पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, 'कैसे रामदुलारी तमाम विरोध और विषमताओं के
बावजूद पटना आकर स्नातकोत्तर तक पढाई करती है। बिहार के साहित्यिक गलियारे में उसका दखल शुरू ही होता है कि वह गाँव लौट जाती है। फिर सी.पी.डब्ल्यू.डी. के अभियंता
बांके बिहारी से परिणय सूत्र में बंध पुनः पटना आ जाती है। अब पढ़िए आगे॥ -- मनोज कुमार
धीरे-धीरे किसी तरह समय बीतता गया। रामदुलारी अपनी पढ़ाई की भूख मिटाती रही। उसकी जीवन चर्याथोड़ी बहुत बदल चुकी थी।
साहित्य की पुस्तकों के प्रति रामदुलारी का मोह बना हुआ था। पिछली बार जब वह राघोपुर गई थी तो अपनी ढेर सारी पुस्तकें वह ले आई थी। वह उन्हें आलमारी में सजा कर रख रही थी कि उसी समय बांकेवहां से गुज़रा। उसका वहां से उपेक्षा भरी दृष्टिपात कर चला जाना रामदुलारी को अप्रिय लगा। उसने मन-ही-मन सोचा यदि वह इन्हें छू भी लें तो मेरी साहित्य साधना सफल हो जाती।
हां प्रथम बार जब वह पुस्तकों को थैले में भर कर अपने मायके से लेकर आई थी तो बांके ने अवश्य पूछा था, “क्या है?”
साहित्य की पुस्तकों के प्रति रामदुलारी का मोह बना हुआ था। पिछली बार जब वह राघोपुर गई थी तो अपनी ढेर सारी पुस्तकें वह ले आई थी। वह उन्हें आलमारी में सजा कर रख रही थी कि उसी समय बांकेवहां से गुज़रा। उसका वहां से उपेक्षा भरी दृष्टिपात कर चला जाना रामदुलारी को अप्रिय लगा। उसने मन-ही-मन सोचा यदि वह इन्हें छू भी लें तो मेरी साहित्य साधना सफल हो जाती।
हां प्रथम बार जब वह पुस्तकों को थैले में भर कर अपने मायके से लेकर आई थी तो बांके ने अवश्य पूछा था, “क्या है?”
राम्दुलारी बहुत ही प्रसन्नता से कहा था, “पुस्तकें। अति उच्च कोटि के साहित्यकारों की।”रामदुलारी के नयनों में अप्रतिम उत्साह भरा था। शायद इनकी भी रूचि हो इनमें।
बांके ने अजीब स्वर में कहा, “पुस्तकें। इतनी पुस्तकें क्यों लाई हो? इसे रखोगी कहां? घर में जगह कितनी है?”
रामदुलारी अवाक हो कर उसका मुंह देखने लगी। इतने सारे प्रश्न एक साथ। यह तो मेरी साधना है…….। बांके उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आगे बढ़ गया।
राम दुलारी के मन में आया, ’पुरुष होते ही ऐसे हैं।
चुटीले व्यंग्य कसना, ताने मारना तो बाकें की आदत में शुमार था। पर नारी का हृदय कोमल होता है।बांके के द्वारा आए दिन किए जाने वाले व्यंग्यवाण से उसका हृदय बिंधने लगा था। कभी शहद की तरह का उपमा पा चुके उसकी मधुर वाणी अब बांके को कर्कश लगती और वह बोल पड़ता, “थोड़े धीमे स्वर का प्रयोग करोगी तो अच्छा रहेगा।”
रामदुलारी जवाब देती, “मेरा तो यह स्वर आरंभ से ऐसा ही रहा है जी।”
राम दुलारी का जवाब देना बांके को नहीं सुहाता। उसके जवाबों से बांके आहत होता। उसे लगता उसकी पत्नी सदैव उत्तर के वाण लिए तैयार बैठी रहती है। बहुत पढ़ी-लिखी है न? पढ़ाई का घमंड है।”
ये पढी लिखी बिवी होना भी पुरुषों के लिए अहं का करण हो जाता है।
एक बार रामदुलारी तीव्र गति से सीढ़ियां उतर रही थी। उसके वेग से अप्रसन्न हो बांके ने टोक दिया, “यदि मंद गति से चलोगी तो अच्छा नहीं होगा क्या? लग रहा है मानों कहीं पहुंचने की ……………….”
आगे के शब्द काट कर रामदुलारी ने तुरंत उत्तर दिया, “हमें तो ऐसे ही चलना आता है जी।” उसने तो बस यूं ही मुस्कुराते हुए पति को रिझाने के लिए कहा था।
पर कभी उसकी चाल पर मोहित बांके आज उसकी वाचालता पर अपमानित महसूस कर रहा था।
बहुत सी ऐसी घटनाएं प्रतिदिन घट रही थी, जो संबंध के बीच नीम के पत्ते का रस घोल रही थी। माधुर्य मंद पड़ रहा था।
एक दिन रामदुलारी ने शिक्षिका की नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरने का प्रस्ताव अपने पति के समक्ष रखा तो बांके ने तुरंत मना कर दिया।
“आपको मेरी उन्नति अच्छी नहीं लगती जी।” उसके स्वर में खिन्नता थी।
बांके ने उसकी ओर आकुलता से देखा। “तुम्हारी उन्नति न चाहने का प्रश्न नहीं है। दुःख तो मुझे यह है कि जिस दरवाजे पर सैंकड़ों व्यवसायी आकर सिर झुकाते हों, उस घर की बहू किसी और की चाकरी करे, मुझे पसंद नहीं।”
क्रोध भरी वाणी और कटु वचनों ने उसके रोम-रोम को झुलसा दिया था। रामदुलारी किंकर्तव्यविमूढ़ सिर झुकाए खड़ी रही। उसे अपने वैवाहिक जीवन के कुछेक महीनों में ही वह पहला बड़ा आघात लगा था। अपने पति से इस तरह के व्यवहार की वह कल्पना तक नहीं कर सकती थी। उसे लगा अपने परिवार वालों और संबंधियों से अपमानित होना, अग्नि के बिना ही शरीर को जलाते हैं। किंतु वह संयमित रही। जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है। वह अपने परिवार के वृक्ष को हरा भरा रखना चाहती थी ताकि उसमें मधुर फल लगे।
साथ ही वह अपने निश्चयों पर दृढ़ थी। अपनी स्वावलंबता से वह कदापि समझौता नहीं करेगी। बांके को यह समझना होगा कि स्त्री भी आर्थिक रूप से स्वंतत्र रहना चाहती है। इसी निश्चय के साथ वह अपने शयन कक्ष में चली गई।
रामदुलारी को विपत्ति की इस गहन बेला में स्वंय का दृढ़ निश्चय ही उसे अपनों से भी बढ़कर दिलासा देने वाला लगा था।
एक बार फिर वर्तमान और भविष्य के दो राहे पर खड़ी है रामदुलारी ! किस तरफ ले जाता है उसका फैसला.... !! पढ़िए अगले हफ्ते !!! इसी ब्लॉग पर !!!!
pati-patni ke beech ubharte matbhedon ka sateek chitran kar aage badhti kahani aaj ke samay kee bhi bidambana hai...
जवाब देंहटाएं...Kahani kee saarthakta ke liye dhanyavaad.
अफसोस हो रहा है कि इस लिंक पर शुरू से नज़र क्यों नहीं रखी।
जवाब देंहटाएंAb to aap par badee jimmedaree aan padee hai Keshav jee.......kis mod par le jate hai aap apanee neyika ko............
जवाब देंहटाएंAgalee kadee kee pratiksha me .
वर्तमान परिवेश का जीवन्त चित्रण!
जवाब देंहटाएंबहुत तरीके से आज की सामाजिक स्थिति का रोचक चित्रण किया है आपने। अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सार्थक चिंतन को प्रेरित करती पोस्ट ,उम्दा प्रस्तुती ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चल रही है आप की यह कहानी , आज के हालात पर... अगली कडी का इंतजार
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश का जीवन्त चित्रण!
जवाब देंहटाएंकहानी मुड़ रही है वास्तविकत की ओर। अगली कड़ी की प्रतीक्षा।
जवाब देंहटाएंआज की सामाजिक स्थिति का रोचक चित्रण किया है आपने। अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंत्याग पत्र का हमें बेसब्री से इंतज़ार रहता है। इस बार का अंक तो लाजवाब है! बोले तो ... वर्तमान परिवेश का जीवन्त चित्रण!
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन को प्रेरित करती पोस्ट ,उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश का जीवन्त चित्रण!
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी की प्रतीक्षा।