-- मनोज कुमार
वृद्ध भूचारण देवी गांव की हवेलीनुमा मकान में भूतपूर्व महाराज की तरह कैदी जीवन व्यतीत करने को विवश हैं। एकमात्र पुत्र अपनी एकमात्र पत्नी एवं पुत्र के साथ शहर में हैं। मां-बाप तो बच्चों का नाम भी बहुत सोच समझ कर ही रखते हैं। भूचारण देवी औऱ उनके पति ने अपने पुत्र का नाम राजकुमार भी विचार कर ही रखा होगा। पर जवानी के आगमन के साथ राजकुमार निरंकुश होते गए और उन दिनों में जिससे आंख लड़ाई थी वह आज उनकी अर्द्धागिणी ही नहीं सर्वांगिणी बनी बैठी है।
राजकुमार की पत्नी रानी देवी मायके गई हुई थीं। बेचारे फौर द टाइम बिइंग ही सही, सुखी जीवन का रसास्वादन ले रहे थे। इस शांति में मोबाइल की घंटी ने घंटा-सा स्वरोच्चार किया। लपककर राजकुमार ने उसे थामा और दूसरे रिंग के पहले ही कॉल रिसिव कर लिया, वरना अगर दूसरी ओर रानी देवी हुईं तो उनके निष्कपट मन में निर्मूल शंका का समावेश राजकुमार की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता था।
फोन पर दूसरी ओर थे गांव के फुलेसर काका। बता रहे थे कि “मां का बस गंगा लाभ होने ही वाला है। आकर पुण्य कमा जाओ।” राजकुमार के दिल में मां के लिए अब भी जगह थी। वे मां को उठा लाए।
तीसरे दिन रानी देवी का पुरागमन हुआ। अपने शयनकक्ष के दुहरे बिस्तर पर इकहरी सी काया को लेटी देखकर रानी देवी के हृदय पर अंगारे लोटने लगे। राजकुमार जी मातृभक्ति में रत असीम सुख की तृप्ति ले रहे थे। इधर रानी जी तबे में रोटी की तरह जल-भुन कर खाक हुए जा रहीं थी। सास का पैर छू ईश्वर के कक्ष में पहुंची। ईश्वर की तरफ शिकायत भरी नज़र देकर बोलीं, “मेरे पीछे ये सब साजिश रच दी तू ने। ... और इस पूरे घर में मेरा ही बिस्तर मिला।” मायके से मिले खोंइछा को लगभग पटकते हुए देवता के सामने फेंका और राजकुमार के समक्ष उपस्थित हुईं।
राजकुमार जी के तो सारे तंतु रानीदेवी की निगाहों के संकेत के मोहताज थे। और जैसे ही कच्चा चबा जाने वाला संकेत मिला नए-नए श्रवण कुमार अपनी पुरानी औकात पर आ गए। ड्राइंग रूम के अलावा उस फ्लैट में स्टोर रूम ही था। उसी को खाली कर मां को उसमें उन्हें शिफ्ट कर दिया। इस
अब गृह साम्राज्ञी का दिल कैसे जीता जाए ? उन्होंने हिम्मत की, “अब उसके दिन कितने बचे हैं। दो-चार-दस दिन की बात है। किसी तरह निपट लो। फिर तो उसका क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का बैलेंस अपना होगा ही साथ ही थोड़ा यश, ढ़ेर सारा पुण्य भी हाथ लगेगा।” रानी देवी को बात जंची।
बीतते दिनों के साथ भूचारण देवी क्षीण के क्षीणतम होती गई। राजकुमार उनका उपचार करवाते रहे। उस दिन सुबह-सुबह रानी देवी किचन में चाय बना रही थीं, राजकुमार स्टोर कक्ष की ओर गए। भीतर से राजकुमार जी की आवाज आई “सुनती हो ! जरा इधर आना .......... कुछ गङबड़ है .............. ?”
रानी देवी झट से पहुंची। देखा अचल हो चुकी सास के रूप में उनके और चल संपत्ति के बीच की सबसे बड़ी बाधा दूर हो चुकी थी।
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जवाब देंहटाएंjamaane teri balihari tujhse duniya haari
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.....!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कथ्य ..खूबसूरत रचना..बधाई !!
जवाब देंहटाएंaisa beta kisee ma ko na de isee dua ke sath........
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी , विचारणीय
जवाब देंहटाएंHmmmmm....nothing to say :(
जवाब देंहटाएंकथा अच्छी लगी.
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