पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का परिवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना! फिर रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! रामदुलारी अब पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत है ! गाँव में रामदुलारी के खुले विचारों की कटु-चर्चा होती है ! रामदुलारी से प्रकाश की और रुचिरा से समीर की मित्रता प्रगाढ़ होती जाती है ! शिवरात्रि में रामदुलारी गाँव के मंदिर पर शिव-विवाह कीर्तन सुनने जाती है ! अब पढ़िए आगे !! -- करण समस्तीपुरी
......... मंदिर पर व्यासजी के प्रवचन ने मैय्या के उत्कट इच्छाओं को उत्तप्त कर दिया था। उधर वर्तमान पारिवारिक माहौल और बाबा की चुप्पी से रामदुलारी को आसन्न तूफ़ान की कुछ-कुछ आशंका हो चली थी। पता नहीं क्यूँ व्यास जी के प्रवचन में 'पारवती' की जगह हमेशा वह 'स्वयं' को पा रही थी। लेकिन एक अज्ञात भय.... शायद वही उसे मैय्या से आँखें चार नहीं करने दे रहा। शाम को मैय्या उसी के कमरे में रामदुलारी से सीधा अपना लक्ष्य प्रस्तुत कर देती है।
“गृहस्थ सुख सबसे बड़ा सुख है। मां-बाप का सबसे बड़ा सपना साकार तब होता है जब वह कन्यादान कर देता है। अब तेरे भी हाथ पीले हो जाएं तो हमारा बैतरणी पार हो जाए।”
रामदुलारी थोड़ा खींझते हुए बोली, “मैय्या ! जिस पचड़े में फँसना नहीं चाहती, तुम उसी में मुझे डालना चाहती हो”
मैय्या बोली, “मैं यह समझ नहीं पाई कि तू इससे क्यों बचना चाहती है? घर-गृहस्ती के बसाने में पचड़े में फँसने वाली कौन-सी बात हो गई?”
“ऐसी बात नहीं है मैय्या। देख मैय्या ! अभी मुझे शोधग्रंथ तैयार करना है। उसमें मुझे अत्यधिक समय देना होगा। और अगर घर-गृहस्ती के जंजाल में फँस गई तो मैं ऐसा कर नहीं पाऊँगी।”
सुकर मां हंसने लगी। बोली, “देख बेटी, घर-गृहस्थी तो सबको बसाना होता है। और सही उम्र में यह हो तो ही अच्छा और परम शुभ। फिर दोनों मिलकर अपना काम करना। तुम्हारी पढ़ाई भी चलती रहेगी। हम ऐसा लड़का खोजेंगे जो शहर में रहता हो।”
रामदुलारी चिढ़कर बोला, “मैय्या, मुझे इस बंधन में बांधने की हठ मत करो। वरना इस बार मैं शहर गई तो पुनः वापस नहीं आऊँगी।”
मैय्या हंसने लगी। “अरे ! बेटी हम तुम्हारा विवाह कल थोड़े ही कर रहें हैं। हम तो तुमारी इच्छा जानना चाह रहें हैं। और तुम भाग कर न आने की बात कर रही हो। ”
इघर जब उर्मिला देवी ने अपने पति को पुत्री के साथ हुए वार्तालाप का अंश सुनाया तो गोवर्धन महाशय की त्योरियां चढ़ आई। उन्होंने अपने एक रिश्तेदार को पहले ही पत्र लिख रखा था। रामदुलारी अब बड़ी हो गई है। उसके लिए कोई सुपात्र ध्यान में हो तो फौरन लिखना। अच्छा तो यही होगा कि जाकर बात ही कर आना। हां उस लिखा पढ़ी का परिणाम यह हुआ कि ठाकुर बचन सिंह एवं बांके के परिवार वालों से उसके रिश्ते की बात चली। बात आगे बढ़ी।
एक फेरा गिरधर बाबू भी लगा आए थे। बांके के विशिष्ट व्यक्तित्व ने उन्हें काफी प्रभावित किया था। बचन सिंह की वाचालता के आगे तो वे अत्यंत ही बौने साबित हुए। कुल मिलाकर ठाकुर बचन सिं के परिवार से परम संतुष्ट हो गिरधर बाबू ने अपने भैया गोवर्धन बाबू को माधोपुर वालों के बारे में ऐसा समां बांधा कि उर्मिला देवी और गोवर्धन बाबू मंत्रमुग्ध हो सुनते रहे और उनकी इच्छा हो रही थी कि गिरधारी बोलता ही जाए। उर्मिला दोवी तो बांके को आज ही दामाद बन लें इस मुद्रा में आ गईं। रामदुलारी इस घटनाक्रम से अनजान अपने हॉस्टल का प्रवास भोग रही थी।
बाबा से सलाह-मशविरा किया गया और तय यह हुआ कि मुरली बाबू जाकर रामदुलारी को बुला लाएं ताकि उससे बात की जाए, उसकी हामी ली जाए।
छोटका चाचा के साथ रामदुलारी राघोपुर पहुंच गई थी। सबको माबूम था कि वह सिर्फ शिवरात भर ही रहेगी। बहुत ही महत्वपूर्ण काम उसका चल रहा था अतः सुबह ही उसे जाना होगा। मां और चाची ने उसे बुलाए जाने का मन्तव्य स्पष्ट किया साथ ही गाँव में हो रही अहवाह से भी उसे अवगत कराना नहीं भूली । रामदुलारी को हल्का क्रोध तो आया था। शादी के नाम पर उसके नकारात्मक भाव-भंगिमा से गोबर्धन बाबू भी चिढ गए थे।
........ “शहर की हो कर रह गई है छोरी ! कहती हूँ ब्याह कर ले। पच्चीस की हो रही है। इधर-उधर आंख मटक्का न कर। माधोपुर के ठाकुर जी का संदेश आया था। उनका लड़का इंजीनियर है। देखने-सुनने में भी अच्छा है। ज़्यादा मांग भी नहीं रहें हैं। लाख-दो-लाख में बात तय हो जाएगी। शादी-बियाह, बाल-बच्चा समय से ही अच्छा लगता है। ... हमारी त नाक कटवा के रहेगी। ”
पिता का स्वर भी उतरने लगा। .... “मेरी बिरादरी में इतने दिन का कमाया हुआ इज़्ज़त प्रतिष्ठा है। तभी तो रिश्ता लेकर माधोपुर के बचनसिंह हमारे द्वार पर आए।”
मैय्या तो गला फाड़कर रोने ही लगा। उसके रुदन का स्वर सुन बाबू ने कहा था, “तुम इस अभागन के लिए रोती हो रामदुलारी की मां। अरे ! हमारे पूर्व जनम के कोई पाप ही थे जो ई हमारे घर में पैदा हुई। अच्छा-भला विवाह तय कर रहें है इसका। लड़का इतना पढ़-लिखा, होनहार है। सरकारी नौकरी में है। जाकर राज करती, राज ! पर इस लड़की के सिर चढ़ गए हैं। पढ़-लिख कर तो इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। इससे बात करना ही व्यर्थ है।”
“मेरी पढ़ाई अभी अधूरी है।” इतना ही तो कह पाई थी रामदुलारी।
“अरे ! शादी-ब्याह करके लोग पढ़ाई नहीं करते क्या ? और पढ़के कौन तुझे कलक्टरी करनी है। घर के चूल्हे-चौके ही तो करने हैं। फिर जब पचीस पार कर जाएगी तो कौन पूछेगा ?”
“ऐसी बात नहीं है बाबू। पढ़ाई से ज्ञान अर्जन करना तो चाहिए न। मुझे क्या हर लड़की को समुचित रूप से शिक्षित होना चाहिए। शादी के बाद घर गृहस्थी के चक्कर में मेरी पढ़ाई अधूरी रह जाएगी।”
बाबू का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया, “देख तू मेरे सामने अपने पढ़ाई-लिखाई का दर्शन-ज्ञान मत बघार। मार-मार कर भुरकुस निकाल दूंगा।”
”रहने देव जी।” अब मैया ने मोर्चा संभाला था, ”आप बेसी करोध मते कीजिए। जवान छोरी है। कुछ कर लेगी त ...।”
”इसने तो हमारी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया है। मिट्टी में मिला दिया हमारी इज़्ज़त प्रतिष्ठा को। जा अभागन दूर हो जा। तू कभी सुख-चैन से नहीं रहेगी।”
रामदुलारी इसे पिता का प्रेमवश दिया हुआ शाप मान कर अलग हो गई। पिता के ऐसे शाप तो वरदान होते हैं।
सुबह जब वह प्रस्थान करने लगी तो मैय्या की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। यह देख रामदुलारी का दिल भर आया। मैय्या के पास गई और पूछा, “काहे मैय्या?”
“तू-त चुप्पे-चुप्पे जा रही है। कोई बचन भी नहीं दी।”
रामदुलारी न जाने किस भावावेश में बोल गई, “मैं पहले पढ़ाई तो पूरी कर लूं मैय्या। फिर तू जहां कहेगी वहीं करूँगी ब्याह। तेरी सौगंध”
****
क्या होता है रामदुलारी के सपनों का ? उसकी शिक्षा का.... ? कितनी कीमत चुकानी पड़ती है बाबू और मैय्या के जिद की, रुढियों की, लड़की होने की ? पढ़िए अगले हफ्ते इसी ब्लॉग पर !!
पड़ाव |
भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37|| |
karan jee !mujhe nahee pata ki aapkee aage kee kya yojana hai kahanee ko lekar par vishvas hai ki naree ke aatmvishvas ko ttotne nahee denge aap.......
जवाब देंहटाएंGavo me bhee parivartan dheere dheere aana to hai hee.........
अब देखना होगा कि रामदुलारी ब्याह के बारे में मां को दिए गए वचन पर कायम रह पाती है नहीं.
जवाब देंहटाएंकड़ी अच्छी लगी.
कड़ी अच्छी लगी. खासकर इसकी भाषा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया कहानी चल रही है..अगली कड़ी का इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चल रही है कहानी.... अब आगे का इंतज़ार है...
जवाब देंहटाएंआशा है रामदुलारी सभी बाधाओं को पार कर जायेगी। अगली कड़ी का इंतज़ार।
जवाब देंहटाएंRAMDULARI KE AATMVISHWAS KO DEKHKAR TO YAHI LAGTA HAI USKE SAPNE JARAUR SAKAR HONEGE...NA USKE MAIYA NA HE BABUJI USKE SAPNO KE BICH AA PAYENGE AUR NA HE USSE LADKI HONE KI KIMAT CHUKANI PADEGI..
जवाब देंहटाएंBAKI TO KARAN JI APLOGO... BOLE TO WRITER PAR DEPEND KARTA HAI KI KAHANI KO KIS MOD PAR LE JANA HAI...
BUT YE EPISODE INTERSTING RAHA...JALDI SE AAGE KA EPISODE PESH KIYA JAYE :)
karan ji aapki bhasha aur shaili bahut sahaj aur saral hai. likhate rahen....
जवाब देंहटाएंKahani achhi lag rahi hai, deshag shabdon ka bahut achha mixan karte hain aap..
जवाब देंहटाएंBahut badhai.
कहानी अच्छी लगी। इंतजार रहेगा अगली कडी का,शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंपढ़ाई और शादी के द्वन्द्व तो पुराने और नये जमाने के टकराव के दर्द हैं। कथा अच्छी चल रही है।
जवाब देंहटाएंsab purani kisht padh raha hu baith kar...
जवाब देंहटाएं