-- मनोज कुमार
उस दिन छ्दामी लाल की अनुपस्थिति में चिठियाना और टिपियाना मिल्लेनियम पार्क की एक बेंच पर गंगा के किनारे मिले और उनके बीच संवाद का आदान- प्रदान शुरु हुआ।
चिठियाना – ... और यार टिपियाना बताओ भाभी जी के साथ जो तुम्हारी खट-पट हुई थी वह मिटी कि नहीं।
टिपियाना - हां यार बड़ी मुश्किल से मामला शांत हुआ।
चिठियाना - इसीलिये मैं तुम्हें हमेशा समझाते रहता हूं। घर-बाहर एक सा व्यवहार रखो, नहीं तो बे-बात के टिपियाने की आदत तुम्हें एक दिन ले डूबेगी।
टिपियाना - हां भाई चिठियाना तुम्हारी बात सोलह आने सही है।
चिठियाना - बात-बात पर इस तरह से टिपियाने से क्या फ़ायदा। किसी से भी वैर-विरोध न रखते हुए चिट्ठा-आश्रम धर्म का पालन करो। चिट्ठाकारों के साथ आनन्दपूर्वक रहो और अपने चिट्ठाजगत को एक आदर्श जगह बनाओ।
टिपियाना - तुम्हारी बात में दम तो है पर जब-जब मैं इस चिट्ठाजगत रूपी वृक्ष के फल खाता हूं तो पाता हूं कि कई बार फल कड़वे होते हैं।
चिठियाना - देख भाई टिपियाना इस चिट्ठा-संसार रूपी वृक्ष के दो फल ही अमृत के समान मीठे हैं – पहला फल है मधुर-टिप्पण (वचन) और दूसरा फल है अच्छे चिट्ठाकारों (सज्जनों) की संगति। बुद्धिमान टिप्पाकारों को चाहिए कि केवल इन्हीं दोनों फलों का सेवन करें।
टिपियाना - पर इधर-उधर मुंह मारने की अपनी आदत पर मैं नियंत्रण कैसे करूं?
चिठियाना - बहुत सिम्पल सी बात है मेरे दोस्त। अपने टिप्पण के टंकार को नई दिशा दो। इसे झंकार में बदल दो। टिप्पण को (वाणी) वीणा की तान बनाओ, बाण की टंकार न बनाओ। वीणा की झंकार से जीवन में संगीत होगा। आनंद होगा। बाण बनेगी तो चिट्ठाजगत (जीवन) में महाभारत होगा।
टिपियाना - इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा?
चिठियाना - तुम्हारे इस मिठियाने (मधुर वचन) और गुडियाने (सद्व्यवहार) से पुराने तो पुराने नये चिट्ठाकार (अजनबी) भी तुम्हारा स्नेही और मित्र बन जाएंगे जबकि कटुवचन के प्रयोग और दुर्व्यवहार करने से अपने लोग भी पराये और शत्रु हो जाते हैं।
टिपियाना - तुम्हारे कहने का मतलब है हमें अपने टिपियाने (जुबान) पर नियंत्रण रखना चाहिए।
चिठियाना - सही समझे। चिट्ठा-परिवार में अधिकतर झगड़े टिपियाने के दुरुपयोग से होते हैं। ये दुनियां खाने को तो मीठा-मीठा चाहती है और बोलती कड़वा-कड़वा है। टिपियाने के दो-दो रूप हैं। एक चखना और दूसरा बकना। हम इसका उपयोग चखने में करें बकने में नहीं। साथ ही टिपियाने और गलियाने के अन्तर को भी स्मरण रखना चाहिए।
टिपियाना - पर मैंने तो अब तक ऐसा कभी नहीं सोचा।
चिठियाना - जो चला गया, उसके लिए मत सोचो।
टिपियाना - इसीलिएचिट्ठाजगत में आज तक मुझे एक अच्छी जगह नहीं मिली।
चिठियाना - जो नहीं मिला, उसकी चिंता मत करो।
टिपियाना - सिर्फ़ अपमान ही मिले।
चिठियाना - जो मिल गया, उसे अपना मत मानो।
टिपियाना - पर इस तरह से मुझे संतुष्टि कैसे मिलेगी?
चिठियाना - संतोष करने से।
टिपियाना - मतलब?
चिठियाना - जिसे सन्तोष नहीं, उसे सन्तुष्टि कहां से हो सकती है!
टिपियाना - मैं समझा नहीं। ज़रा खुल कर समझाओ।
चिठियाना - जैसे भूखे पेट को तो भरा जा सकता है, लेकिन भूखी निगाह को नहीं, वैसे ही भूखे मन को कभी नहीं भरा जा सकता।
टिपियाना – लेकिन सब के मन में यह आकांक्षा तो रहती ही है कि वह लोगों की निगाह में आये।
चिठियाना - सही है पर आवश्यकता की पूर्ति तो सम्भव है लेकिन आकांक्षा की पूर्ति सम्भव नहीं।
टिपियाना – इसके लिये करना क्या होगा?
चिठियाना - हमें इच्छाओं को सीमित करना चाहिए।
टिपियाना – मन मानेगा क्या? मन तो अनन्त है, मन की भूख अनन्त है।
चिठियाना - हमें अपने मन के गुल्लक में सन्तोष का ताला लगा कर रखना चाहिए, तभी हम मन के गुल्लक को भर सकते हैं।
टिपियाना – ऐसा बल कहां से लाया जाए?
चिठियाना – आत्म बल से। आत्म बल के समान दूसरा कोई बल नहीं होता।
टिपियाना - इससे क्या होगा?
चिठियाना - इससे तुझमें एक अच्छा टिप्पाकार बनने की भूख पैदा होगी। तेज़ भूख!! तेज भूख हो तो सादा व रूखा-सूखा भोजन (हर तरह का चिट्ठा) भी अच्छा लगता है।
टिपियाना - पर पेट भर जाये तो नींद ही आ जायेगी।
चिठियाना - अच्छी और गहरी नींद आ जाए तो समझो आदमी को संतुष्टि मिल गई है। और सन्तोषी प्रकृति का व्यक्ति हर हाल में ख़ुश रह सकता है।
टिपियाना - और जो हर हाल में ख़ुश रह सकता है उस जैसा सुखी कोई नहीं हो सकता।
चिठियाना - लाख टके की बात!!
टिपियाना – तो इस गणतंत्र दिवस पर हम यह शपथ लें कि हम हर हाल में ख़ुशी बांटेंगे।
(इतिश्री ब्लोगर-खंडे गणतंत्र-दिवसोपलक्ष्ये चिठियाना-टिपियाना सुलह वार्ता नाम तृतीय अध्यायः !!)
वाह बहुत बढ़िया लगा आपका ये पोस्ट! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंशुभ संकेत... शुभ टिप्पणी !
जवाब देंहटाएंvaah,gzb.
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर तरीके से आपने अप्नी बात कही. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे से आपने अपनी बात कही....
जवाब देंहटाएंचिठियाना-टिपियाना संवाद को माध्यम बनाकर आप अपनी बात बहुत अच्छे से कहने में सफल हुअ.........
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर्!!
आपका आलेख सुन्दर लगा. सही बात कही है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेखन। प्रेरक। बधाई स्वीकारें। बेहद तरतीब और तरक़ीब से अपनी बात रखी है। सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सरहनीय है।
जवाब देंहटाएंलगे रहो...मनोज भाई।
जवाब देंहटाएंसार्थक ब्लॉगिंग
सुबह जोगिंग
bahut sunder post!
जवाब देंहटाएंadbhutaas....
जवाब देंहटाएंmaine kal hui bloggers meeting kee charcha apne blog par kee hai... kripya aa kar kuchh sudhaar karein...
http://ab8oct.blogspot.com/
इदम् प्रशंसनीयम् संभाषणम् ! भवान ! मम् कोटि-कोटि धन्यवादम् स्वीकार कुरु: !!
जवाब देंहटाएंभाई बहुत ही लाजवाब तरीके से समझा दिया आपने ....... कहीं कहीं तो गीता सार भी समझा दिया ..... बहुत अच्छा अंदाज है ........
जवाब देंहटाएंअच्छा संवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे ढंग से आपने अपनी बात रखी है। अच्छा संवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये। इस संवाद में कुछ ऐसे प्रश्न पर भी विचार हुए जो ब्लागजगत में चिंता का कारण बना हुआ है। बहुत अच्छे ढंग से आपने अपनी बात रखी है।
जवाब देंहटाएंअद्भुत परिहास बोध आपकी कहानी में एक ताक़त भरता है।
जवाब देंहटाएंcode of conduct well dealt!
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen!