-- मनोज कुमार
बॉस ने कल शाम ही कहा था ‘सुबह, .. शार्प एट टेन थर्टी तुम प्रजेंटेशन मुझे दिखाओगे।’ देर रात तक जागकर उसने अपने लैप टॉप पर प्रजेंटेशन के स्लाइड्स तैयार किए थे और इतना खुश था कि बॉस इसे देखेंगे तो उसका कैश अवार्ड तो पक्का ! उसी रोज़ दोपहर बाद मंत्रालय के अधिकारियों के समक्ष वार्षिक प्रगति रिपोर्ट की समीक्षा पेश करनी थी। बॉस उसके पहले स्वयं उस प्रस्तुति की समीक्षा कर लेना चाह रहे थे। कोई चूक न रह जाए। रह-रह कर धीरज के कानों में बॉस का वह वाक्य गूंज रहा था – शार्प, ऐट टेन थर्टी... ... !! उस दिन धीरज सुबह जल्दी ही उठ गया। उसे जल्दी से तैयार हो कर दफ्तर जाना था।
तैयार होकर जब अपने दस मंजिले फ्लैट के नीचे आया तो पाया कि कार के टायर की हवा निकली हुई है ‘शायद पंक्चर हो। अब इसे ठीक कराने जाऊँ तो आधा घंटा तो गया।’ वह टैक्सी के लिए आगे बढ़ गया। जिस दिन जल्दी हो उस दिन टैक्सी भी देर से ही मिलती है। वही हुआ दस मिनट बाद एक खाली टैक्सी मिली। धर्मतल्ला तक सड़क पर भीड़-भाड़ नहीं थी, टैक्सी तेजी से पहुंच गई। पर धर्मतल्ला पहुंचते ही आगे अधिक ट्रैफिक होने के कारण टैक्सी को रुकना पड़ा। तभी एक वृद्ध महिला, लगभग पचहत्तर-अस्सी बरस की, हांफते परेशान-हाल कंधे पर झोलानुमा बैग लटकाए टैक्सी ड्राइवर से पूछी “बावू पी.जी. कोथाय, कोतो दूर। कोन दिक दिए जाबो ?” टैक्सी ड्राइवर ने बताया पीछे की तरफ चली जाओ। दूर तो काफी है। पांच किलोमीटर तो होगा ही। बस ले लो। वृद्धा बोली “टाका नई – जा किछु छिलो निए-निये छे ....... मेये (लड़की) पी.जी. ते भर्ती आछे देखते जावो।”
वृद्धा ने जो बताया उसका सार ये था कि उसकी पुत्री का कल ऑपरेशन हुआ था। बर्दवान से वह उसे देखने आ रही थी। लोकल ट्रेन की भीड़ में बैग से उसके तीन सौ पैसंठ रूपये किसी ने उड़ा लिया था। अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा था। कोलकाता वह पहली बार अकेले आई है, .. और उसके पहचान का कोई है भी नहीं यहां। हावड़ा स्टेशन से पूछते-पाछते यहां तक तो पहुंच ही गई है। पी.जी. अस्पताल भी चली जाएगी।
धीरज जो अब तक पिछली सीट पर बैठा उनकी बातें सुन रहा था, ड्राइवर से बोला “इनको बिठा लो , और पी.जी. की तरफ गाड़ी मोड़ दो।” वृद्धा बोली “ना .. .. ना बाबू आपनी जान आपनार अशुबिधा होबे ।”
धीरज बोला “अम्मा किछु होबे ना, आपनी बोशुन छेड़े दिच्ची। ” और उसने उस वृद्धा को पी.जी. अस्पताल के प्रवेश द्वार पर ड्रॉप कर दिया। जाने के पहले अपने मनीबैग के सारे रुपये निकाल कर उसके हाथ में थमाता धीरज बोला – “अम्मा मेयेर जोन्ये सेब निए नेबे आर फेरार समय एई खान थेके हावड़ा पर्जन्तो टैक्सी कोरे नेबे।” वृद्धा की आंख से गंगा-जमुना बह पड़ी, उसके बोल न फूटे, धीरज ने भी अपनी नम होती आंखें वृद्धा से बचाते हुए ड्राइवर से कहा .. “चलो।” पिछली सीट पर अपना सिर टिका कर उसने अपनी आंखे बंद कर ली।
लैपटॉप संभाले जब वह बॉस की केबिन में पहुंचा साढ़े बारह बज चुके थे। बॉस आग-बबूला थे। धीरज को देखते ही उस पर बरस पड़े। न जाने क्या-क्या बोलते रहे। पर धीरज के चेहरे पर स्थिर प्रसन्नता के भाव थे और वह मुस्कुरा रहा था। उसे केवल बॉस का यह अंतिम वाक्य ही सुनाई दिया – “गैर जिम्मेदारी की भी हद होती है ..और-और ये क्या ........ मैं तुम्हें डांटे जा रहा हूँ और तुम मुस्कुरा रहे हो ......? ”
धीरज बोला “सर आज मैंने जो जिम्मेदारी निभाई है वह आप नहीं समझ सकते ............ और जिस मानसिक शांति को इस पल मैं जी रहा हूँ उसमें आपके शब्द मुझे विचलित नहीं कर सकते !!!”
जिम्मेदारी सच में बहुत बडी बात होती है , इसके प्रती सजग करता बढिया कहानी । आभार
जवाब देंहटाएंजो जिम्मेदारी धीरज ने निभाई और उसके बाद जो उसको खुशी मिली। उस पर बॉस गालियों की बौछार का क्या असर होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी है किन्तु क्या ऐसा किया जा सकता है?
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत ही अच्छी रचना.....काश सबके मन में ऐसी भावना हो....सुन्दर कहानी
जवाब देंहटाएंKisi ki bhalai karne me dant b par jaye to kya fark padta hai..jab jo sahi lage wahi hume karna chaiye..aur dhiraj ne b wahi kiya. aur kuch acha karo to chehre par alag tarah ki khusi hoti ha aur man me kuch alag khusi mahsus hoti hai..
जवाब देंहटाएंManoj ji Aplogo ye blog meko bha gaya hai..har din kuch naya gyan milta hai..kuch naya sikhne ko milta hai..jindgi me aage badhne ki sikh milti hai....iske liye mai aplogo ka tahedil se sukra gujar hun...
aur naye sal me apke blog ko char chand lag jaye yahi subhkamnaye hai meri aplogo ke liye...Dhanyawad
वाकई...ऐसी जिम्मेदारी निभाकर जो शांटि मिली होगी..वो अनुपम होगी..बढ़िया आलेख!!
जवाब देंहटाएंBahut babia kahani. hame kuch seekhna chahiye issse.AAbhar.
जवाब देंहटाएंवाह,क्या बात है । कहानी अच्छी लगी । शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,सही काम किया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कहानी है. ज़िम्मेदारी से शान्ति और संतोष का आभास होता है, बड़े ही सुन्दर शब्दों और भावों को इस सार्थक कहानी में ढाले हैं.
जवाब देंहटाएंमहावीर शर्मा
अच्छी कहानी है।
जवाब देंहटाएंnek kaam me khushi to milti hi hai ,jimmedari uthana sabke vash ki baat nahi ,sundar rachna ,banla bhasha padhkar bahut hi khushi hui ,besi bhalo .
जवाब देंहटाएंEk achi kahani jo yeh seekh deti hai ki hame samay aane par Paropkar se muh nahi modna chahiye.
जवाब देंहटाएंहमारा देश, परिवार, समाज और मानवता के प्रति भी तो जिम्मेदारी है, शाबास धीरज...
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंजीना तो है उसी का जिसने ये राज़ जाना !
जवाब देंहटाएंहै काम आदमी का औरों के काम आना !!
आदर्श जिम्मेदारी............. !!!
कहानी बहुत अच्छी लगी !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,सही काम किया. बहुत अच्छी कहानी है .
जवाब देंहटाएंइस अच्छी रचना के लिए
जवाब देंहटाएंआभार .................
रचना के निहितार्थ से भला कौन असहमत होना चाहेगा?
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
कहानी बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंजिन्दगी को एक नए नज़रिए से देखने की ताक़त देता है।
जवाब देंहटाएंलघुकथा सशक्त भाषा में लिखी होने के साथ-साथ अन्त:संघर्ष का सफलतापूर्वक निर्वाह करती नज्ञर आती हैं।
जवाब देंहटाएंDhiraj jaise logon ko main salute karta hun. Inhin jaison ki badaulat to manavata bachi hui hai warna to sab taraf us girah kat jaise log hi hain jo briddha ka batua naar rahe hain.
जवाब देंहटाएंThanks for such a nice post.
मनोज जी, इसीलिए तो मैंने यह सवाल पूछा। हमें पता था कि आप यही करेंगे और करते रहेंगे। फिर यह सवाल बेमानी हो जाता है कि प्यार बोऊं या नफरत की खेती करुं।
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