आचार्य वामन
--आचार्य परशुराम राय
आचार्य वामन आचार्य उद्भट के समकालीन थे। क्योंकि महाकवि कल्हण ने अपने महाकाव्य राजतरङ्गिणि में लिखा है कि आचार्य उद्भट महाराज जयादित्य की राजसभा के सभापति थे और आचार्य वामन मंत्री थे। जयादित्य का राज्य काल 779 से 813 ई. माना जाता है।
आचार्य वामन काव्यशास्त्र में रीति सम्प्रदाय प्रवर्तक है। ये रीति (शैली) को काव्य की आत्मा मानते हैं। इन्होंने एकमात्र ग्रंथ काव्यालङ्कारसूत्र लिखा है। यहकाव्यशास्त्र का ग्रंथ है जो सूत्र शैली में लिखा गया है। इसमें पाँच अधिकरण हैं। प्रत्येक अधिकरण अध्यायों में विभक्त है। इस ग्रंथ में कुल बारह अध्याय हैं। स्वयं इन्होंने ही इस पर कविप्रिया नाम की वृत्ति (टीका या भाष्य) लिखी-
प्रणम्य परमं ज्योतिर्वामनेन कविप्रिया।
काव्यालङ्कारसूत्राणां स्वेषां वृत्तिर्विधीयते।
उदाहरण के तौर पर अन्य कवियों के साथ-साथ अपनी कविताओं का भी उल्लेख किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि वे स्वयं भी कवि थे। लेकिन काव्यालंकार सूत्र के अलावा उनके किसी अन्य ग्रंथ का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। हो सकता है कि उन्होंने कुछ श्लोकों की रचना केवल इस ग्रंथ में उदाहरण लिए ही की हो।
काव्यालङ्कारसूत्र पर आचार्य वामन की कविप्रिया नामक वृत्ति ही मिलती है। इस पर किसी ऐसे आचार्य ने टीका नहीं लिखी जो प्रसिद्ध हों। लगता है कि कविप्रिया टीका में आचार्य वामन ने अपने ग्रंथ को इतना स्पष्ट कर दिया है कि अन्य परवर्ती आचार्यों ने अलग से टीका या भाष्य लिखने की आवश्यकता न समझी हो या यह हो सकता है कि आचार्यों ने टीकाएँ की हों, परन्तु वे आज उपलब्ध न हों। क्योंकि काव्यालंकारसूत्र बीच में लुप्त हो गया था। आचार्य मुकुलभट्ट (प्रतीहारेन्दुराज के गुरु) को इसकी प्रति कहीं से मिली, जो आज उपलब्ध है। इस बात का उल्लेख काव्यालंकार के टीकाकार आचार्य सहदेव ने किया है।
*** ***
पिछले अंक
|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4. आचार्य भामह ||, || 5. आचार्य दण्डी ||, || 6. काल–विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट|| |
Kavyashastra ki prastuti ki lekya dhanyavaad....
जवाब देंहटाएंVartman prapekshya mein hindi ki garima ko banaye rakhne ki disha mein aapka yah prayas sarahniya hai...
bahut dhanyavaad.
बहुत सार्थक और उम्दा आलेख!
जवाब देंहटाएंआपके प्रयासों की जितनी भी तारीफ़ की जए कम ह। इस विषय पर हर आलेख साहित्य के क्षात्रों के लिए अनमोल है।
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र के प्रणेता आचार्यों का क्रमवार वर्णन संग्रहणीय है। राय जी साहित्य के ग्रंथो पर पड़ी धूल साफ कर हम सबके समक्ष सरलीकृत रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साहित्य के प्रति उनके महती योगदान के लिए उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त किन्तु उपयोगी ! धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएं