नमस्कार मित्रों ! मकर-संक्रांति की शुभ कामनाएं ! दही-चूरा के नशे में चौपाल आने में थोड़ा विलम्ब हो गया लेकिन इस चौपाल में आपके लिए ले कर आया हूँ, इस ब्लॉग पर नए और एक प्रसिद्द कवि की एक विशिष्ट अनुभूति !! |
महानगर की उस बस में, इतनी भीड़ हो जायेगी, अगले स्टॉप पर ! मालुम नहीं था उसे !! दूर तक जाना था ! बसें सभी लदी आ रही थी ! नाजुक सुन्दर चेहरे में, सम्मोहन उसका कसूर नहीं था, सजा उसे मिल रही थी !! उसके इर्द-गिर्द अनावश्यक सी, बेहद भीड़ हो गयी थी ! उसकी मुद्राएँ बताती, बीड़ी-सिगरेट की गंध, उसे तकलीफ दे रही थी !! कुछ भी नहीं किया था मैं ने, बस अपनी जगह दे दी थी ! जगह, जो किसी की नहीं होती !! अहसान की तरह उसने जगह ले ली !! शालीन चेहरे पर, झेंप सा कुछ था ! क्योंकि, मैं खड़ा था, उमरा में बड़ा था ! वह मुझसे पहले बस से उतरी ! मैं ने महसूस किया था, उतरने के बाद, उसकी नज़रों ने, मुझे देखना नहीं भूला था ! और वह देखना, सिर्फ देखना नहीं था !! -- ईश्वरचंद्र मिश्र |
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आदरणीय मिश्र जी को बधाई। कविता अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंjo aadar samman aankhe detee hai vo shayad shavd bhee nahee de pate kabhee kabhee .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना लगी मिश्र जी की. आपका आभार.
जवाब देंहटाएंEk acchi rachna. Mishra ji ko meri or se bhi badhai.
जवाब देंहटाएंSh. Mishra jee ko pahli baar padha... achhi rachna hai...
जवाब देंहटाएंMr. Mishra Ji take warm Welcome in this site. your written "Chhand Rahit" poem is very touching.
जवाब देंहटाएंयही है हमारी सभ्यता का विकास..... सरल शब्द में मारक व्यंग्य !!
जवाब देंहटाएंHar roz inhi muskilo se gujarna padta hai hume...bahot he sachi vyangyatamak rachna..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना. मिश्रा जी धन्यवाद
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