बंटवारा |
-- मनोज कुमार
बंटवारा तो जैसे कुदरत का नियम ही है। आर्थिक रूप से पिछड़े समाज में, पिता के गुज़रते ही पुत्रों में संपत्ति (चल-अचल ) का बंटवारा तो एकदम तय है। पर जीवन बाबू की जिंदगी में ऐसी नौबत ही नहीं आई। रेलवे में पूछताछ लिपिक की नौकरी से जो धनराशि वेतन के रूप में मिलती थी वह चार बच्चों के लालन-पालन में ही शेष हो जाता था। पैतृक ज़मीन भी बेटियों के ब्याह में एक-एक कर बिक गई। जीवन बाबू की पत्नी बच्चों के लालन-पालन की चक्की में ऐसी पिसी कि अपने शरीर का ख़्याल रखना ही भूल गईं बेचारी का शरीर तमाम बीमारियों का घर हो गया।
एक दिन जीवन बाबू सुबह-सुबह सैर कर रहे थे। ना जाने कौन सी हवा लगी, उन्होंने बिस्तर धर लिया। स्थानीय उपचार से उनका रोग ठीक नहीं हो पाया। जीवन बाबू ने पहले बिस्तर पकड़ा फिर लगभग मति-शून्य अवस्था में आ गए। उनकी पत्नी तो पहले ही बिस्तर का बोझ बन चुकी थी। जीवन बाबू को नौकरी से मेडिकली बोर्ड आउट कर दिया गया। पेंशन के नाम पर घर की आय आधी हो गई। ऑफिस के ही सहकर्मियों ने उन्हें सरकारी आवास से गांव के पैतृक आवास तक पहुँचा दिया।
समस्या तो अब थी। पेंशन की आयवाले इस दंपति की देख भाल कौन करे? दोनों बेटों की शाम में बैठकी हुई। स्थिति पर विचार किया गया। उनमें जो छोटा था उसने बड़े को प्रस्ताव दिया, "देखो तुम तो थोड़ा बहुत कमा भी लेते हो पर मैं तो कुछ भी नहीं कमाता। अतः मां को तुम रख लो और उनकी देख-भाल, दबा-दारू करवाओ। पिताजी को मैं रख लेता हूँ। उनके पेंशन से मैं उनकी देखभाल दवा दारू करवा दूँगा।" यह बात मान्य थी, दोनों को। इस तरह उस घर की चल-अचल संपत्ति का भी बंटवारा हो गया।
बागवान फिल्म यूँ ही नहीं बनी...
जवाब देंहटाएंसंपत्ति के साथ-साथ दायित्व का भी बटवारा होता है..मगर बेटे यह भूल जाते हैं कि उनका जन्म माता-पिता के बंटवारे का नहीं मिलन का परिणाम था.
आज के यथार्थ पर चोट करती एक अच्छी कहानी.
जवाब देंहटाएंaaj ka yatharth ye hee hai..............
जवाब देंहटाएंsahee chitran ............
kaliyug hai ab shravan kumar kanha...........?
सटीक चित्रण किया है स्थिति का आपने इस लघुकथा के माध्यम से...परन्तु दुर्भाग्य से मैंने इससे भी बदतर स्थितियां देखीं हैं इस समाज में...
जवाब देंहटाएंसबको जाना और पहुंचना वहीँ है,पर समय रहते कोई चेत नहीं पाता...
बंटवारा तो जैसे कुदरत का नियम ही है। आर्थिक रूप से पिछड़े समाज में, पिता के गुज़रते ही पुत्रों में संपत्ति (चल-अचल ) का बंटवारा तो एकदम तय है।.... बिलकुल सही कहा आपने.... .
जवाब देंहटाएंजीवन के यथार्थ को दिखाती .... मार्मिक कहानी....
यथार्थ किन्तु क्रूर सत्य।
जवाब देंहटाएंसच को उजागर करती एक अच्छी कहानी जो एक संदेश भी देती है.
जवाब देंहटाएंजीवन के यथार्थ को बताती रचना....मार्मिक है..
जवाब देंहटाएंबंटवारा तो जैसे कुदरत का नियम ही है। आर्थिक रूप से पिछड़े समाज में, पिता के गुज़रते ही पुत्रों में संपत्ति (चल-अचल ) का बंटवारा तो एकदम तय है। आज के यथार्थ पर चोट करती एक अच्छी कहानी.
जवाब देंहटाएंमार्मिक !! लेकिन यह नालायक भुल गये, कल इन का भी बटवारा होना है, आज का सच आप की कलम से मनोज जी
जवाब देंहटाएंBahot he emotional aalekh...Baghban movie ki yad dilate hue dil ko chhu gai...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआग्रहों से दूर वास्तविक जमीन और अंतर्विरोधों के कई नमूने प्रस्तुत करता है।
जवाब देंहटाएंऔर इस तरह बटवारा हो गया ... बहुत देर तक गूँजती रही आपकी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक और आज का कड़ुवा सत्य ...
बहुत ही सुन्दरता से आपने आज की सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है! मार्मिक कहानी!
जवाब देंहटाएंसच को उजागर करती एक अच्छी कहानी जो एक संदेश भी देती है.
जवाब देंहटाएंक्रूर सत्य का निर्मम चित्रण ! श्लिष्ट शैली !! सम्प्रेशानीय भाषा !!!
जवाब देंहटाएंदोनों को भी एक रख ले..शायद बिना दवा के कुछ और दिन जी जाएं, बिरहो तो ऐसे ही जान ले लेगा। बंटवारा बुरा है, देश हो या घर का।
जवाब देंहटाएंआपने इस लघु कथा में समाज में घट रहे यथार्थ से परिचय कराया है
जवाब देंहटाएंचित्त को झकझोर ने वाले चितंन को पणाम- -डॉ० डंडा लखनवी