अतीत की कई कड़ियाँ और कई प्रश्न तैर गए थे आगे। गुलाब की पंखुड़ियों के समान उसके कोमल होंठ सिर्फ थरथरा कर रह गए थे। शायद उनमे बोलने की शक्ति शेष न रही थी।
फिर छोटके चाचा ने पूछा, "कैसा लगा कार्ड ?" रामदुलारी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, 'अच्छा है ?' छोटके चाचा ने फिर चुहल किया था, "क्यूँ ? अपनी शादी की कार्ड में गलतियां नहीं खोजोगी ?" 'गलतियाँ छुपी हो तब तो उन्हें कोई खोजे !' रामदुलारी के टके से जवाब पर छोटके चाचा सन्न रह गए थे, 'क्या मतलब है तेरा....?' 'अरे मतलब क्या.... देख तो रहे हैं 'परिणय' में तवर्गीय 'न' है, 'प्रतीक्षा' में 'त' पर 'ह्रस्व इ' है, 'वैशाख' में 'दन्त स' है......' रामदुलारी गलतियां गिना ही रही थी कि गालों पर प्यार से चपत लगा कर उसके हाथ से कार्ड लेते हुए मुरली बाबू ने कहा 'चुप कर मास्टरनी..... बहुत हो गया !' इस बार रामदुलारी के होंठों पर मुस्कराहट की एक पतली रेखा उभरी थी और मुरली बाबू फिर से ठठा कर हंस पड़े थे।
छोटके चाचा ने बात को आगे बढाया। 'दूर-दराज रहने वाले सगे-सम्बन्धियों को डाक से न्योता भेज दिया है। आस-पास में सोगारथ कल से बांटना शुरू करेगा। तुम्हे भी अपने ईष्ट-मित्रों को कार्ड भेजना है तो नाम पता बताओ। मैं कल फिर शहर जाऊँगा तो डाक में लगा दूंगा। रामदुलारी अंक में पड़ीं डायरी के पन्ने पलटने लगी। सबसे पहले जुबाँ पे जो नाम आया वो था.... 'डॉ रुचिरा पाण्डेय', फिर समीर, प्रो सहाय, सिन्हा मैडम, एकाध नाम और निकले.... फ़िर अब तक जबरन रोक कर रखा गया नाम ओंठो के परदे को चीर का बाहर आ गया, 'प्रकाश'! रामदुलारी अचानक चुप हो गयी। छोटके चाचा ने कुरेदा, 'प्रकाश....! और इसका पता...?' 'नहीं...नहीं....' रामदुलारी जैसे सचेत हो उठी। नहीं प्रकाश अब पटना में नहीं रहता। उसे तो मुंबई में बहुत अच्छा काम मिल गया है। उसने अपना पता दिया नहीं। .....शायद उसे भी मेरा पता मालुम नहीं हो। खैर आप 'प्रकाश' को छोड़ दीजिये।' 'ठीक है कह कर छोटके चाचा कार्ड का बण्डल समेट कर बाहर आ गए। और रामदुलारी की आँखें फ़िर से 'प्रकाश-विहीन वीरान पगडण्डी को झाँकने लगी।
शादी की तैयारी हो रही है लेकिन क्या सोच रही है रामदुलारी ? क्या उसकी आँखों में भी भविष्य के सुनहरे सपने हैं ? या अतीत की यादें ?? जो भी हो शादी है मिथिलांचल की ! देखना न भूलें ! अगले हफ्ते इसी ब्लॉग पर !!
पड़ाव |
भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37|| |
पूर्व की तरह ही रोचक और अच्छी कडी.कहानी धीरे धीरे आगे बढ रही है. शादी अन्क का इन्तज़ार है.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
raamdulaari ki kahani kafi dilchsp hai .shadi ke card ka vivran achcha laga
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रसंग. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चल रही है..जारी रहें, इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंकहानी रोचक और अच्छी तरह आगे बढ रही है. .
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
Humesa ki tarah Tyagpatra ka ye bhag bhi rochak laga...
जवाब देंहटाएंPata ni aage kis mod par le jayegi kismat ramdulari ko???????????????
कहानी के महत्वपूर्ण मोड़ का इतंजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंकहानी के महत्वपूर्ण मोड़ का इतंजार रहेगा।
जवाब देंहटाएं