मंगलवार, 29 जून 2010

देखो बह न जाएं कहीं ये अश्क के मोती

देखो बह न जाएं कहीं ये अश्क के मोती

मेरा फोटोहरीश प्रकाश गुप्त

 

देखो बह न जाएं कहीं

ये अश्क के मोती।

उद्वेगों के समन्दर में

व्यथाओं का

हुआ मंथन

शिराएं जब हुईं आहत

बहीं/बन-

जलधार अन्तर से।

सहना

है बड़ा दुश्वर

पदाहत इनके होने का

न कोई मोल जाने

जब ये ढुलकें

बन जल बूँद नयनों से।

हृदय की पीर से

उपजी है धारा

कौन ये समझे,

वेदनाओं के उदधि से

फूट करुणा -

मेघ बन बरसे।

सम्भालो इनको

रख लो तुम

सुनहरे पल के

आँचल में

बिखेरो खुशबुओं के साथ

चम्पा और चमेली के।

27 टिप्‍पणियां:

  1. उद्वेगों के समन्दर में

    व्यथाओं का

    हुआ मंथन

    शिराएं जब हुईं आहत

    बहीं/बन-
    गहरे एहसास, सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें

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  2. हरीश जी इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है। आपने इस कविता में अपने-आपको बहुत अच्छी तरह से बखूबी ढ़ाला है, और ऐसा लग रहा है कि आप बोल रहें हो या नहीं, आपकी कविता ज़रूर बोल रही है।

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  3. हृदय की पीर से
    उपजी है धारा
    कौन ये समझे,
    वेदनाओं के उदधि

    वेदना को व्यक्त करते हैं आँसू
    सुन्दर रचना

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  4. @ मनोज जी,
    कविता की सफलता है कि वह भावों के स्तर पर, संवेदना के स्तर पर पाठक के अन्तर्मन को स्पर्श करे। इस कविता ने आप सहित सभी पाठकगण में यह अवुभूति जगाई, इसकी मुझे खुशी है और मैं सबका आभारी हूँ।

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  5. कविता पढने के उपरान्त बहुत देर तक पता नहीं मैं मुझ से कहाँ दूर चला गया था... जब लौटा तो तीन शे'र याद आये,

    'दर्द को दिल में जगह दे अकबर !
    इल्म से शायरी नहीं आती !!

    मेरे सीने में हो या कि तेरे सीने में !
    हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए !!

    अब ये भी नहीं अच्छा कि हर ग़म ही मिटा दें,
    कुछ ग़म तो सीने से लगाने के लिए भी हैं !!

    अगर आशुतोष ने कालकूट को ग्रीवास्थ नहीं किया होता तो सृष्टि में जीवन का हास कैसे आता ! देखो बह न जाएं कहीं
    ये अश्क के मोती............. बिखेरो खुशबुओं के साथ, चम्पा और चमेली के.......... !! बहुत सुन्दर रचना... !!!

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  8. वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रण।

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  9. एहसासों को खूबसूरत शब्दों में ढला है....सुन्दर रचना ....चित्रों ने और सुन्दर बना दिया..

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  10. अरे ये हरीश जी की है ....मैंने सोचा आपकी है ......!!

    बहुत सुंदर .....!!

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  11. बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना..बधाई.


    ___________________________
    'पाखी की दुनिया' में स्कूल आज से खुल गए...आप भी देखिये मेरा पहला दिन.

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  12. खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...साधुवाद.

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  13. बहुत सुन्दर कविता. कोमल अभिव्यक्ति.

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  14. बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना

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  15. वेदना को व्यक्त करते हैं आँसू
    सुन्दर रचना

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  16. कोई चाहे न चाहे,इस कविता से गुजरते हुए भावुक हो ही जाएगा।

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  17. @ करण जी,
    आपकी भावनाओं का मैं आदर करता हूँ।
    गीत के सन्दर्भ में आप द्वारा कहे गए चन्द शेर गीत की आभा में श्रीवृद्धि कर रहे हैं।
    आभार,

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  18. @ हरकीरत जी,
    मैं कोई प्रतिष्ठित रचनाकार तो हूँ नहीं, अतः भ्रम होना स्वाभाविक है।
    आपकी प्रतिक्रिया का मैं आदर करता हूँ।

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  19. आप की इस रचना को शुक्रवार, 2/7/2010 के चर्चा मंच के लिए लिया जा रहा है.

    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

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