आँच-7 |
-- हरीश प्रकाश गुप्त
रचनाकार के अन्दर धधकती संवेदना को पाठक के पास और पाठक की अनुभूति की गरमी को रचनाकार के पास पहुँचाना आँच का उद्धेश्य है। इस ब्लाग पर पिछले दिनों आई जिन कुछ काव्य रचनाओं ने विशेष ध्यान आकर्षित किया, उनमें से एक है करण समस्तीपुरी का गीत ‘किस अधर का गीत हूँ मैं’ और आँच के इस अंक में इसी गीत को समीक्षा के लिए चुना गया है।
प्रस्तुत गीत की रचना का आरम्भ कवि ने स्वयं की खोज में द्वैविध्य और असमंजस का चित्रण करते हुए बहुत ही सजीवता से किया है। कवि प्रश्नवाचक शैली में अपना द्वन्द्व और अपनी छटपटाहट प्रकट करता है और पहचान के प्रति मौन है। वह अपना चित्र कभी शृंगार के चरित्र में तो कभी सामासिक स्वरलहरी में ढूंढता है, कभी वियोगिनी की तृषा में तो कभी रोष के प्रतिकार में खोजता है। स्वयं के प्रति अज्ञानता का स्पष्ट उद्घाटन करने में कवि को किंचित मात्र संकोच नहीं है और ‘जान पाया मैं नहीं’ कह वह प्रथम तीनों पदों में अपनी स्पष्टोक्ति का वर्णन भी करता है। वास्तव में, यह कवि का अन्तर्द्वन्द्वात्मक आत्मालाप है जिसे उसने एक सुन्दर गीत के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
तीसरे पद तक आते-आते कवि के अंदर का यह असमंजस और द्वैविध्य विस्तृत रूप से मुखरित होता है। यहाँ दुविधा विरोधात्मक हो गई है – ‘अभिशाप या वरदान हूँ’ व ‘हार या कि जीत हूँ’। लेकिन ‘गिरा गह्वर से फुरित, रागिनी का गान हूँ’ में इसके स्थान पर सुकोमल भावना का वर्णन है। इस प्रकार यहाँ भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है तथा मूल चरित्र तय नहीं हो सका है। अन्तिम पद में आते ही कवि अचानक स्वयं को संस्कारजनित ऐसे उदात्त चरित्र, के रूप में प्रस्तुत करते हुए सारे प्रश्नों का अन्त कर देता है जिसे संघर्ष मिटा नहीं सकते और काल निगल नहीं सकता और वह अमर व अपराजेय रूप में प्रकट होता है। बिना किसी कारण के तमाम सारे प्रश्नों का एक झटके में उत्तर सामने ला खड़ा कर देना दो विषम भावों के बीच रिक्ति है और यह गीत का कमजोर पक्ष है।
विश्लेषण की दृष्टि से देखें तो यह गीत नवगीत के अधिक निकट है। यद्यपि कवि ने इसे गीतात्मकता में पिरोने का भरपूर प्रयास किया है लेकिन प्रस्तुत गीत में यह गीतात्मकता जगह-जगह बाधित भी हुई है। पहला पद ही लें –
किस अधर का गीत हूँ मैं,
जान पाया मैं नहीं।
किस साज का संगीत हूँ मैं,
किस अधर का गीत हू मैं।
इसमें यदि चौथी पक्तिं भी दूसरी पंक्ति की लय मे होती तो इस पद का लालित्य कुछ और ही होता। इसी तरह,
‘किस का स्वर संधान हूँ,
अभिशाप हूँ या वरदान हूँ’
या
‘हूँ हार या कि जीत हूँ मैं’
या फिर
‘क्रूर काल का ग्रास हूँ,
किन्तु अमिट प्रयास हूँ’
में प्रांज्जलता बाधित सी हुई है। ‘हूँ हार या कि जीत हूँ मैं’ में दो दीर्घ हकार और मात्राओं की अधिकता सहज प्रवाह में बाधक हैं। हकार वैसे ही भारी ध्वनि उत्पन्न करते हैं, दीर्घ होने से गुरुता बढ़ गई है। इसके स्थान पर ‘हार या कि जीत हूँ मैं’ अधिक उपयुक्त होता।
गीतात्मकता और प्रवाहमयता गीत के अपरिहार्य तत्व हैं अर्थात गीत के प्राण हैं और इन्हें गीत से अलग नहीं किया जा सकता। इसमें मात्रक दोष तो है ही आरोह-अवरोह पर भी समुचित ध्यान नहीं रखा गया है। दूसरे पद में ‘भाव’ शब्द की पुनरुक्ति (शीघ्र) रचनाकार की शब्दचयन के प्रति निष्ठा को हल्का दर्शाती है तो शब्द ‘अनुरुक्ति’ का प्रयोग सही नहीं हुआ है। यहाँ संज्ञात्मक प्रयोग के स्थान पर विशेषणात्मक प्रयोग ‘अनुरक्त’ होना चाहिए था। कदाचित, इससे लय भंग होने की दुविधा ने गलत प्रयोग को, अनजाने में, प्रेरित कर दिया हो।
यद्यपि गीत में शब्द कौशल का, कुछ स्थानों को छोड़कर, सुन्दर प्रयोग किया गया है और गीत अपनी भावाभिव्यक्ति में कुछ हद तक सफल भी है तथापि एक रचनाकार की दृष्टि से, रचना में कुछ स्थानों पर गीतात्मकता और प्रांज्जलता का अभाव तथा असमंजस, द्वैविध्य और भ्रम का चित्रण करते हुए एकाएक चरित्र को अनावृत्त कर स्पष्ट रूप से चित्रित करना दोष की तरह दिखता है। जबकि इसे रिक्ति पूर्ति के साथ संकेत भर किया जाना चाहिए था और शेष पाठक पर छोड़ते हुए कवित्व की रक्षा की जानी चाहिए थी।
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हमें आपकी समीक्षा काफ़ी अच्छी लगी। आपने निष्पक्ष होकर रचना के गुण-दोष बता कर मार्गदर्शन किया है। आगे अपसे और भी समीक्षा का अनुरोध है।
जवाब देंहटाएंखासकर मेरी कविता मन तरसे एक आंगन को !
समीक्षा अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंsameeksha padee jaankaree ke liye dhanyvad...............
जवाब देंहटाएंsameeksha padee jaankaree ke liye dhanyvad...............
जवाब देंहटाएंइस ब्लाग के द्वारा समीक्षा पढ़ने को मिलती है , यह हर्ष की बात है. शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंसमीक्षा बहुत अच्छी है....प्रेरणादायक है...
जवाब देंहटाएंइससे रचनाओं की उत्तमता बनी रहेगी..
aadarniya sir,
जवाब देंहटाएंmujhe aapaki sammichha bahut hi achhi lagi.isase hame aur jankariya bhi milati hai jo hamara mardarshan ke liye bhi jaroori hai.
poonam
Achi Sameeksha...lekhakon ke liye margdarshak...
जवाब देंहटाएंsmiksha behtrin rahi aur saath me geet bhi .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायक समीक्षा है! हमेशा की तरह लाजवाब !
जवाब देंहटाएंआपके comment के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..डिम्पल
such mein hum sadharan pathak to kavita ko oopar-oopar dekh padh kar hi achchca ya bura samajh lete hain, sameeksha ke baad to kavita ka technical examination ho jata hai
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