-- करण समस्तीपुरी
जब सैयां भये कोतवाल तो बीवी चौकीदारो तो होगी..... ! अब कोई इसे परिवारवाद कहे कि वंशवाद लेकिन हमें तो भैय्या ई में कौनो ऐब नहीं दीखता है। आज-कल बिहार के एगो पूर्व सांसद जी को ई बहुत खल रहा है। बेचारे मुख मंत्री जी को बानर और लील-गाय का किस्सा तो सुनाइये रहे हैं तरातर चिट्ठी-पत्री भी लिख रहे हैं कि भैय्या ई का हो रहा है... ? आज-कल तमाम संवैधानिक पद इस्पेसल कटेगरी से काहे भरा जा रहा है ?
इहाँ तो अभी चिठिये-पत्री चल रहा है, परोसी राज में तो एगो नेताजी पाटिये छोड़ दिए। सुना है उहों कौनो ऐसने लफड़ा था। एक तरफ कई बार पाटी के संकटमोचन रहे नेता जी थे तो दूसरी तरफ अपने परिवार। अब भाई पाटी तो पाटिये है... कहने-सुनने के लिए तो सब अपने है और सब ठीके है लेकिन असल बेर-कुबेर में तो अपना परिवार ही काम आता है। वैसे भी कहा जाता है, "बाँट-छुट खाएं तो राजा घर जाएँ!" सो अगर मिठाई का डब्बा हाथ लग गया तो घर-परिवार में बाँट के खा लिए तो इसमें इन्ना हाय-तौबा मचाने की क्या जरूरत है ? आखिर यह किस घर में नहीं होता है..... ? और कोई नई बात तो नहीं है....?
सृष्टि के आरम्भ में देव-लोक बना। देवताओं के बीच महत्वपूर्ण विभागों का बंटवारा हुआ। ब्रह्माजी को मिला उत्पाद विभाग। बैठ के उत्पादन करते रहिये। विष्णु जी को मिला परिवार-कल्याण, एवं भरण-पोषण। देखिये यहाँ तक तो सब कुछ तार्किक ढंग से चल रहा था। आखिर ब्रह्मा को खाद्य-आपूर्ति विभाग क्यूँ नहीं मिला... ? यह विभाग विष्णु को ही क्यूँ मिला... ? सवाल योग्यता का है.... भाई ब्रह्मा जी को भरण-पोषण मिलता तो पहिले तो उन्ही का चारो मुंह खुला था.... । बेचारे पहिले अपना चार-चार मुंह भरते कि संसार का... ? उतो विष्णुजी बेचारे चारों हाथ से दुनिया का भरण-पोषण कर रहे हैं अभी तक। लेकिन गड़बड़ तभी शुरू हुआ जब गुण-बल पर संख्या-बल हावी होने लगा। विभागों के बंटवारे के बाद अब भैया सब का हेड कौन बनेगा ? सवाल ये था कि हेड तो वही होगा जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलेगा। फिर तो एक्कहि ऐसा फिगर था जिस पर देव-दानव सब राजी थे। बस बहुमत से बन गए देवाधिदेव महादेव।
ऐसा नहीं है कि देवाधिदेव महादेव से हमको कौनो जड़-जमीन का झगड़ा है। ऐसा भी नहीं है कि हमें उनसे कौनो शिकायत है। हम तो भैय्या खुशे थे कि चलो सब देवता के हेड देवाधिदेव महादेव को बनाया है.... जिन्हें राज-पाट की विलासिता से कोई काम ही नहीं हैं। वो तो दिगंबर योगी मशानी हैं। आशुतोष औढरदानी हैं। हमको भी कौनो जरूरी लगेगा तो एक लोटा जल और दू गो बेल-पत्र चढ़ा के मांग लेंगे। लेकिन रेवड़ी-वितरण तो पहिले ही शुरू हो गया।
सैयां भये कोतवाल तो बीवी को भी कुछ पदवी चाहिए न... । अब खुद देवाधिदेव हैं। सारा वीटो अपने ही पास है। तो लो... श्रीमती जी को बना दिया, अन्नपूर्णा। दे दिया खाद्य-एवं आपूर्ति विभाग। एक बेटा को बना दिए, देवताओं का सेनाध्यक्ष..... 'सुर-सेनप उर अधिक उछाहू!' तो दूसरे को बना दिए, देवताओं में प्रथम पूज्य। शर्त लगी ब्रहमांड के परिक्रमा की लेकिन वी.आई.पी. उम्मीदवार के आगे सारा मानदंड ही बदल गया। उ तो गनीमत की छोटा परिवार था.... नहीं तो पाता चलता कि कौनो विभागे खाली नहीं है। उपरे से ऊपर सारी मलाई कट गयी है।
सो ये घर-परिवार की चिंता तो सृष्टि के आदिकाल से चली आ रही है। इसीलिये इसमें अब किसी को कौनो अचरज नहीं लगना चाहिए। आखिर अब तो ये अपनी सभ्यता-संस्कृति हो गयी है। हम तो भैय्या अपनी संस्कृति से बहुत प्यार करते हैं। प्राण से अधिक संस्कृति का मान करते हैं। हमही क्या.... बहुत सारे ऐसे महान लोग होते रहे हैं हर समाज में, हर समय में जिन्होंने संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सारा सुख-चैन न्योछाबर कर दिया। बात कोई बहुत पुरानी नहीं। कोई एक दशक पहले की है। हम में से कईओं ने अपनी आँखों से देखा और कानों से सूना होगा। हमारे बिहार के ही एक विश्व-विख्यात नेता जी थे। बेचारे खुद राजनीति की रेवड़ी छोड़ के जेल की खिचड़ी खाए लेकिन लुगाई को मुख-मंत्री की कुर्सी पर बैठा दिए। संस्कृति की रक्षा का इस से बड़ा उदाहरण कोई होगा.... ?
जो भी हो, हमें तो भैय्या इस बात पर सच मे गर्व है। कुछ पछियरिया लोग इस संस्कृति पर सवाल उठाते हैं लेकिन जो भी हो सभी संस्कृतियों की तरह इस संस्कृति की रक्षा में भी हमारा प्रांत अव्वल है। एक हमारा प्रांत है, जहां लोग बीवी के लिए राज-पाट त्याग कर देते हैं और एक हमारा परोसी, जहां राज-पाट के लिए बीवी को ही त्याग देते हैं।
जब सैयां भये कोतवाल तो बीवी चौकीदारो तो होगी..... ! अब कोई इसे परिवारवाद कहे कि वंशवाद लेकिन हमें तो भैय्या ई में कौनो ऐब नहीं दीखता है। आज-कल बिहार के एगो पूर्व सांसद जी को ई बहुत खल रहा है। बेचारे मुख मंत्री जी को बानर और लील-गाय का किस्सा तो सुनाइये रहे हैं तरातर चिट्ठी-पत्री भी लिख रहे हैं कि भैय्या ई का हो रहा है... ? आज-कल तमाम संवैधानिक पद इस्पेसल कटेगरी से काहे भरा जा रहा है ?
इहाँ तो अभी चिठिये-पत्री चल रहा है, परोसी राज में तो एगो नेताजी पाटिये छोड़ दिए। सुना है उहों कौनो ऐसने लफड़ा था। एक तरफ कई बार पाटी के संकटमोचन रहे नेता जी थे तो दूसरी तरफ अपने परिवार। अब भाई पाटी तो पाटिये है... कहने-सुनने के लिए तो सब अपने है और सब ठीके है लेकिन असल बेर-कुबेर में तो अपना परिवार ही काम आता है। वैसे भी कहा जाता है, "बाँट-छुट खाएं तो राजा घर जाएँ!" सो अगर मिठाई का डब्बा हाथ लग गया तो घर-परिवार में बाँट के खा लिए तो इसमें इन्ना हाय-तौबा मचाने की क्या जरूरत है ? आखिर यह किस घर में नहीं होता है..... ? और कोई नई बात तो नहीं है....?
सृष्टि के आरम्भ में देव-लोक बना। देवताओं के बीच महत्वपूर्ण विभागों का बंटवारा हुआ। ब्रह्माजी को मिला उत्पाद विभाग। बैठ के उत्पादन करते रहिये। विष्णु जी को मिला परिवार-कल्याण, एवं भरण-पोषण। देखिये यहाँ तक तो सब कुछ तार्किक ढंग से चल रहा था। आखिर ब्रह्मा को खाद्य-आपूर्ति विभाग क्यूँ नहीं मिला... ? यह विभाग विष्णु को ही क्यूँ मिला... ? सवाल योग्यता का है.... भाई ब्रह्मा जी को भरण-पोषण मिलता तो पहिले तो उन्ही का चारो मुंह खुला था.... । बेचारे पहिले अपना चार-चार मुंह भरते कि संसार का... ? उतो विष्णुजी बेचारे चारों हाथ से दुनिया का भरण-पोषण कर रहे हैं अभी तक। लेकिन गड़बड़ तभी शुरू हुआ जब गुण-बल पर संख्या-बल हावी होने लगा। विभागों के बंटवारे के बाद अब भैया सब का हेड कौन बनेगा ? सवाल ये था कि हेड तो वही होगा जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलेगा। फिर तो एक्कहि ऐसा फिगर था जिस पर देव-दानव सब राजी थे। बस बहुमत से बन गए देवाधिदेव महादेव।
ऐसा नहीं है कि देवाधिदेव महादेव से हमको कौनो जड़-जमीन का झगड़ा है। ऐसा भी नहीं है कि हमें उनसे कौनो शिकायत है। हम तो भैय्या खुशे थे कि चलो सब देवता के हेड देवाधिदेव महादेव को बनाया है.... जिन्हें राज-पाट की विलासिता से कोई काम ही नहीं हैं। वो तो दिगंबर योगी मशानी हैं। आशुतोष औढरदानी हैं। हमको भी कौनो जरूरी लगेगा तो एक लोटा जल और दू गो बेल-पत्र चढ़ा के मांग लेंगे। लेकिन रेवड़ी-वितरण तो पहिले ही शुरू हो गया।
सैयां भये कोतवाल तो बीवी को भी कुछ पदवी चाहिए न... । अब खुद देवाधिदेव हैं। सारा वीटो अपने ही पास है। तो लो... श्रीमती जी को बना दिया, अन्नपूर्णा। दे दिया खाद्य-एवं आपूर्ति विभाग। एक बेटा को बना दिए, देवताओं का सेनाध्यक्ष..... 'सुर-सेनप उर अधिक उछाहू!' तो दूसरे को बना दिए, देवताओं में प्रथम पूज्य। शर्त लगी ब्रहमांड के परिक्रमा की लेकिन वी.आई.पी. उम्मीदवार के आगे सारा मानदंड ही बदल गया। उ तो गनीमत की छोटा परिवार था.... नहीं तो पाता चलता कि कौनो विभागे खाली नहीं है। उपरे से ऊपर सारी मलाई कट गयी है।
सो ये घर-परिवार की चिंता तो सृष्टि के आदिकाल से चली आ रही है। इसीलिये इसमें अब किसी को कौनो अचरज नहीं लगना चाहिए। आखिर अब तो ये अपनी सभ्यता-संस्कृति हो गयी है। हम तो भैय्या अपनी संस्कृति से बहुत प्यार करते हैं। प्राण से अधिक संस्कृति का मान करते हैं। हमही क्या.... बहुत सारे ऐसे महान लोग होते रहे हैं हर समाज में, हर समय में जिन्होंने संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सारा सुख-चैन न्योछाबर कर दिया। बात कोई बहुत पुरानी नहीं। कोई एक दशक पहले की है। हम में से कईओं ने अपनी आँखों से देखा और कानों से सूना होगा। हमारे बिहार के ही एक विश्व-विख्यात नेता जी थे। बेचारे खुद राजनीति की रेवड़ी छोड़ के जेल की खिचड़ी खाए लेकिन लुगाई को मुख-मंत्री की कुर्सी पर बैठा दिए। संस्कृति की रक्षा का इस से बड़ा उदाहरण कोई होगा.... ?
जो भी हो, हमें तो भैय्या इस बात पर सच मे गर्व है। कुछ पछियरिया लोग इस संस्कृति पर सवाल उठाते हैं लेकिन जो भी हो सभी संस्कृतियों की तरह इस संस्कृति की रक्षा में भी हमारा प्रांत अव्वल है। एक हमारा प्रांत है, जहां लोग बीवी के लिए राज-पाट त्याग कर देते हैं और एक हमारा परोसी, जहां राज-पाट के लिए बीवी को ही त्याग देते हैं।
हम भैय्या और किसको कहें.... ? रामेजी को कहते हैं। आखिर क्या बिगाड़ा था हमरी सीता मैय्या ने? जब इनका वनवास हुआ था तो बेचारी सारा ऐश्वर्य त्याग कर इनके साथ चल पड़ीं। कौन-कौन कष्ट नहीं उठाई...? और जब इनका राज-पाट हुआ तो एगो धोबी के कहे सीता मैय्या को रातो-रात देश निकला दे दिया। और बहाना क्या तो राजधर्म। राजा को न सबकी जवाबदारी थी। ऐसा था तो छोड़ देते राज-पाट और दुन्नु प्राणी साथ-साथ वन में चले जाते..... ! लेकिन नहीं.... बाप रे बाप !! चौदह साल पर तो राजगद्दी मिली है इसे कैसे छोड़ देंगे। मगर हमारे बिहार का आदमी रहता तो कहता भांड़ में जाए ऐसा राज-पाट। बीवी-बच्चा वन-वन भटके, ऐसे राजगद्दी से भला तो फकीरी सही। अब ज्यादे क्या कहें.... सीता मैय्या की याद आते ही हमरा गला भर आता है। आँखें छलक आती हैं। मन व्यथित हो जाता है। बेचारी हमारी मिथिला की बेटी थी इतनी सहनशील तब न इतना अत्याचार झेल कर भी कभी एक शब्द मुंह से नहीं निकाली.... ! काश उनके साथ भी न्याय हुआ होता.... ! काश वहाँ भी संस्कृति का सम्मान हुआ होता.... ! उनके पति भी तो 'सब समर्थ कोशलपुर राजा' थे। अब बस करते हैं। इस से आगे लिखा नहीं जा रहा। जय राम जी की !!!!
सच में मिथिला के साथ अवध ने अन्याय किया।
जवाब देंहटाएंआज बिहार सँघर्ष करे। हम उसके साथ हैं!
राम ने सीता पर अन्याय किया , फिर भी प्रभु राम और जय के अधिकारी और सीता मैय्या अब भी अग्नि परीक्षा से गुजर रही है ?????
जवाब देंहटाएंज्ञान जी ने सही कहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंगात्मक शैली में लिखा लेख....आनंद आया....बधाई
जवाब देंहटाएंएक अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंlekh accha laga. Dhanyawaad...
जवाब देंहटाएंअरे वाह क्या बात है भईयां बोत सुंदर लिखत हो
जवाब देंहटाएंवाकई लेख अच्छा लगा । बधाई ।
जवाब देंहटाएंसटीक आलेख!
जवाब देंहटाएंव्यंग्य के शक्ल में उतारी गयी बिहार के साथ होने वाले युगों पुराने भेदभाव कि एक सुन्दर तस्वीर.......धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा। व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंLekh accha laga.
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख , बढ़िया अंदाज
जवाब देंहटाएंJai ho Duniya, Jai ho teri Lila.
जवाब देंहटाएंJisne upkar kiya, usi ko Kila.
Han me han bharne vale ko bhi.
Aasra dena door, Zahar de dala.
Sach much Vyang ke jariye kya khubsurat Sachchayi likh dali aapne. dhany hain Lekhak Shri Keshav Ji.
Satyam Shivam Sundaram...
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों को बहुत-बहुत धन्यवाद ! ज्ञानदत्तजी, मनोज द्वय, उड़नतश्तरीजी, राज भाटिया साहब, संगीताजी, अजय एवं हस्याफुहार ,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियाँ देख कर प्रस्तुत लेखन सफल एवं और लिखने की ऊर्जा स्वतः प्राप्त हो जाती है ! हृदय से आपका आभारी हूँ !!
मोहसिन, समीम, संदीप एवं रचना जी,
आपका नियमित पाठन निश्चित रूप से मेरे ब्लॉग लेखन में सबसे मुखर प्रेरक हैं ....... क्या धन्यवाद कहने की आवश्यकता है ?
आशुजी,
आप हमारे ब्लॉग/पोस्ट पर पहली बार प्रत्यक्षतः आये, आपका अभिनन्दन एवं आभार ! ब्लॉग पर किसी नए सदस्य के आगमन पर जिस आनंद की अनुभूति होती है, वो सच में अनिर्वचनीय है!! आशा है, आप बार-बार आयेंगे !!!!
लेकिन मुझे लग रहा है कि यहाँ मेरा लेखन कुछ अधिक ही अस्पष्ट है.......... शायद मैं विषय-वस्तु के सम्प्रेषण में सफल नहीं रहा.... आलेख का विषय (परिवारवाद) निश्चित रूप से आरम्भ है ! उपसंहार में तो बस उस पर व्यंग्य है !!!!! संभव है इस बार कुछ तारतम्यता का अभाव रह गया हो ! अगली बार से प्रयासों में सघनता लाने की कोशिश करूंगा !!!
एक बार पुनः आप सब का कोटि-कोटि धन्यवाद !!!!!
द्वीपांतर परिवार की ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंsaras... saamayik aur maarak vyangya !!!
जवाब देंहटाएंइस रचना ने मन नोह लिया।
जवाब देंहटाएंदिलचस्प,रचना अच्छी लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंसटीक आलेख!
जवाब देंहटाएंbahot sahi hai. mazedar.
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाकई लेख अच्छा लगा । बधाई ।
जवाब देंहटाएंinteresting!
जवाब देंहटाएंBahot he achi rachna..
जवाब देंहटाएंkabile tarif aalekh raha is bar ka
जवाब देंहटाएंaalekh prasansniye hai
जवाब देंहटाएंSACHI AUR ACHI KAHANI LAGI
जवाब देंहटाएंGOOD ONE
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और सही लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंAJ KAI DINO BAD MOKA MILA APKE DWARA LIKHA GAYA VYANGYATMAK RACHNA PADHNE KA, AUR HUMESA KI TARAH AJ B APKI RACHNA BAHOT HE ACHI LAGI.AP AISE HE LIKHTE RAHE.DHANYAWAD
जवाब देंहटाएंएक सार्थक व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुंदर लिखा है ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंShri Ram ne jo kiya wo to galat tha he mai inna he kahna chaungi..kuch to majburiya rahi hogi yu he koi bewafa ni hota. Bahot he sundar aalekh.
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