या कुन्देन्दु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता ! या वीणावरदंडमंडितकरा, या श्वेत पद्मासना !! या ब्रह्मास्च्युत शंकर प्रभृतिर्भिरदेवाः सदाबंदिताः, सा मां पातु सरस्वती देवी, या निशेष जाड़यापहा !! शिशिर की शीत निशा से अवगुंठित मन-प्राण को नवजीवन का सन्देश देने आता है, मधुमास। पिक-काकली के किलोल से गुंजित, मुकुलित मकरंद सुवाषित पीत-वसना वसुंधरा के मखमली आँगन में मंद-सुगन्धित समीर-रथ से उतरते हैं, ऋतुराज। ऋतुपति की अगवानी में पंचम स्वर में गूंज उठती है, वागीश्वरी के वीणा की तान ! झंकृत हो जाते हैं हृदय के तार ! बसंत के शीतल मंद बयार में धुल जाते हैं मन के समस्त विकार और हम करते हैं, विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की अर्चना ! आज वही बसंत पंचमी है। विधा और वाणी की देवी मां शारदा की पूजा-अर्चना का दिन। 'वीणा-पुस्तक रंजित हस्ते, गौरवर्णा भगवती भारती श्वेत हंश पर आरूढ़ होती हैं। “देवी भागवत” के अनुसार माँ सरस्वती श्री कृष्ण भगवान की जिहृवा के अगले भाग से प्रकट हुई। सर्वप्रथम श्री कृष्ण ने ही उनकी पूजा की - 'कृष्णेनसंस्तुते देवी शाश्वत्भाक्त्या सदाम्विका....!' वीणावादिनी मां सरस्वती को महाविद्या, महावाणी, भारती, वाक्, सरस्वती, आर्या, ब्राह्मणी, कामधेनु, वेदगर्भा, धीश्वरी नामों से भी जाना जाता है। शीत ऋतु के शुभ्र चन्द्र सी द्युतिमान वीणापाणी की आराधना मन को शीतलता, विचारों को शुभ्रता और विद्या में तेजस्विता प्रदान करती है। माँ वागधिष्ठात्री मेरा नमन स्वीकार करें! माँ सरस्वती की वन्दना में एक गीत मानस में बरबस गूँज उठाता है – वर दे ! वीणा वादिनी वर दे !! यह अनूपम संयोग ही है कि इसके रचयिता कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। सन 1897 के 20 फरवरी को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल में पं० राम सहाय त्रिपाठी के घर, जब माँ शारदे के निराले सपूत का जन्म हुआ अग-जग वीणापाणी की अर्चना में लीन था। महाप्राण निराला पर माँ भारती के अनुग्रह का अनुमान आप सहज लगा सकते हैं। स्कूली शिक्षा के नाम पर मात्र प्रवेशिकोत्तीर्ण किन्तु हिंदी साहित्य के सर्वाधिक प्रभावशाली कालखंड के एक सशक्त स्तम्भ। रीती के बोझ से दबी आ रही कविता-कामिनी का निराला ने छंदमुक्त शैली से उन्मुक्त श्रृंगार कर साहित्य में पुनर्जागरण ला दिया। महाकवि की उपलब्धियों की गणना तो शारदा और शेष ही कर सकते हैं। आईये हम माँ भारती से उनके ही सपूत के शब्दों मे कुछ अनुनय कर लें ! “काट अंध उर के बंधन स्तर, बहा जननी ज्योतिर्मय निर्झर ! कलुष-भेद,तम हर प्रकाश भर, जग-मग जग कर दे !! वर दे वीणा वादिनी! वर दे !! वर दे !!” ***
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बुधवार, 20 जनवरी 2010
आज वसंत पंचमी है !
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आपको भी वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंआपको भी वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये ..........
जवाब देंहटाएंbasant panchami ki hardik shubhkamnaaE!!!
जवाब देंहटाएंआपको भी वसंत पंचमी की शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंMaa sharda ko sat sat naman ....
जवाब देंहटाएंKavivar Suryakant Tripathi Nirala ko unki janamdiwas ap hardik badhai....aur Ap sabi ko vasant panchmi ki subhkamanye..
veenq vadini var de...
जवाब देंहटाएंSundar saras paavan ras ka sanchaar karti sundar post....
जवाब देंहटाएंSaty kaha aapne aaj bhi yadi veenavadini ke prarthna ko man utsuk hota hai to jihvaa par "varde vinavadini var de " geet ka hi swatah smaran ho aata hai...
Sundar post ke liye bahut bahut aabhar...
आपको भी वसंत पंचमी की शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंACHA LEKH.VASANT PANCHAMI KI SHUBHKAMNAY..
जवाब देंहटाएंसरस्वती की कृपा हम सब पर बनी रहे।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया, बहुत दिनों बाद यह श्लोक कहीं पढ़ा है, शायद स्कूल के दिनों के बाद से अब।
जवाब देंहटाएंधार में विवादित भोजशाला में माँ सरस्वती का पूजन होता है वसंत पंचमी के दिन। कहते हैं माँ की मूर्ती हीरे पन्ने से जड़ी थी तो अंग्रेज उस मूर्ती को अपने साथ लंदन ले गये। अब देखते हैं कि कब वापिस आती है।
आपको भी वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ।
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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औरतों के दाढ़ी-मूछें उग आएं तो..?
ज्योतिष के सच को तार-तार करता एक ज्योतिषाचार्य।
Khub badhiya hain aapka Aaj Basant Panchmi par likha ye alekh.
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