आज चुरमुन्नी देवी को लगा था कि उका पति में भी पौरुष है। उका भी कोई भर्तार है जौन में उका रच्छा करे का कुवत है। बेचारी गदगद हो के भर थाल चूरा-दही परोस कर चौधरी जी के सामने सजा दी। चौधरी जी छक कर भोग लगाए फिर भैंस पर सवार होकर चल दिए चरवाही में।
एक दिन बेरिया [दोपहर] में चौधरी जी कलेऊ कर के बथाने पर लोट-पोट कर रहे थे। चुरमुन्नी देवी वहीं गोबर थाप रही थी। तभिये ढक्कन सेठ के छोटका भाई जिलेबिया बथान पर आ कर बोला, "चौधरी जी ! तम्बाकू खिलाइए।" चौधरी जी कमर में बंधी चिनौटी निकालते हुए बोले, "लो... हमरे लिए भी लगाना।" जिलेबिया हथेली पर तम्बाकू फैला कर बोला, "चूना दीजियेगा... तब न तम्बाकू लगायेंगे ?" चौधरी जी बोले, "ओह ! चूना तुम अपने निकालो... हमरा खाली हो गया है ?"
जिलेबिया बोला, "का खाली हो गया है मरदे ? आपके सामने तो पूरा चूनाभट्ठी बैठी हुई है। भौजी के गाल तो चूना से भी सफ़ेद है। औडर दीजिये तो वही को चुटकी में भर कर चुनिया देते हैं। सफेदी के सफेदी और लवनगर रस भी मिल जाएगा... !"
जिलेबिया का इतना कहना था कि चुरमुन्नी देवी की आँखों की ज्वाला सीधे खखोरन चौधरी पर पड़ीं। चौधारारी जी समझ गए कि महा-प्रलय का शंख-नाद हो गया। उ भी आँख लला कर बोले, "जवान संभाल लो जिलेबिया... वरना... !" जिलेबिया भी तैश में आ गया। फिर दोनों में गुत्थम-गुत्थी हो गया।
चुरमुन्नी देवी कलेजा पिट के और गला फार - फार के भीर को इकट्ठा कर ली तब जा कर दोनों अलग हुए। देख लेंगे... तो देख लेंगे... कि धमकी के बाद जिलेबिया अपने घर का रास्ता पाकर और चौधरी जी और चुरमुन्नी देवी भीर को जिलेबिया के बदतमीजी का तफसील देने लगे।
पहिल सांझ खखोरन झा के दरवाजे पर सरपंच बाबू का बैलगाड़ी आ लगा। उ के साथे ढक्कन सेठ, जिलेबिया, भौकू सिंघ, हिरामन झा और पांच-दस पंच भी थे। आते ही सरपंच बाबू दहारे, "का रे खखोरना... ! तेरा सिंघ निकल आया है का.... ?
"सरपंच बाबू... हम तो.... !" चौधरी इतना ही बोल पाए थे कि सरपंच बाबू फिर दहारे, "का हम तो... ! तोहरी इतनी हिम्मत कि गाँव घर के इज्जतदार लोग पर भी हाथ उठाएगा.... ? ढक्कन सेठ का कितना उधारी रक्खा है... भूल गया का... ? जरा मुँह से मजाक किया तो चाम छिलाता है। इहाँ सुलक्षण गली मोहल्ले में जवान लड़का सब को खराब कर रही है और तू चला है बलजोरी खेलने।
हिरामन ठाकुर, भौकू सिंघ ई सब भी सरपंच बाबू के ताल से ताल मिलाये। बेचारे खखोरन 'दोहाई सरकार की' करते रहे। सरपंच जी फिर पूछे, "ढक्कन सेठ अपना सारा बकाया अभी मांग रहे हैं... फिर अभी मार-पिट के लिए थाना पुलिस बुलायेंगे.... बोलो... का करोगे ? ढक्कन सेठ का बकाया तो था ही चौधरी पर ऊपर से थाना-पुलिस का नाम सुनते ही बेचारे का पैर कांपने लगा।
दोनों हाथ जोड़े गिरगिरा कर बोले, "सरपंच बाबू ! हम गरीब आदमी.... भारी गलती हो गया ! हम सेठ जी दुन्नु भाई से माफी मांगते हैं। कर्जा-बकाया तो जो भी है हम आज न कल अपना देहो बेच के चुका देंगे... आवेश में जिलेबी लाल जी पर हाथ उठ गया... हम अपना अपराध मानते हैं मगर हम कौनो समाज से बाहर नहीं हैं। आप ही लोग निपटारा कर दीजिये। थाना-पुलिस आप समाज से बढ़ कर थोड़े है... आप दस पंच जो सजा दीजिये हमें मंजूर है।"
फिर सेठ जी दुन्नु भाई के साथ थोड़ा खुसुर फुसुर के बाद सरपंच बाबू फैसला सुनाये, "चुकी ई अपराध में सबसे बड़ी दोषी है खखोरन की लुगाई सो उ सब के पैर पकर कर माफी मांगेगी और जब तक उ माफी मांगती है, खखोरन चौधरी दोनों कान पकर कर उठक-बैठक करेंगे। फिर महावीर थान के कमेटी में एक सौ एक रुपया जमा करायेंगे।"
रो-धो कर चौधरी जी दोनों परानी सजा काटने लगे। बेचारी चुरमुन्नी देवी जौन आदमी का कभी मुँह नहीं देखी उ का भी पैर पकर रही है। उ के सामने ही उ का पति-परमेश्वर कान पकर कर उठ-बैठ रहा है। आखिर में जिसके मुँह से अपशब्द सुनी उ जिलेबिया के पैर भी पकरी तब जा कर सरपंच बाबू खखोरन के उठक-बैठक पर ब्रेक लगाए।
भीड़ छट गयी तो देहरी पर सिर झुकाए बैठे खखोरन का हाथ अपने दोनों हाथों में ले के चुरमुन्नी देवी लगी सिसक-सिसक के रोये। रोते हुए ही बोला, 'हम का माफ़ कर दीजिये... ! हमरे खातिर आपका इतना बेइज्जती हुआ ... !" चुरमुन्नी देवी रोये जा रही थी।
खखोरन बीवी के आंसू पोछ कर बोला, "जाने दो चुरमुन्नी... ! तुम रो मत। अरे गरीब आदमी के पास कौन सा इज्जते होता है जो बेइज्जती होगी.... ? हम ने कहा था न, "गरीब की जोरू सब की भौजाई होती है।"
न जाने आज चुरमुन्नी देवी में कहाँ से इतनी बुद्धिमत्ता आ गयी थी। बोली, "हाँ जी ! आप सही कहते थे, "गरीब की जोरू सब की भौजाई"। सच ही तो है, गरीब अर्थात लाचार, बेवश लोगों की जिन्दगी ही सामर्थ्यवान लोगों की सुख, शौक, जरुरत और विलासिता की पूर्ति के लिए है। समर्थों के अत्याचारों को सहना असहायों का धर्म है, उनके शोषण का शिकार होना ही उनकी नियति है। बड़े लोगों के लिए छोटे लोगों की कीमत उनके मनोरंजन तक ही सीमित है।
हूँ.... ! देखिये, कथा तो थोड़ी लम्बी हो गयी और थोड़ी दुखद भी मगर आप समझे कि नहीं... कि गरीब की जोरू सब की भौजाई होती है .... ? जो भी हो टिपण्णी कर के बताइयेगा !!!
देसिल बयना अपना संदेश प्रेषित करने में सफल रहा।
जवाब देंहटाएंबहुत सही !!
जवाब देंहटाएंसंदेशप्रद देसिल बयना!
जवाब देंहटाएंबड़े लोगों के लिए छोटे लोगों की कीमत उनके मनोरंजन तक ही सीमित है।
जवाब देंहटाएंदुखद सत्य
agar dehat me ye he mansikta hotee hai to man bharee ho utha hai......
जवाब देंहटाएंgareeb ke paas ek hee to poonjee hotee hai charitr vo bhee dharashayee hojae to jeevan me bacha kya ?
कित्ती लम्बी हो गई यह पोस्ट...अब तो पढने के लिए पापा की मदद लेनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएं____________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' !
Badia raha desil bayana.
जवाब देंहटाएंहमेशा ही शान्दार रहत है देसिल बयना का किस्त.
जवाब देंहटाएंतमाम पाठकों का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ !!
जवाब देंहटाएंसही कहे ल।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।