झूठ बोले कौआ काटे
-- मनोज कुमार
उस दिन सुबह सुबह दफ्तर पहुंचा तो माहौल विचित्र था। सीपी काफी तमतमाया हुआ इधर से उधर घूम रहा था और कुछ बड़बड़ाए जा रहा था। पी ए से पूछा तो मालूम हुआ कि सीट पर बैठते ही सीपी के हाथों अर्दली ने ट्रांसफर आर्डर थमा दिया। कोलकाता से कटनी ट्रांसफर का आदेश देख कर उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तब से वह अपने शब्दकोश के सारे सभ्य सुशील शब्दों का बड़े असंयत भाव से प्रयोग कर रहा है।
खैर में अपने दैनिक कार्यों का निपटारे करने में लग गया और एक महत्वपूर्ण फाइल जिस पर बड़े साहब से चर्चा करनी थी, को लेकर उनेक दफ्तर में गया और विचार-विमर्श करने लगा।
थोड़ी ही देर बीते थे कि अपना सीपी अनुमति लेकर भीतर प्रवेश किया और बड़े साहब के बैठने का इशारा किए जाने के बावजूद खड़े-खड़े अपनी अत्माभिव्यक्ति करने लगा।
“सर दिस इज नौट फेयर ! मिड ऑफ़ द सेशन में मेरा तबादला....? दिस इज़ अन जस्ट !”
“बैठो........ बैठो........”
“व्हाट सर? दिस इज द रिवार्ड व्हिच आय एम गोइंग टू गेट आफ्टर गिविंग माई बेस्ट ट्वेंटी थ्री इयर्स ऑफ सर्विस एट दिस स्टेशन।”
“इतने सालों से तुम यहां थे, इसलिए तुम्हारा तबादला हुआ है। जो बीस सालों से अधिक एक ही कार्यालयों में थे उनका ही तबादला किया गया है|”
“नही सर यह हमारे ऊपर अन्याय है। हमने पूरी कोशिश की आपको खुश रखने की। पर ....... लगता है खन्ना (मेरी तरफ इशारा था) मुझसे ज्यादा स्मार्ट निकला| ठीक है सर आप न्याय नहीं दे सकते तो भगवान देगा। आप के पास कुछ कहने से होगा नहीं”
सीपी ने एक लंबा (pause) पोज मारा और ऊपर की जेब से एक पेपर साहब की तरफ बढ़ाते हुए बोला –“ये रहा मेरा पेपर....... इसे कंसीडर कर दीजिएगा। आई एम नो मोर इंटरेस्टेड इन सर्विंग द ऑर्गनाइजेशन। बिफोर रिलिजिंग मी, मेरा वी.आर एक्सेप्ट कर लीजिएगा।" और वह दन्न से मुड़ा। वहां से निकल गया।
बड़े साहब के चेहरे पर कुछ ऐसे भाव थे जो मैं पढ़कर भी अनजान बना रहा।
उन्होंने मुझसे कहा- “खन्ना, तुम अभी जाओ बाद में चर्चा करेंगे।”
मैं जब बड़े साहब के दफ्तर से बाहर निकल रहा था तो मेरे होठों से एक गाना निकल रहा था -अरे! झूठ बोले कौआ काटे , काले कौवे से डरियो। मैं माइके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो।
ये "मैं माइके चली जाऊंगी" वाली धमकी, पहले तो मुस्कान ला देता है चेहरे पर, फिर बाद में देखा जाता है कि यह इफेक्टिव/प्रभावशाली/कारगर भी काफ़ी होता है। मन चाही मुराद पूरी हो जाती है!
सीपी ने अपने तेइस साल के सर्विस कैरियर में पहले भी तीन बार इस तरह का पांसा फेंका है। और हर बार दांव उसके पक्ष में गया है। इस बार देखें क्या होता है?
खैर मैं अपने ऑफिस में आ गया। शाम होते-होते मेरे टेबुल पर एक आंतरिक आदेश पहुंचा। सीपी का वी आर एप्लीकेशन अण्डर कंसीडरेशन है और ट्रांसफर आर्डर केप्ट इन अबेयांस टिल फर्दर ऑर्डर!!
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बार इस तरह का पांसा फेंका है। और हर बार दांव उसके पक्ष में गया है। इस बार देखें क्या होता है?
जवाब देंहटाएं..... क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि ब्लॉग जगत में भी एसे उदाहरण हैं) ....................
उस दिन चिठियाना टिपियानी आए थे, बता रहे थे ब्लॉगियाना में भी इस तरह के पासे धड़ल्ले से फेंके जाते रहे हैं।
.....Office ka sajeev chitran aur blog ke duniya mein hone wali uthapatak ka sateek aanklan...
Saarthak prastuti karan ke liye dhanyavaad.....
bilkul sajeev chitran
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
are wahi ke tikdam to log yahan laga rahe hain...
जवाब देंहटाएंhaan nahi to..!
यह संस्मरण बहुत ही बढ़िया रहा!
जवाब देंहटाएं--
सकारात्मक और प्रेरणादायी!
सटीक चित्रण कर दिया किसी भी कार्यालय का....
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में तो इस प्रकार का वी.आर.एस लेना आम बात है. वैसे बहुत से ब्लोगर को परमानेंट हुए बिना ही रिटायर होते देखा है.
जवाब देंहटाएंलम्बी.... मगर बहुत अच्छी पोस्ट....
जवाब देंहटाएंaisa bhee hota hai?
जवाब देंहटाएं...प्रसंशनीय !!!
जवाब देंहटाएंबढिया वर्णन !!
जवाब देंहटाएंBahut accha laga yah post.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया. आगे का इन्तार है. क्या होगा सी पी का?
जवाब देंहटाएंवाह, पाँसा तो ठीक पड़ा ।
जवाब देंहटाएंहुत ही बढ़िया रहा!
जवाब देंहटाएंस तरह के पासे धड़ल्ले से फेंके जाते रहे हैं।
जवाब देंहटाएंइस हकीकत को पंचतंत्र की कहानी में शामिल करो भाईयों। अच्छी रचना है अच्छी स्टाइल है।
जवाब देंहटाएंसटीक चित्रण कर दिया किसी भी कार्यालय का.
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