काव्य शास्त्र-3
काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी
-आचार्य परशुराम राय
आचार्य भरतमुनि के बाद साहित्यशास्त्र के इतिहास पटल पर आचार्य भामह का काल छठवें विक्रम सम्वत का पूर्वार्ध माना गया। आचार्य भरतमुनि और आचार्य भामह के बीच लगभग छः- सात सौ वर्षों का एक लम्बा अन्तराल आता है। अन्य शास्त्रों में इस अवधि में अनेक ग्रंथों का प्रणयन हुआ, तो साहित्यशास्त्र का क्षेत्र सूना नहीं रहा होगा। निश्चित रूप से कई आचार्य हुए होंगे और कई ग्रंथ रचे गए होंगे। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस काल के कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं। आचार्य मेधाविरुद्र द्वारा उपमालंकार के दोषों का सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है, जिसका उल्लेख आचार्य भामह ने स्वयं अपने काव्यालंकार में उपमा अलंकार के दोषों को दर्शाते हुए किया है। उन्होंने आचार्य मेधावी के नाम का भी उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त वामन, दण्डी, रूद्रट, राजशेखर आदि आचार्यों ने भी अपने ग्रंथों में आचार्य मेधावी के नाम का उल्लेख करते हुए इनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों की चर्चा की है।
वर्तमान में आचार्य मेधावी का कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। चूंकि आचार्य भामह ने अपने ग्रंथ में इनके नाम का उल्लेख किया है, तो यह निश्चित है कि ये उनके पूर्ववर्ती आचार्य हैं। इनके जीवन काल के सम्बन्ध में केवल इतना ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वे आचार्य भरत और आचार्य भामह के बीच में आते हैं।
परवर्ती आचार्यों ने आचार्य मेधावी को निम्नलिखित तीन सिद्धांतों के निरूपण हेतु याद किया हैः
1.उपमादोष निरूपण
2.यथासंख्य अलंकार को उत्प्रेक्षा से अलग अलंकार मानना।
3.पाँच के स्थान पर केवल चार शब्द विभाग मानना अर्थात नाम, आख्यात, उपसर्ग, निपात।
(शब्द के पाँच विभाग हैं- नाम, आख्यात (क्रिया), उपसर्ग, निपात, कर्मप्रवचनीय - वे उपसर्ग या अव्यय, जो क्रियाओं के साथ सम्बद्ध न होकर संज्ञाओं का शासन करते हैं।)
आचार्य मेधावी अन्तिम विभाग अर्थात् कर्मप्रवचनीय को नहीं मानते। निरुक्तकार महर्षि यास्क का मत भी यही है।
आचार्य मेधाविरुद्र के ग्रंथों की अनुपलब्धि साहित्यशास्त्र के लिए बहुत बड़ी क्षति है।
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Hindi kavyashastr ka abhyas karnewalon ke liye atiuttam jaankaaree...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा कि कुछ लोग ऐसा लिख रहे हैं जो स्तरीय है; जिससे कुछ नया सीखने को मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंbahut gyanvrdhk.
जवाब देंहटाएंBahut hi gyaanvardhak post hai...aapko bahut bahut dhanywaad!
जवाब देंहटाएंSaadar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
उत्तम जानकारी.
जवाब देंहटाएंआज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है। संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह श्रृंखला इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
जवाब देंहटाएंक्यूकिं साहित्य का छात्र हूं,इसलिए यह जानकारी अच्छी लग रही है.
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी और रोचक जानकारी दी है आपने---शुभकामनायें। पूनम
जवाब देंहटाएंachi jankari...
जवाब देंहटाएंkshama ji bilkul sahi kahi ,bahut aham jaankaria rahi ,achchhi lagi post .
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण, रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट! अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस श्रृंखला के अंतर्गत आपकी प्रस्तुति मेरी भविष्यत् योजनाओं के लिए धरोहर हैं ! आभार !!!
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