पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का परिवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना! फिर रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! गाँव की गोरी रामदुलारी अब पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत है ! किन्तु गाँव में रामदुलारी के खुले विचारों की कटु-चर्चा होती है ! उधर समीर के पिता के कालेज की अध्यापिका रुचिरा का आकर्षण समीर के प्रति बढ़ता ही जा रहा है ! अब पढ़िए आगे !!
-- करण समस्तीपुरी
मंद-मकरंद रथ पर सवार सरस बसंत साक्षात विहार कर रहा था राघोपुर गाँव में। गेहूं के पौधे ठूंठ भर बड़े हो गए थे। नन्हे गेहूं के दूर-दूर तक फैले खेतों में श्रमसाध्य किसान हरी मखमली चादर पर कलरव करते बालवृन्द से प्रतीत हो रहे थे। उस पर पीले फूलों से लदे सरसों के तरुण पौधे........ आ...हा...हा...! क्या नयनाभिराम दृश्य है! मानो शस्य श्यामला वसुंधरा धानी चुनर ओढ़ के अंगराई ले रही हो। आम में मंजर लग गए हैं.... महुआ का यौवन भी फूट पड़ा है......... उसकी गंध विहग-वृन्द को रात्री में भी निश्चिन्त नहीं सोने देते। प्रजापति बाबू की पसरी अमराई में बसंत दूत भ्रमर का अविराम गुंजन चल रहा है। लेकिन आज मोहल्ले में कोई और चर्चा गरम थी।
प्रजापति बाबू के परोसी हैं स्वरुप चौधरी। घर-परिवार समृद्ध है लेकिन परोसी की तरह लक्ष्मी चेरी नहीं हैं। दोनों परिवारों में उपरी मित्रता अपनेपन के हद तक है किन्तु महान बनाने के अवसर से कभी नहीं चूकना चाहते। बात अलग है कि ऐश्वर्या और ख्याति के बदौलत प्रजापति बाबू का परिवार होर में हमेशा आगे निकल जाता है। लेकिन आज संयोग सुन्दरी स्वरुप चौधरी के परिवार के साथ हैं। दोपहर का वक़्त है। चौधुरी जी भोजन कर के तम्बाकू में चाटी मार रहे हैं। बड़ा पुत्र गाँव में ही गेहूं पीस कर आंटा निकालने का मशीन चलता है। मझिला समस्तीपुर कचहरी में मोहरीर है और सबसे छोटा लहेरियासराय में डाक्टरी पढता है। परतापुर वाली चाची बँगला पान में गमकौआ जर्दा डाल कर चबाते हुए आँगन में अरहर सुखा रही हैं। बड़की बहुरिया हाथ-मशीन पर नयका आलू का चिप्स काट रही है और मझली बहू सीम के अंचार में तेल डाल रही है।
बाहर से व्यंग्य भरी खनकती आवाज आती है, "छौरा-छौरी के राज हुआ.... कुत्ता कोतवाल हुआ... !!" हा...हा...हा... ! जब भी खनकती कहावत कानों में पड़ती है, राघोपुर वालों को समझते देर नहीं लगती की हायाघाट वाली ओझाइन आ रही हैं। चूरी खनकाते बेधरक आँगन में घुसते हुए ओझाइन बोली, "कहाँ छियैक ऐ परतापुर वाली कनिया.... अए........... कि सब सुनै छियैक यै...... एँ.... जे कहियो नहि से लोहिये में.... नया जमाना के नया किस्सा.... !!" एक सांस में ही ओझाइन बोले जा रही थी। तभी परतापुर वाली चाची पैर छू कर पीढ़िया आगे करती हुई बोली, "कि बात छैक ओझाइन... ? आई बड़ चहकि-चहकि के फकरा सभ पढि रहल छथिन्ह ! कनेक दम्म ध' लथु।" ओझाइन बोली, "हाँ ऐ कनिया ! ठीके कहै छी... हम सभ त' दम्मे धेने छी लेकिन अहाँ सब कखन दम्म धरब... ? अए...किछु सुनलियैक कि नहि.... ?" "से की ?" अब चाची की जिज्ञासा भी चरम पर थी।
बड़ी बहू बीड़ी ले कर ओझाइन की सेवा में हाज़िर थी तो मंझली कैसे पीछे रहती.... माचिस तो वही ला रही थी। श्रोताओं को गंभीर देख ओझाइन भी गंभीर हो गयी। बोली, "अहाँ सबहक नहि पता अछि.... अच्छा इम्हर आऊ ! दीवारों के कान होयत छैक। केहु सुनी नहि लैक.... ! ओझाइन की आवाज़ मद्धिम और भाव-भंगिमाएं तीक्ष्ण हुई जा रही थी। तीनो सास-बहू ओझाइन को घेर कर बैठ गयी। ओझाइन ने प्रवचन शुरू किया, "सासू कोहबर आ पतोहू दरबार ! आब त' गामो के बेटी-पुतहु सभ हाई कोट पटना जाएत।" ही....ही...ही... मंझली बहू हंसी नहीं रोक पायी जबकि मुस्कराहट तो सभी होंठों पर तैर गए। ओझाइन ने कहना जारी रखा, "अए... गोबधनमा के बेटी पटना मे अकेले रही छैक? जवाब में चाची ने सिर्फ अपनी गर्दन को ऊपर नीची हिला दिया। फिर ओझाइन कहने लगी, "देक्खियाऊ.... आ हे.... सुनै छियैक जे ओ कोट-पैंट पहिन के कौलेजिया छौरा सभ के साथे घुमैत-फिरैत छैक... !" परतापुर वाली चाची तो चौंक ही गयी। बोली, "नहि यै ओझाइन, रमदुलारिया एना नहि कए सकैत छैक....!" तुरत ओझाइन का व्यंग्य-वां छूटा, "अ धुर्र.... लुटती लागौक हम्मर मुंह में। केओ विश्वास नहि करत त' हम अपने मुंह किये खाली करू ?" व्यग्रता के साथ चाची बोली, "नहि यै ओझाइन ! कहथुन ने...।" फिर ओझाइन कहने लगी, "अहाँ सभ के विश्वास नहि होएत अछि ने... ? मुदा बटेसरा ओकरा अपना आंखि से देखलकैक एगो छुरा साथे बोतल पिबैत.... आ अहाँ से कहै छियैक... खेरवन वाला बैजुआ त' कहैत रहैक जे गोबधनमा के बेटी त' इस्टेज पर नाच्बो कराइ छैक.... दाई गे दाई.... केहन ज़माना आबि गेलैक..... ?" ओझाइन बीड़ी का लम्बा सा कश खींच कर धुंआ उगलते हुए बोली, "लेकिन हे कनिया ! अहाँ सब के हमरे शप्पथ, ई सभ बात केकरो कहबई नहि!"
ओझाइन तो गयी, लेकिन चर्चा चौधुरी जी के आँगन से दालान तक पहुँच गयी। आखिर परतापुर वाली चाची भी कितनी देर तक उदार-ताप सहती...? तभी सड़क पर जा रही फुलवरिया वाली पर नजर पड़ीं। उसे आवाज़ लगा कर बुलाया... फिर ओझाइन का सारा कथोपकथन उड़ेल दिया... और हाँ ! ये निर्देश देना नहीं भूली कि "हे केकरो कहबै नहि!" फिर चाह-बीड़ी के साथ दोनों में बड़ी देर तक गहन मंत्रणा चलती रही।
सांझ में पानी भरने के लिए आयी कोनैला वाली के मुंह पर आज एक अजीब रहस्यमय मुस्कान थी। लेकिन चेहरे पर एक अंदेशे की चादर भी थी। आखिर रामदुलारी की माँ ने पूछ ही लिया, "कि बात छैक यै...?" कोनैला वाली ने कहना शुरू किया, "कनेक देर पहिने बाबा के चूना लाबी फुलवरिया वाली ओतय गेल छलियैक... ओहि ठाम रामदुलारी बौआ के बारे में सब कि-कि नहि बजैत रहैक.... !" फिर कोनैला वाली ने सप्रसंग व्याख्या पूरी अभिव्यक्ति के साथ रामदुलारी की माँ को सुना दिया। छोटी चाची भी बड़े मनोयोग से कोनैला वाली की फुसफुसाती आवाज़ सुन रही थी। "हम जे सुनली सैह कहै छी चाची..." इतना कह कोनैला वाली दोनों घरा उठा कर कुँए पर चल पड़ीं। माँ और चाची अपने अपने कमरे की ओर मुड़ गयी।
"खेत से आये गोबर्धन बाबू की आवाज़ कड़की। 'कहाँ मर गए हैं सब... दिया-बत्ती का समय हो गया और कोई दिख नहीं रहा है। अभी तक बाबू को चाह भी नहीं दिया है... ! हमलोग खेत में खट-खट मरें... इन औरतों का कुछ जाता है.... इधर-उधर टल्ली मारे फिरती हैं। रामदुलारी की माँ अपने कमरे से बाहर आयी। आँखें सूजी हुई थी। प्रौढ़ कपोल पर आंसू अभी भी झलक रहे थे। उन्हें देखते ही गोबर्धन बाबू का गुस्सा काफूर हो गया। करीब जा कर हौले से पूछे, "का बात है ? रो काहे रही हो ?" लेकिन उर्मिला कुछ बोल नहीं सकी। उसके कुढ़न अब गले फार रहा था। उधर द्वार-पर चुप-चाप खड़े छोटे चाचा पत्नी का इशारा पाकर अपने कमरे में जा चुके थे। बाबा भी आँगन में आ गए। कुछ देर में गिरधारी अपने कमरे से निकले। फिर जो रहस्योद्घाटन उन्होंने किया उससे प्रजापति बाबू के आँगन में कोहराम मच गया। गोबर्धन, गिरधारी, उर्मिला.... सबकी विचलित आँखें दोषारोपण की मुद्रा में बाबा पर उठी।
बाबा बिना कुछ बोले आँगन से बाहर आने लगे। पसीना उनकी पेशानी पर भी आ गया था लेकिन कुछ बोले नहीं। द्वार पर आ कर सिर्फ सिर्फ इतना ही कहा था, "गोबर्धन ! गिरधारी !! मेरी कोठारी में आ जाओ !"
क्या होगा अब ? बाबा का विश्वास रहेगा कायम या कोप बन कर टूटेगा रामदुलारी के सपनों पर ?? जानने के लिए पढ़िए अगले हफ्ते इसी ब्लॉग पर !!
rochak ! agalee kadee ka intzar rahega .
जवाब देंहटाएंBhasha acchi lagi. Dekhna kahani aage kis mod par aati hai.
जवाब देंहटाएंयह भाग सुन्दर लगा खासकर इसका भाशा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आज की कडी. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंYE EPISODE BHI ACHA RAHA..AGLE EPISODE KA INTZAR RAHEGA...
जवाब देंहटाएंबहूत सुन्दर कडी.
जवाब देंहटाएंbahut neek aichh ahan ke Silsile Vaar.
जवाब देंहटाएंहइ यो! गाम घरक बातक आंहां बड सजीव चित्रण प्रस्तुत केलौं .. मुदा ई बात केकरो कहबई नहि!"
जवाब देंहटाएंmanoj ji
जवाब देंहटाएंbahut acchi kahani sunai apne
abhar....