-- मनोज कुमार
मैं जिक्र अनूप शुक्ल का कर रहा हूँ। हिंदी ब्लॉग की दुनिया के लोग उनसे बहुत अच्छी तरह से परिचित हैं ही। यह मेरा ही दुर्भाग्य था कि एक ही संगठन में पिछले 21 साल से काम करते हुए भी उनसे मिलने का संयोग आज तक नहीं हो पाथा था। सिंतबर 2009 से मैं भी हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़ा। कुछ अपनी संकोच और कुछ नए-नए होने के कारण मेरी तरफ से श्रेष्ठ ब्लॉगरों से संपर्क में देरी हुई। पर शुक्ल जी अपनी तरफ से यदा कदा फोन कर मेरा मार्गदर्शन और हौसला आफ़ज़ाई करते रहे।
मिलने के प्रथम संयोग का मैं भरपूर लाभ उठाने के अपने उद्देश्य से दफ्तर के कार्यकाल की समाप्ति के बाद काशीपुर के लिए शाम 6.30 पर प्रस्थान किया। पहुंचते-पहुंचते 7.30 बज गए। अनूप जी को प्रतीक्षारत पाकर एक सुखद हर्ष हुआ। वे लपक कर गले मिले और इस माहौल में बातचीत शुरू की कि लगा मानो हम एक दूसरे को वर्षों से जानते हो। उनकी व्यग्रता देख मैं हतप्रभ हो गया। उन्होंने सबसे पहले मुझे लिंक लगाने के गुर सिखाये फिर तो हम खुलकर एक दूसरे को अपने-अपने-ब्लॉगिंग अनुभव बताते रहे। बातों बातों में कब डिनर का समय हो गया पता ही नहीं चला।
प्रियंकर जी और शिव कुमार मिश्र जी से यह मेरी पहली मुलाकात थी। और श्री मृणाल त्रिपाठी तो हमारे सहकर्मी ही हैं पर उनके हिंदी ब्लॉग लेखन के बारे में मुझे जानकारी नहीं थी , मालूम हुअ कि वो भी कभी काफी सक्रिय थे। पर आजकल लेखन कम पठन में ज्यादा उनकी रूचि है।
प्रियंकर जी से परिचय थोड़ा पुराना था। सलिल दवे हमारे फाण्डेशन कोर्स के दिनों के मित्र हैं। वो सरकारी नौकरी छोड़ कर आजकल अमेरिका में Microsoft को अपनी सेवाएं दे रहें हैं। Facebook पर यदा-कदा उनसे आलाप हो जाता है। वहीं उन्होंने मेरी एक कविता से प्रभावित हो श्री प्रियंकर जी का लिंक दे दिया दिया था। हम Facebook पर एक-दूसरे से मिले और टेलीफोन नम्बर का आदान-प्रदान भी किया, पर प्रत्यक्ष मिलना तो नहीं ही हुआ टेलीफोन पर भी बातचीत न हो सकी। शायद हम हिंदी साहित्य में रुचि रखनेवाले एक दूसरे को परखने में ही मित्रता आगे बढ़ाने का अवसर खोते रहते हैं। चाहे वह एक कवि का दूसरे कवि से हो। एक साहित्यकार का दूसरे साहित्यकार से। एक संपादक का रचनाकार से। और यह परखने का सिलसिला इतना लंबा होता है कि नए रचनाकार का तो मनोबल ही टूट जाता है। आखिर वही नया तो एक दिन पुराना होगा। और यह बात ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी है। पुराने ब्लॉगर नए ब्लॉगर को परखते-परखते ही उसका हौसला ध्वस्त कर देते हैं। इसी सब से चिंतित हो मैंने जरा इन नए ब्लागर्स की सोचें पोस्ट प्रस्तुत की थी। इस विषय पर भी चर्चा हुई और कुछ संकल्प लिए गए। शायद उसका अनुपालन भी हो। पर मैं बात प्रियंकर जी की कर रहा था …. उनकी साहित्यक समझ और परिपक्वता ने न सिर्फ मुझे प्रभावित किया बल्कि उनके कई वाक्य जो बड़े ही सहज और अनायास कहे गए थे, उन्हें किसी भी साहित्यिक कृति की कोटेबल सेन्टेंस की श्रेणी में रखा जा सकता है। यह मेर मनना है। आप नहीं मनने के लिये स्वतंत्र हैं।
शिवकुमार जी जितने हास्य-व्यंगय की रचनाएं देते हैं उसके विपरीत काफी धीर-गंभीर व्यक्तित्व के स्वामी लगे। पर बीच –बीच में चुटकियां लेना उनके व्यक्तित्व की विशेषता लगी। उनकी सिद्धूवादी बातों का तो फैन हूँ ही पर मुझे दुर्योधन की डायरी का पाठन करना है जिसकी उस दिन विशेष चर्चा हुई। हां आतिथ्य सत्कार करने का उनका विशेष अंदाज हमें चलते वक्त यह कहने से नहीं रोक पाया कि वे अगली बैठक का शीघ्र आयोजन करें ताकि ऐसी स्वस्थ चर्चा हम फिर कर सकें।
स्वस्थ मतलब स्वस्थ ! न हमने किसी की आलोचना की, न किसी विवाद का सृजन किया। साहित्य, संस्कृति, समाज, ब्लॉगजगत आदि के विभिन्न पक्षों पर एक गंभीर बहस हल्के-फुल्के माहौल में मिश्र जी द्वारा पेश किए गए ढोकले एवं पकौड़ों के बीच बिना दूध की स्पेशल चाय (जो शायद अनूप जी को रूचिकर नहीं लगी) के साथ किया गया।
इस अविस्मरणीय शाम के लिए मैं श्री अनूप शुक्ल जी का हृदय से आभारी हूँ। उस दिन फुरसतिया मुझे फुरसत में ही दिखे, जो आराम से हमें ब्लागिंग एवं ब्लाग जगत के गूढ रहस्य बताते रहे।
यह मुलाक़ात बहुत अच्छी लगी..... अनूप जी से मेरा नमस्कार कहियेगा....
जवाब देंहटाएंवाह! सुकुल जी से हमारा भी गोड़ लागी कहिए गा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मुलाकात। कहिएगा कि हमे भी दर्शन देकर कृतार्थ करें।
जानकारी के लिए आभार
साहित्य, संस्कृति, समाज, ब्लॉगजगत आदि के विभिन्न पक्षों पर एक गंभीर बहस हल्के-फुल्के माहौल में मिश्र जी द्वारा पेश किए गए ढोकले एवं पकौड़ों के बीच बिना दूध की स्पेशल चाय (जो शायद अनूप जी को रूचिकर नहीं लगी) के साथ किया गया।
जवाब देंहटाएंबधाई इस ब्लोगर मीट की .....चाय की बात पे स्मरण हो आया .....आज मैं भी एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में बिना धुध की चाय भी के आ रही हूँ ....खास बात ये थी कि इस कार्यक्रम में मेरे लिखे गीत को बच्चों से गवाया गया था .....!!
इस रिश्ते का भी अब कोई नाम रखना होगा।
जवाब देंहटाएं'बीसाथी'
चलिए अनूप जी से मुलाकात हो गई। शिवकुमार व्यंग्य में भी गंभीर रहते हैं।
जवाब देंहटाएंआपको फ़ुर्सतिया जी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ इसके लिये आपको बधाइ.
जवाब देंहटाएंबड़ा मजेदार रहा कोलकता में मिलना सब लोगों से। बहुत दिन बाद आमने-सामने इत्ती खिंचाई हुई/करी/ कराई गयी।
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज को हम भी नमस्कार कर रहे हैं। ललित शर्माजी के अनिल भैया से आजै बतियाये हैं। वे जल्द ही रायपुर में जमावड़ा करने वाले हैं तब आपके दर्शन करने आयेंगे।
बिना चीनी की चाय का लफ़ड़ा ई है कि हमे लगता है कि वो चाय बीमारू होती या वीआईपी वाली। अपने दोस्तों के बीच हम इसे एस.ए.जी. चाय कहते हैं जो हमारे वरिष्ठ अधिकारी ग्रहण करते हैं। हम तो दूध वाली जनता चाय के ही मुरीद हैं।
आनन्दित हुये थे कोलकता में मिलकर। प्रमुदित हुये मुलाकात के बारे में पढ़कर।
अनूप जी आपका आभार। आपकी उस दिन की प्रेरणा से कल से राजभाषा हिन्दी का शुभारंभ हो रहा है।
जवाब देंहटाएंआत्मीय माहौल में मुलाकात आनंदित करने वाली है...ब्लॉगिंग का भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बढ़िया मेला मेली हुई। बधाई।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
इस तस्वीर के १/२ से तो मैं मिल चूका हूँ. बस एक बार शिव भैया के आतिथ्य सत्कार का आनंद लेना बाकी है :)
जवाब देंहटाएंअच्छी वृत्तांत -संस्मरण चर्चा ...लगता है हमहूँ के कोलकाता आना पड़ेगा -लगता है जजमानी अच्छी है वहां
जवाब देंहटाएंयी चाय वाय तो केवल बहाना रहा भाई दरअसल असली बतिया कुछ औरो रही ...
बाकी माछ भात और सोमरस के बराबरी कौनो व्यंजन का होई -
ई त उन्हां इफरात में होइबे करी .....तब हम जरूर अईबे करी ....
स्मरणीय मुलाकात का सजीव विवरण दिया आपने ! आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह! एक अच्छी मुलाकात का विवरण दिया है आपने । बधाई।
जवाब देंहटाएंआप सबसे मिलना एक सुखद अनुभव रहा. प्रियंकर जी, अनूप जी के फैन तो हम बहुत दिनों से हैं. अब आपके भी हो लिए.
जवाब देंहटाएंढोकले एवं पकौड़ों के बीच????
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संस्मरणात्मक विवरण।
जवाब देंहटाएंफुरसतिया कबहुँ फेरो फुरसत में मिले तो हमहुंका बताइयेगा..... मिसिरजी का चाह तो ई बार मिस कर गए, मौका मिला तो दोबर सधा लेंगे !! सहज, सरस और नैसर्गिक लेखन !!!
जवाब देंहटाएंतस्वीर में मिश्रजी व शुक्लजी कुछ कमजोर लग रहे हैं. आशा है दोनो का स्वास्थय स्वस्थ है.
जवाब देंहटाएंरपट सही रही. कोलकाता ब्लॉग-मिलन की सुचना था, रपट अब आई है.
Milansar Prastuti :)
जवाब देंहटाएं@ Arvind Mishra आप अवश्य आयें। मांछ ... इलिश माछ तो यहां का प्रसिद्ध है ही ... साथ ही सोमरस नहीं मिष्टी दोई .. का कंबीनेशन सही रहेगा।
जवाब देंहटाएं@ संजय बेंगाणी आपने बहुत सही गौर फ़रमाया है। शिव जी थोड़े शारीरिक कष्ट में हैं। हां चिकित्सक की सलाह पर फीजियोथेरापी करवा रहें हैं। हम उनके शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना करते हैं।
जवाब देंहटाएंअनूप जी बिलकुल तंदुरुस्त हैं।
ye badhiya hua ki aap log mil baithe.
जवाब देंहटाएंsukul ji k pankhe to apan bhi hai.
shiv bhaiya k vyang lekhan ki to bat hi kya.
kabhi chhattisgarh bhi aayein aap sab
फ़ुरसतिया जी की फ़ुरसत से हम सब तो भली भांति परिचित हैं ही चलिए आप की भी मुलाकात हो गई। उन्होंने कलकत्ते से फ़ोन पर हमें आप सबकी इस मुलाक़ात का उल्लेख किया था और आप सबसे मिलने की खुशी ज़ाहिर की थी। आप सबके साथ उनको भी हमारा सलाम।
जवाब देंहटाएंBade aaraam se yah andaja lagaya jaa sakta hai ki aaplogon ka yah milan sammelan kitna aanand dayak raha hoga....
जवाब देंहटाएंAage bhi aise madhur milan hote rahen aur sablog swayan aanandit hote hue aanand ras ka prasaar karte rahen,yahi shubhkaamna hai...
ache log kaise bhee mil le; kisi bhee bhane se mil le; fal hamesha achha hee ayega...
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग ने सृजनशील लोगों को नई उर्जा दी है और लोगों का ऐसा नेटवर्क बनाया है जहां संभावनाएं अनंत हैं। व्यक्तिगत मुलाकात की प्रस्तुति इतनी सरस थी कि मैने खुद को भी आप लोगों के बीच ही बैठा पाया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया संस्मरण ..
जवाब देंहटाएंकलकत्ता तो हमारे पास है...चलिए आपस में मिलने पर ही एक-दुसरे के बारे में लोग जान पाते हैं...जब तक न मिलो कैसे कोई किसी को सही मायने में पहचान सकता है...??
ऐसी ही मुलाकातें आप सबके जीवन में आती रहे यही कामना है...
सादर...