शनिवार, 20 मार्च 2010

पियर्स का है सोप हर जगह...

उर्दू अदब में तंजो-मिजाह की एक कद्दाबर शख्शियत अकबर इलाहाबादी का मुख़्तसर परिचय और उनकी शायरी के चंद नमूने आपकी नजर कर रही हैं मंजू वेंकट !मूलतः मराठी मातृभाषी मंजू वेंकट अभियंत्रण-स्नातक हैं! सुसंस्कृत तमिल परिवार की गृहस्थी एवं मातृत्वोपरांत अभियंत्रण के पेशे को अलविदा कह वर्तमान में हिंदी और उर्दू अदब का सक्रीय अध्ययन कर रही हैं. विभिन्न साहित्यिक एवं भाषाई गतिविधियों को ऊर्जा देने के साथ साथ उन्होंने बेंगलूर के निजी विद्यालयों के लिए वर्ग एक से नवम तक हिंदी का एक समानांतर पाठ्यक्रम विकसित किया है. कई विद्यालयों ने उनके द्वारा तैयार पाठ्यक्रम को अपनाया भी है और अधिकाँश विद्यालय भी इस पाठ्यक्रम की ओर उत्सुकता दिखा रहे हैं. मंजू जी का ये सत्प्रयास विल्कुल निःस्वार्थ है गोया इन साहित्यिक क्रियाकलापों के लिए संसाधन की आपुर्ती उन्हें अपनी गृहस्थी से बचे हुए कोष से ही करना पड़ रहा है........ तथापि वे 'चरै: वेति' के सिद्धांत पर अडिग हैं. उम्मीद है उनके अध्ययन से निकले मोती आपको पसंद आयेंगे !! -- करण समस्तीपुरी

1846 में इलाहाबाद के दाद बारहनामी गाँव में उनकी पैदाइश हुई। वकालत की तालीम हासिल की और इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेशन जज होकर रिटायर्ड हुए। 1921 में इलाहाबाद में ही उनका इन्तेकाल हो गया। अकबर इलाहाबादी ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से सामजिक बदलाव पर अपनी पैनी दृष्टि डाली और शायारी को व्यंग्य से गुदगुदाते अनोखे व्यंग्यात्मक अंदाज़ में लाखों लोगों के दिलों तक पहुँचाया। उनका व्यंग्य एक निखारा हुआ उछ कोटि का साफ़-सुथरा व्यंग्य था जो वर्षों वाद आज भी उतना ही चुटीला है, जितना उनके जमाने में था।

अकबर इलाहाबादी के पास दूर तक देखने की दृष्टि थी और उसे शब्दों में पिरोने का अनोखा अंदाज़ था। जबान की पकड़ और विभिन्न सामाजिक पहलुओं की परख, व्यंग्य के माध्यम से इन दोनों का जो संतुलन अकबर की शायरी में सामने आती है, वो अपने आप में ही एक पूरी तालीम है। अकबर कहते हैं,

ताकीद-ए-इबादत पे ये सब, कहते हैं लड़के !

पीरी में भी अकबर की जराफत नहीं जाती !!

हरीफों ने रपट लिखबाई है, जाके थाने में !

के अकबर नाम लेता है, खुदा का इस जमाने में !!

अकबर की शायरी में अंग्रेज़ी के शब्दों का बड़ा ही असरदार इस्तेमाल हुआ है।

क्या कहूँ मैं इसको बदबख्ति-ए-नेशन के सिवा !

इसको आता नहीं कुछ अब इमिटेशन के सिवा !!

निगाह गरम क्रिसमस में भी रही हम पर !

हमारे हक में दिसम्बर भी माह-ए-जून हुआ !!

अकबर गांधी से मुतासिर थे। उन्होंने गांधीनामा लिखा जो अपने जमाने में काफी मकबूल रहा था। वे कहते हैं,

इंक़लाब आया, नयी दुनिया, नया हंगामा है !

शाहनामा हो चुका, अब दौर-ए-गान्धीनामा है !!

इससे क़ब्ल उन्होंने दो अलग अशआर में गांधी के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की थी।

मुब्तिला गवर्नमेंट में अकबर अगर न होता !

उसको भी आप पाते गांधी की टोपियों में !!

बुद्धू मियाँ भी हज़रत गाँधी के साथ हैं !

गो ख़ाक-ए-राह में आंधी के साथ हैं !!

अकबर इलाहाबादी को वीभत्स बाजारवाद की आहट एक सदी पूर्व ही लग गयी थी। देखिये गंभी मुद्दों पर अकबर के व्यंग्य की तलबार किस तरह चलती है,

मुमकिन नहीं लगा सकें वो तोप हर जगह !

देखो मगर पियर्स का है सोप हर जगह !!

तहमद में बटन जब लगने लगे, जब धोती से पतलून लगा !

हर पेड़ पे एक पहरा बैठा, हर खेत पे एक क़ानून लगा !!

अकबर की नज्म 'मुस्तकबिल' के चंद अशआर,

ये मौजूदा तारीक-ए-अदम होंगे !
नयी तहजीब होगी, औ नए सामां बाहम होंगे !!

नए उन्वान से जीनत दिखायेगी हसीन अपनी !
न ऐसा पेच जुल्फों में, न गेसू मे ये ख़म होंगे !!

खबर देती है तहरीक-ए-हवा तब्दील-ए-मौसम की !
खिलेंगे और हीन गुल, जमजमे बुलबुल के कम होंगे !!

और आखिर में एक मजाहिया शे'र जिसे लोग आज भी अपने खतो-किताबत में इस्तेमाल करते हैं,

नामाह कोई ना यार का पैगाम भेजिए,

इस फसल में जो भेजिए बस आम भेजिए !

ऐसे जरूर हों के उन्हें रख के खा सकूँ,
पुख्ता अगर हों बीस तो दस खाम भेजिए !!

मालुम ही है आपको बेटे का एड्रेस,
सीधे इलाहाबाद मेरे नाम भेजिए !

ऐसा न हो के आप कहें जवाब में,
तामिल होगी पहले मगर दाम भेजिए !!

शुक्रिया ! आपकी प्रतिक्रिया का इन्तिज़ार है !

-- मंजू वेंकट

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार! अकबर इलाहाबादी की पैरोडी तो बना ही सकते हैं -
    ओबामा को न मानो, न मानो पोप को।
    पर खुश्की से बचने, वापरो पीयर्स सोप को!

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

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  3. हा..हा..हा..हा... ! आया तो था पोस्ट पर कमेन्ट करने लेकिन ज्ञान सर की चुटकी ने पोस्ट का मजा और चोखा कर दिया ! व्हाट एन आइडिया सरजी...... ! मंजू जी का इस ब्लॉग पर मैं सादर अभिन्दन करता हूँ और पहली ही बार में इतनी धांसू पोस्ट के लिए बधाई और सहयोग के लिए शुक्रिया !! उम्मीद है सिलसिला बना रहेगा !!

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  4. मंजु जी आपने समय के खजाने से जो चुने हुए मोती पेश किये हैं, कई तो पहली बार ही पढ़े हैं. आनंद आ गया
    उनका एक शेर मैं भी दे रहा हूं जो आज की महंगाई और सरकार द्वारा उसे रोकने के जो उपाय किये जा रहे हैं, इस पर सटीक बैठता है.
    ख़ुशी है सब को कि आप्रेशन में ख़ूब नश्तर चल रहा है
    किसी को इसकी ख़बर नहीं है मरीज़ का दम निकल रहा है

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  5. मुमकिन नहीं लगा सकें वो तोप हर जगह !

    देखो मगर पियर्स का है सोप हर जगह !!

    तहमद में बटन जब लगने लगे, जब धोती से पतलून लगा !

    हर पेड़ पे एक पहरा बैठा, हर खेत पे एक क़ानून लगा !!
    वाह,अच्छी प्रस्तुति,बधाई.

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  6. वाह बहुत खूब लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!

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  7. बढ़िया है...

    _____________
    पाखी की दुनिया में देखें-"मेरी नन्हीं गौरैया"

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  8. बहुत खूब्!!
    लाजवाब प्रस्तुति!!

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  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

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  10. इस को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।

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  11. बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

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  12. @करण जी
    न सिर्फ़ सिल्सिला बना रहे बल्कि आपसे अनुरोध है कि अगली बार लेखिका का परिचय भी दें।

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  13. बेतरीन पोस्ट के साथ मंजू जी आपसे परिचय हुआ। आशा है ऐसी ही सरस रचनाएं आगे भी पढ़ने को मिलेंगी।

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  14. क्षमा चाहता हूँ ! कतिपय तकनिकी अवरोध के कारण आलेख के साथ लेखिका का परिचय नहीं दे पाया था ! पुनः संपादित कर लेखिका-परिचय भी जोड़ दिया है !! धन्यवाद !!!

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  15. Manju Ji..Is blog par apki pahli prastuti dhamakedar rai...
    aage b aise he dhamaka karte rahiyega..thanks..

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