बुधवार, 24 मार्च 2010

देसिल बयना 23 : मार खाई पीठिया......

-- करण समस्तीपुरी

जय हो ! जय हो !! भये प्रकट किरपाला..... दीन-दयाला कौसल्या हितकारी........... !!! बधाई हो रामनवमी का त्यौहार !!! अरे राम नवमी से याद आया......... ओह ! कहाँ गया उ दिन ! हाथ-पैर से होली का रंग छूटा नहीं कि जुट जाते थे रामनवमी के तैय्यारी में। धुजा-पताका, बंदनवार, फूल-माला, रंग-रोगन, नाच-गीत........ तैय्यारियो तो महाभारते जैसे करना पड़ता था। लेकिन एक बात है, महावीर थान में रामनवमी होता भी था बड़ा दंगल !


एक बार का किस्सा कहते हैं। रामनवमी में कीर्तन के लिए 'टोकना मठ' के बाबाजी लोग आये रहे। भकोलिया माय कहती थी कि ई लोग बेजोर कीर्तन करते हैं। तरह-तरह का रूप बना कर ऐसा स्वांग भरते कि लगे सारा अयोध्या नगरी अपने महावीर थान में पहुँच गयी है। ई रामनवमी में एक जुग पर 'टोकना-मठ' की मण्डली आ रही थी।


दुपहर में भगवान का जन्मोत्सव हुआ। फिर हनुमान जी का धाजा बदलाया और फिर लागले शुरू हुआ कीर्तन। हमलोग पछियारी टोला में खेल रहे थे। उहाँ लौडिसपीकर का आवाज आया... "ध.... धिन्ना... ध...ध... तिरकिट....... धिन ...... जनमे चारो ललनमा हो रामा....... दशरथ आंगनमा.... !!" हमरे मुँह से फट से निकला, 'अहि तोरी के...... चल रे बैजुआ ! महावीर थान में कीर्तन शुरू हो गया।' फिर जैसे ही थे वैसे ही सारा खेल तमाशा छोड़ हम, बैजू, पचकोरिया, घंटोलिया, अजगैबी, नेंगरा, कोकाई सब दौड़े सीधे पुरुब बगल।


बीच में हमरा घर पड़ता था, मझकोठी टोल में। हमरे परोसी थे, झुरुखन काका। उ का बेटा बटिया भी हमही लोगों के उमर का था। बेचारा उमर से लाखो गुना जादे काम करता था। झुरुखन काका तो अपने गांजा का सोंट मार के 'खो-खो... खो-खो' करते रहते थे और घर-द्वार, माल-जाल से लेकर खेती-पथारी का सारा काम बटिया और सुखिया दोनों भाई को करना पड़ता था। उ में थोड़ा भी गड़बड़ी हुआ कि दे धमक्का पीठ पर।


हमलोग इधर से बेतहासा दौड़े जा रहे थे। बटिया माल-मवेशी के लिए भुस्कार से गेहूं का भूसा निकाल रहा था। हमलोगों को भागते देख पूछा, "अरे ! कहाँ जा रहा है तुम लोग ?" "धुर्र बुरबक ! सुनाई नहीं दे रहा है..... महावीर ठन में 'टोकना-मठ' वाला मंडली का कीर्तन हो रहा है। वही देखे जा रहे हैं।", बैजू थोड़ा ठमकते हुए बोला। "रे तोरी के.... जरा ठहरो भाई ! हमभी चलते हैं।", कहते हुए बटिया माथा पर से टोकरी पटका और भूसा-उसा लगले हमलोगों के जमात में शामिल हो गया।


हम लोगों में सब से सीनियर था अजगैबी। बटिया से बोला, "मार खचरा कहीं का ! तू जो भूसा छोड़ कर चल दिया कीर्तन में, सो बापू कुछ कहेगा नहीं का ? का हाल होगा........ डर-उर है कि नहीं बापू का...?" "का होई...." बटिया भी बहुत दृढ़ता से जवाब दिया, "मार खाई पीठिया-अंखिया रोई ! हमनी का होई ?" मतलब मार पड़ेगी पीठ को और रोयेगा आँख... उस से मेरा क्या ? हा... हा...हा.... आ...हा...हा...हा.... ! एन्ह ! सो ठहक्का बाजरा बटिया के कहावत पर कि पूछिये मत। लौडिसपीकर का आवाज फिर आया, "राजा लुटाबे रामा अन्न-धन-सोनमा... ! रानी लुटाबे हाथ कंगनमा हो रामा...... दशरथ आंगनमा.... !!" हम लोग फिर दौड़ पड़े।


कीर्तन तो बड़ा मजेदार हो रहा था। लेकिन हमरा मन बार-बार बटिया के कहावत पर दौड़ जाता था, "मार खाई पीठिया-अंखिया रोई ! हमनी का होई ?" ..... आखिर मतलब का हुआ इसका ? एक पहर सांझ गए कीर्तन ख़तम हुआ। केला के पत्ता पर भर-भर के साबूदाना का खीर, गेंहू के रोट का लड्डू और मालभोग केला का परसाद पाए। फिर चले वापिस.... स्व-स्व स्थानं गच्छः ! लेकिन बटिया का कहावत अभियो हमरे मन में उधम मचाये हुआ था। आखिर हम पूछ ही लिए, 'बटेसर ! ई कहावत का मतलब का हुआ ? पीठ-आँख सब तो तुम्हारा ही है। चोट तो तुम्ही को लगेगी.... फिर ?


बटिया को तो कुछ कहते नहीं बना लेकिन कोकाई बोला, 'धुर्र... ! ई थेथर ( हठी, जिस पर किसी बात का असर नहीं होता) है। असल में इसका बापू ने इतना पीटा है कि अब इसे कौनो फर्क नहीं पड़ता। पीठ पर धौल जमा के बापू को संतुष्टि मिलती है कि पिटाई किया। थोड़ा-बहुत दर्द हुआ तो आँख से आंसू निकल गया। लेकिन उ से ई सुधर थोड़े न जाएगा। जिसको कभी-कभी डांट-फटकार, मार-पीट होती है, उ को फर्क पड़ता है। इसके लिए तो ई सब रोजाना की बात है। मार खाते-खाते थेथर हो गया है इसीलिए अब पीठ पर मुक्का पड़े, आँख से आंसू जाए, उस से इसका क्या.... कुछ फर्क नहीं।"


अच्छा ! तो ई था कहावत का मतलब। 'धमकी, दंड या अत्याचार कभी-कभार हो तब आदमी को उस से भय होता है। हमेशा मिलने वाले दंड से तो वह अभ्यस्त हो जाता है। फिर उस से न कोई भय न सुधार की कोई गुंजाइश। क्षण भर के लिए दर्द महसूस हो जाए लेकिन कोई दूरगामी प्रभाव नहीं पड़ने वाला। तो रामनवमी के अवसर पर यही था आज का देसिल बयना। इसी बात पर बोल दीजिये, 'अयोध्या-रामलला की जय !'

9 टिप्‍पणियां:

  1. kahavat ko charitarth karata drashtant accha laga.
    agalee kahavat ke intzar me .

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  2. रचना पढी, अच्छा लगा। रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएं

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  3. मजा आ गया....
    अब पहेलियों का भी मजा लीजिए.....
    .......
    विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html

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  4. कथा के रूप में कहावतों को समझाना बहुत बढ़िया प्रयास है....

    रामनवमी की शुभकामनायें

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  5. कथा के रूप में कहावतों को समझाने क आपका यह प्रयास है अनुपम है।
    रामनवमी की शुभकामनायें!

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  6. बढ़िया.

    रामनवमीं की मंगलकामनाएँ.

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  7. Ap sabi ka Ramnavmi ki subhkamanyen...
    Is bar ka desil bayna thik thak he raha....aur is desil bayna me sabse acha humko to sab logan ka nam laga ...jaise Bholakiya , Batiya...

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