मंगलवार, 8 जून 2010

मन हो गया उदास




मन हो गया उदास
-- करण समस्तीपुरी


बहुत दिनों के बाद नहीं हो जब तुम मेरे पास !
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!


जान रहा हूँ मैं भी है यह बस कुछ दिन की बात,
पर दिन लम्बा लगता तुम बिन, लम्बी लगती रात !
पल-पल काट रहा मुझको खालीपन का अहसास,
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!



खाली-खाली लगता तुम बिन घर आँगन सुन-सान,
कोना-कोना मौन साध कर, करता तेरा ध्यान !
छत के नीचे टंगी घड़ी भर रही दीर्घ निःश्वास,
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!


जस की तस है पड़ी हुई गुड़ियों वाली अलमारी,
पता नहीं है कहाँ खो गयी कोयल की किलकारी !
साथी, झूले, खेल-खिलौने देख रहे हैं आस,
बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!
*****

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत संवेदनशील...सुन्दर प्रस्तुति...

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  2. बहुत दिल लगा कर लिखी गई रचना।
    जस की तस है पड़ी हुई गुड़ियों वाली अलमारी,
    पता नहीं है कहाँ खो गयी कोयल की किलकारी !साथी, झूले, खेल-खिलौने देख रहे हैं आस,बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !!

    करण जी -- इसकी समीक्षा मुझे करनी ही पड़ेगी।

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  3. संवेदन की छुअन आज कविता बन गयी ।

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  4. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता! बेहद पसंद आया!

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