नाम आज कोई याँ नहीं लेता है उन्हों का !
जिन लोगों के कल मुल्क ये सब ज़ेर-ए-नगीं था !!
नमस्कार !
आज इस ब्लॉग यात्रा का छः मास पूरा हुआ। आपके सहयोग, स्नेह, शुभ-चिंतन, मार्गदर्शन के लिए कोटिशः धन्यवाद ! असमंजस में हूँ कि इस अर्धवार्षिक पड़ाव पर क्या आपकी नजर करूँ ? अखबार के एक पन्ने पर छपे विज्ञापननुमा नज़ारे से एक ख्याल आया। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने वर्षों पूर्व आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को वतन की राह में हँसते-हँसते फांसी के तख्ते को चूम लिया था। तो आओ "जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी !" शाहीद-ए-आजम के जिन्दगी की मुख़्तसर झांकी !
-- करण समस्तीपुरी
"हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है !
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर कोई पैदा !!"
अंग्रेजों के अधीन भारत के पंजाब प्रान्त के लायालपुर जिले के खटकर कलां गाँव में रहता था सरदार अर्जुन सिंह का परिवार। इसी परिवार के किशन सिंह संधू और विद्यावती के
घर जब 27 सितम्बर 1907 को नवजात बालक की किलकारी गूंजी तो दादा अर्जुन सिंह ने उसे नाम दिया, 'भगत.... भगत सिंह !'
"ओ मेरे अहबाब ! क्या-क्या नुमाया कर गए !
बी.ए किये, नौकर हुए, पेंशन मिली और मर गए !!"
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद से प्रभावित दादा ने पोते को शिक्षा के लिए लाहौर के डी.ए.वी हाई स्कूल भेजा। 'पोथी पढि-पढि तो जग मुआ.... ।' वतनपरस्ती के जज्बे वाले परिवार के वारिश भगत सिंह का जन्म तो किसी और उद्देश्य के लिए हुआ था। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन को बड़ी तवज्जो से देख रहे थे।
भगत सिंह तब लाहौर के नॅशनल कॉलेज में थे। पंजाब हिंदी साहित्य सम्मलेन की व्याख्यान प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता। भगत सिंह का यह व्याख्यान अनेक विरोक्तियों से लवरेज था, जिसने प्रो विद्यालंकार जी को बरबस आकर्षित किया। बाद में विद्यालंकार जी की प्रेरणा पर ही भगत सिंह ने रामप्रसाद 'बिस्मिल' और असफाक-उल्ला खाँ की पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोशिएसन के सदस्य बन गए। 1928 में दिल्ली में देश भर के क्रांतिकारियों की रैली हुई थी डेल्ही में, 'कीर्ति किसान पार्टी' के बैनर तले। भगत सिंह इसके महासचिव थे। देश भर में आजादी की चिंगारी को हवा देते रहे।
"सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ! देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है !!"
किस मजबूत मिट्टी का बने थे भगत सिंह.... उनके फौलादी इरादों की झलक तो तभी मिल गयी थी जब वे महज बीस साल की उम्र में पहली दफा जेल गए और देशी और विदेशी सभी राजनितिक बंदियों के लिए समान व्यवहार की मांग करते हुए जमा 64 दिनों तक उपवास किया था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दो धाराएँ हो गयी थी। गांधीजी के नरम-दल की अपेक्षा 'लाल-बाल-पाल' का गरम नेतृत्व भगत सिंह को अधिक रास आता था। 30 अक्तूबर 1928 को अंग्रेजों द्वारा लाये गए 'साइमन कमीशन' के शांतिपूर्ण विरोध मार्च का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपत राय पर ब्रिटिश पुलिस ने बर्बरता से लाठियां बरसाई। बुरी तरह चोटिल लाला जी बुढापे की दहलीज पर अंग्रेजी कहर झेल नहीं पाए और स्वर्ग सिधार गए। "लाला जी पर चली एक-एक लाठी अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में आखिरी कील होगी........" भगत सिंह ने लालजी की हत्या के दोषी पुलिस चीफ स्कॉट को मार गिराने की कसम खाई।
भगत सिंह के 'मिशन किल स्कॉट' में उनके साथी थे राजगुरु, सुखदेव और जय गोपाल। जय गोपाल पर था स्कॉट को पहचान कर भगत सिंह को इशारा करने का जिम्मा। पहचानने में भूल हुई और गोपाल के इशारे पर भगत सिंह ने लाहौर के डी.एस.पी सांडर्स पर गोलियां बरसा दी। लाहौर की पुलिस भगत सींह को पकड़ नहीं पायी। दाढ़ी और बाल कटा ऐसा भेष बदला कि जब तक कहे नहीं कोई न पहचाने। आज़ादी की लहर को देश भर में दौड़ाते रहे।
ब्रितानी हुकूमत अस्सेम्बली में 'डिफेन्स इंडिया एक्ट' लाने वाली थी। भगत सिंह के दल ने बिल को न लाने देने का फैसला किया। बिल लाया गया तो अस्सेम्बली में बम फेंका जाएगा। इस बार भगत सिंह के साथ थे बटुकेश्वर दत्त। 9 अप्रैल 1929 को लाहौर की अस्सेम्बली में दोनों ने आखिर बम तो फेंके ही साथ ही पर्चे भी बांटे जिस पर लिखा था, "बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है....!" बम फेंकें के बाद वे वहाँ से भागे नहीं। 'इन्कलाब - जिंदाबाद' कहते हुए खुद को गिरफ्तार होने दिया।
"मेरा रंग दे बसंती चोला.... रंग दे बसंती चोला.... माये रंग दे........ !!"
केस चला। चंद अभियोग लगाए गए। फांसी की सजा सुनाई गयी। 23 मार्च 1931 को सुबह 8 बजे फांसी मुक़र्रर हुई। लेकिन भगत सिंह की लोकप्रियता और खौफ का आलम यह कि इस से पहले कि लोगों का शैलाव उमर जाय और फांसी में किंचित बाधा न पड़े समय से पूर्व 6 बजे ही फांसी पर चढ़ा दिया गया।
"मशलहत का है तकाजा वक़्त की आवाज़ है !
राह-ए-वतन में मरने का यही अंदाज़ है !
असल में जान-ए-वतन तू वस्ल में जान-ए-वतन !
शान है तेरी वतन से और तू शान-ए-वतन !!"
जेल की प्राचीर में गूंजता रहा 'इन्कलाब - जिंदाबाद !' शहीद हो गए मातृभूमि के वीर सपूत। सच तो यही है कि इन्ही जांबाजों के शहादत पर खिला वतन की आज़ादी का गुल। किन्तु क्या इतनी कीमती आज़ादी आज सार्थक और अक्षुण है ....... ? या फिर हमें और कीमत देनी पड़ेगी ? गर देनी पड़े कीमत तो तैयार हो जाओ !!
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वरष मेले !
वतन पर मिटने वालों का यही बांकी निशां होगा !!"
bahut acchee prastuti ise lekh kee .aapke blog kee bhee badhai;
जवाब देंहटाएंshryddhanjalee dete hue accheeblog kee jayantee manaee aapne .
shubhkamnae.............
अमर शहीदों को शत-शत नमन
जवाब देंहटाएंशहीदों को शत-शत नमन!
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत सुंदर लेख लिखा, ओर चित्र भी बहुत अच्छॆ लगाये, इन शहीदो ने हमए बिन मांगे आजादी ले कर छीन कर अपनी जान दे कर ओर बिना शर्तो के दी, क्या हम इन की बात कामान रख रहे है? क्या हम इन शहिदो के बच्चे कहलाने के लायक है.
जवाब देंहटाएंइन्कलाब .... जिंदाबाद..... !!
जवाब देंहटाएं"AEE mere watan k logon zaraa aankh mein bhar lo pani jo shahid huee hain unki zaraa yaad karo KURBANI"
जवाब देंहटाएंi doubt k someone could counter these lines.
Aur aapne to aaj ye baatein bataa kar aur bhi logon ko ye sochene par majboor kar diya hai ki kya sach mein hamein jo aazaadi itni jaddo jahad se mili hai kya wo sarthak hai ya nahin.
once again salute to all those incredible people 'coz of whome we brethe in free air.
once again thanks alot to u mr.samastipuri aloooooooooottt.
बहुत सुन्दर लेख । अच्छा लगा आप जैसे लोग आज भी है जो अपने लेख से शहीदो की यादों को ताज़ा किये हुए है । गर्व है हमे शहीदो पर और अपने देश पर ।
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन.
जवाब देंहटाएंआधा साल पूरा करने के लिये बधाई.
6 mahine poore hone ki dhero bhadaiiyaan...
जवाब देंहटाएंआपको बहुत बधाई .. शहीदों को नमन !
जवाब देंहटाएंइस चित्रमय प्रस्तुति से कौन सहृदय भावुक न हो उठा होगा। यह ब्लॉग अनंतकाल तक साहित्यिक रसास्वादन का माध्यम बना रहे,ऐसी कामना है।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आप जैसे लोग आज भी है जो अपने लेख से शहीदो की यादों को ताज़ा किये हुए है । गर्व है हमे शहीदो पर और अपने देश पर| और भगत सिंह जी का औटोग्राफ वाला फोटो तो अनोखा है। अमर शहीदों को शत-शत नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और अच्छी जानकारी के लिए आभार
जवाब देंहटाएंजय हिंद
"सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ! देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है !!"
जवाब देंहटाएंThank u sooooooo much Karan Ji hume un amar shahidon ki yad dilane ke liye...jinhone apne desh ke azadi ke liye haste haste apne apko kurban kar diya...Un sabi Shahidon ko koti koti naman hai...
Is blog ke 6 mas pura karne ke liye ap sabhi ko bahot bahot subhkamnayen :)
आपने तो भगत सिंह जी के बड़े सुन्दर चित्र दिखाए और बेहतरीन जानकारी भी दी..शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएं----------------------
"पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
जवाब देंहटाएंशहीदों को मेरा शत शत नमन !
धन्यवाद, पाखी ! तमाम पाठकों का दिल से शुक्रगुजार हूँ !!
जवाब देंहटाएंशहीदों को मेरा शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंगर्व है हमे शहीदो पर और अपने देश पर ।
जवाब देंहटाएंशत्-शत् नमन!
जवाब देंहटाएंराम-नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!