-- मनोज कुमार
ऊ दिन छदामी लाल को घर में रहना किसी रणभूमि के आखाड़े से कम नहीं लग रहा था। ख़ुद्दे से नाराज़ छदामी घरे से निकल लिए मानसिक शांति खोजे ख़ातिर। बहुत देर इम्हर-ओम्हर भटकने के बाद मैदान पहुंचे। हरियर घास के चादर पर पीयर-पीयर फैलल धूप देखकर तो उनका वहीं पर लेटने का मन बन गया। तभिए सामने एक कोने में चिठियाना को लेटे-लेटे कुछ लिखते देखे। छदामी लाल के मन में चिठियाने के प्रति और उस से भी बढ़कर उसके विचारों के प्रति अगाध श्रद्धा है। उन्होंने सोचा चल कर आज आभार प्रकट कर ही दूं। ज्यों ही क़दम बढ़ाये कि आंधी-तूफान की-सी गति से टिपियाना का वहां पदार्पण हुआ।
टिपियाना - लो, तुम यहां बैठे हो, और मैंने तुम्हें कहां कहां नहीं ढ़ूंढ़ा।
चिठियाना – क्यों, क्या ऐसी बात हो गई जो तुम मुझे इतनी बेसब्री से ढ़ूंढ़ रहे थे।
टिपियाना – आज मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा है और मैं अपने आप से
बहुत ख़फ़ा हूं।
चिठियाना - क्या हुआ ?
टिपियाना - यार मैं किसी से कुछ कहता हूं तो लोग बात का बतंगड़ निकाल लेते हैं और फिर मेरी फ़ज़ीहत कर डालते हैं।
चिठियाना - किसने की तेरी फ़ज़ीहत ?
टिपियाना - आज तो बात घर की ही है !
चिठियाना - घर की ? .. भाभी जी … !
टिपियाना - हां ..!
चिठियाना - अब तुछ तफसील से बताओगे भी ...!?
टिपियाना - आज लंच में परोसे गए आहार को चख कर मैंने उनके पाकशास्त्र पर अपनी प्रतिक्रिया क्या दे दी, बस वही मेरा यह टिपियाना मेरे लिए दिन भर जी का जंजाल बना रहा। सब्जी में मिर्च की अधिकता से आहत मुंह इतना ही तो बका था – “आज यह क्या बना डाली हो? मिर्ची ही मिर्ची, - सब्जी नहीं आग है।” मेरा यह बोलना था कि उनको ही मिर्ची लग गई। तब से घर का तो यह आलम है कि पूछो ही मत। उसने कहां-कहां नहीं इसकी चर्चा कर डाला है। मैं कहीं मुंह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहा।
चिठियाना - तेरे बेवकूफ दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई कि उन्हें तेरी यह प्रतिक्रिया नहीं भाएगी। अब इस तरह की खड़ी-खोटी प्रतिक्रिया दोगे तो कौन लाइक करेगा।
टिपियाना - अरे मेरी तो मति ही मारी जाती है जो मैं सब जगह टिपियाते फिरता हूं।
चिठियाना - तो क्या मामला नहीं थमा
टिपियाना - उनकी जुबान से आज अमृत वर्षा थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। इसीलिए मैं घर से भागा-भागा फिर रहा हूं और तुम्हें ढ़ूंढ़ रहा था। ताकि कुछ सही सलाह मिल जाए।
चिठियाना - अरे .. रे.. रे... यह तो बहुत ही बुरा हुआ। अब .. अब ...
टिपियाना - अब तो समझो मेरा दाना पानी ही बंद होने वाला है। बोल रही थी मैं अब तुम्हारे इस जगत से आज ही चली जाऊंगी। अब तुम्ही बताओ कि इतनी तीखी सब्जी परोस कर कोई पूछे बताओ कैसी है ? तो मैं क्या कहता ?
चिठियाना - ऐसे संवेदशील मामलों में समझदारी से काम लेनी चाहिए। अरे तुझे तो यह बोलना चाहिए था – वाह मज़ा आ गया। क्या चटपटी सब्जी बनी है। मुंह तो मुंह कानों को भी स्वाद आ गया। इस तरह से बोलने से तेरा क्या जाता ?
टिपियाना - मेरा क्या जाता .. तुम क्या समझोगे हम टिपियानों की ज़ज़्बात .. अरे अगर हम उसी समय और उसी लहजे में नहीं टिपियाते तो हमारा तो रातों की नींद और दिन का चैन छिन जाता।
चिठियाना - अब कयूं अपनी भूल का अहसास हो रहा है ? पूरे स्वाद के साथ उस स्वीट डिश का आनंद लो !
टिपियाना - अरे यार तुम अभी तक मामले की गंभीरता को समझ नहीं रहो हो। उन्होंने जाने का ऐलान कर दिया है। पलायन !! और इस बार न आने की बातें भी कह रही थी।
चिठियाना - तो उनके चले जाने से तुम्हारा क्या जाता है ? वो जा रही है तो जाने दो। जी भर के, स्वीट डिश की प्याली भर-भर के खाना।
टिपियाना - तुम अब भी मेरी मज़बूरी नहीं समझ रहे हो। वो नहीं रहेंगी तो मैं टिपिआऊंगा किसके साथ ? मेरे अस्तित्व की रक्षा के लिए उनका यहां होना बहुत ज़रूरी है।
चिठियाना - तो तुम क्या करना चाहते हो ?
टिपियाना - सीज़फायर ... मैं अपनी तरफ से सीज़फायर ही करना उचित समझता हूं।
चिठियाना - वो तुम कर सकोगे।
टिपियाना - हा। करूंगा। करना ही पड़ेगा।
चिठियाना - देखो यह कोई मामूली बात नहीं है। एक निति है। और इस नीति का दृढ़ता से पालन करना होगा।
टिपियाना - करूंगा।
चिठियाना - मुझे तो नहीं लगता कि बिना कोई ऐसी वैसी प्रतिक्रिया दिए तुम रह पाओगे।
टिपियाना - रह लूंगा यार। अब तो लगता है न टिपियाने में ही समझदारी है।
चिठियाना - तुम तो ज़ज़्बाती हो रहे हो। पर साथ ही तुम्हें दूसरों के ज़ज़्बातों को समझना चाहिए।
टिपियाना - समझता तो हूं।
चिठियाना - तुम कुछ समझते नहीं ।
टिपियाना - तुम ठीक से समझाते नहीं। इतना घुमा फिराकर बात रखते हो कि मेरी समझ में कुछ नहीं आता।
चिठियाना - अच्छा मैं सरल शब्दों में तुम्हें समझाता हूँ – मान लो कि तुम एक श्रेष्ठ चिट्ठाकार हो …..
टिपियाना - ये मान लेने वाली क्या बात … मुझे इससे बड़ी चिढ़ है … मैं हूँ ही …।
चिठियाना - ठीक है … फिर तुमसे भी तो कोई श्रेष्ठ होंगे।
टिपियाना - हां क्यूं नहीं होंगे … डेफिनेटली होंगे।
चिठियाना - तो उनकी श्रेष्ठता का सम्मान करे।
टिपियाना - अच्छा…..
चिठियाना - यदि कोई विद्वान चिट्ठाकार है तो उसकी विद्वता का सम्मान करो।
टिपियाना - अच्छा … ।
चिठियाना - यदि कोई वरिष्ठ चिट्ठाकार है तो उनकी वरिष्ठता का सम्मान करे।
टिपियाना - बहुत खूब... !
चिठियाना - यदि कोई बड़ा चिट्ठाकार है तो उसकी बड़प्पन का सम्मान करो।
टिपियाना - हूँ ..
चिठियाना - यदि कोई बाल चिट्ठाकार है तो उसके बालपन का सम्मान करो।
टिपियाना - कमाल है ..
चिठियाना - यदि कोई महिला चिट्ठाकार है तो उसके मातृत्व का सम्मान करो।
टिपियाना – वाह-वाह। यदि कोई तेरे जैसा मित्र चिट्ठाकार है तो उसकी मित्रता का सम्मान करूं।
चिठियाना - बिलकुल। यही समझाना चाह रहा था मैं तुम्हें कि हमें दूसरों की भावनाओं को समझना चाहिए। उसका सम्मान करना चाहिए।
टिपियाना - बस-बस बहुत हो गया। यदि सबका मैं सम्मान ही करता रहूँ तो – मेरा तो टिपियाना किसी काम का नहीं रहा और हां कान खोल कर सुन लो मिस्टर चिठियाना तुम ऐसा कहके मेरा अपमान कर रहे हो ।
छदामी लाल को इससे ज़्यादा मानसिक शांति की न तो उम्मीद थी न ज़रूरत। वो घर के लिए प्रस्थान कर गए। उनको फिर एक मसाला मिल गया था अपने नए पोस्ट के लिए।
(इतिश्री चिठियाना-टिपियाना मान-न-मान मैं तेरा महमान नामो द्वितीयो अध्यायः !!)
चिठियाना टिपियाना संवाद अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंजोरदार, बेहतरीन, ऐसे ही टिपियाते रहें।
जवाब देंहटाएंवाह,ऐसे ही टिपियाते रहें....
जवाब देंहटाएंवाह , चिठियाते रहें।
जवाब देंहटाएंMazedaar rahee ye jugal bandee!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी अच्छा चिठियाते हो
जवाब देंहटाएंटिपियाना अच्छा लगा. जारी रखें .
जवाब देंहटाएंसत्यवचन,
जवाब देंहटाएंजीभ कितनी भी जल रही हो अब टिपियाते हुए बस यही कहेंगे कि मुंह तो मुंह कानों को भी स्वाद आ गया...
(अंगों के प्रकार मौका देखकर घटाए-बढ़ाए भी जा सकते हैं)
जय हिंद....
वाह !! मनोज भाईजी !!! बेहतरीन तरीके से अपने समझा दिया की टिपण्णी कैसे देवें यानी लेख आपको कैसा भी लगे अच्छा या बुरा !सही या गलत ! पर टिपियाना हमेशां अच्छा है !!! सब्जी की आड़ में आपने बता दिया की पोस्ट में मिर्च ज्यादा जय! हा..हा...हा.. आपने टिपिया दिया और कमी बता दी तो नागवार गुजरी !!! बहुत ..बहु खुबसूरत आज सुबह सुबह की पहली घास का निवाला लिया है !!
जवाब देंहटाएं... rochak prastuti !!!!!
जवाब देंहटाएंसत्य बोलो, प्रिय बोलो,
जवाब देंहटाएंअप्रिय सत्य.. ज़ुबां मत खोलो।
Rocking........ !
जवाब देंहटाएंएक सार्थक आलेख, हास्य शैली में। बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंसतीक व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंbehtareen samvaad
जवाब देंहटाएंअरे वाह क्या बात है! दोनों अध्याय पूरा पढकर ही दम लिया ...रोचक विषय शानदार अंदाज से उठाया है आपने.
जवाब देंहटाएं..प्रयास करें कि संवाद, इससे भी रोचक और ..व्यंगात्मक हो.
bahut badhiya......
जवाब देंहटाएंशानदार! बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंतरकश ने आज एक आलेख लिखा है। उसमें कहा गया है
जवाब देंहटाएंनिजी प्रहार ना करें:
किसी भी साथी पर तथा अन्य किसी भी व्यक्ति पर निजी प्रहार ना करें. याद रखिए आप किसी को मानसिक कष्ट पहुँचा सकते हैं. किसी के लिए उन शब्दों का प्रयोग ना करें जो आप खुद अपने लिए ना सुन सकें. व्यक्ति के विचारों का विरोध करिए लेकिन उस व्यक्ति का नहीं.
पूरा
http://www.tarakash.com/2/lifestyle/etiquettes/672-how-to-write-blog-etiquette.html> यहां पढें ।
शरारत भरी ........ आपके व्यंगात्मक अंदाज़ के पोस्ट भी बहुत मजेदार है ........ हम भी ख्याल रखेंगे आगे से ........ योग्यता के हिसाब से टिप्पियाएँगे ..........
जवाब देंहटाएंsatirical conversation is progressing well!
जवाब देंहटाएंregards,