मन हो गया उदास
-- करण समस्तीपुरी
बहुत दिनों के बाद नहीं हो जब तुम मेरे पास !
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!
जान रहा हूँ मैं भी है यह बस कुछ दिन की बात,
पर दिन लम्बा लगता तुम बिन, लम्बी लगती रात !
पल-पल काट रहा मुझको खालीपन का अहसास,
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!
खाली-खाली लगता तुम बिन घर आँगन सुन-सान,
कोना-कोना मौन साध कर, करता तेरा ध्यान !
छत के नीचे टंगी घड़ी भर रही दीर्घ निःश्वास,
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!
जस की तस है पड़ी हुई गुड़ियों वाली अलमारी,
पता नहीं है कहाँ खो गयी कोयल की किलकारी !
साथी, झूले, खेल-खिलौने देख रहे हैं आस,
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!
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बहुत संवेदनशील...सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar aur bhavuk prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत दिल लगा कर लिखी गई रचना।
जवाब देंहटाएंजस की तस है पड़ी हुई गुड़ियों वाली अलमारी,
पता नहीं है कहाँ खो गयी कोयल की किलकारी !साथी, झूले, खेल-खिलौने देख रहे हैं आस,बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!
करण जी -- इसकी समीक्षा मुझे करनी ही पड़ेगी।
...बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएंसंवेदन की छुअन आज कविता बन गयी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता! बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंIf I can write like you, then I would be very happy, but where is my luck like this, really people like you are an example for the world. You have written this comment with great beauty, I am really glad I thank you from my heart.
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