-- मनोज कुमार
इस से पहले आपने पढ़ा, "तमाम विषमताओं के बावजूद गाँव की रामदुलारी पटना विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर उत्तीर्ण कर पीएच.डी. कर रही है। डॉ. रुचिरा पाण्डेय, समीर और प्रकाश जैसे विश्वस्त मित्रों के साथ वह साक्षरता, नारी-शिक्षा, औरतों के समानाधिकार के लिए संघर्ष करती है। अब आगे पढ़िए !! |
शाम को साये आकाश से उतर कर राघोपुर की धरती की ओर बढ़ते हैं तो ढ़िबरी और लालटेन अधिकांश घरों में जल उठते हैं। पोखर के पूरबरिया मैदान में बच्चों का डोल-पात का खेल बंद हो चुका होता है। बुद्दरदास का तांगा खर्र् खर्र् करते हुए काली थान की ओर जा रहा होता है। छौ बजिया शटल की सीटी की आवाज गांव में स्पष्ट सुनाई देती है। घूरा और बोरसी की आग के साथ-साथ चौपाल की गहमा-गहमी शांत ही होने वाली होती है। गाय-गोरू वाले बथान में उन्हें बांध चुके होते हैं। पूरे गांव में एक निपट सन्नाटा पसरा होता है। पर जुगेसर की चाय की दुकान पर बड़ी रौनक रहती है। मुरली बाबू पूछ बैठे, “बहुत दिन से दिखे नहीं.. कहीं बाहर गए थे का ?” बीड़ी का टुकड़ा नीचे फेक पैर से मसलते हुए बटेसर बोला, “हं.. ऊ .. पटना गए रहे..।” “सब ठीक-ठाक है न..” “हं .. ठीके है.. ऊ बड़की भौजी की मां भर्ती रहिस .. उसी को देखने गए थे। लग गया आठ-दस दिन।” “आब कैसन तबियत है।” “अरे बचेगी थोड़े ही.. खीच रहा है डॉक्टर दुन्नू हाथ से। जितना दिन टनाएगा.. टना जाएगा।” थोड़ी देर इधर-उधर की बातें होती रही फिर बटेसर बोला, -- ” मुरली बाबू.. एकठो बात रहिस .. ऊ का है कि वहां पटना में ... देखिए कोनो बुरा न मानिएगा.. जो देखा सो ही बोल रहा हूं....” “हं-हं बोलो न.. ” “ऊ का है कि ऊहां, पटना में रामदुलारी दिखी रहिस... पटना मारकिट में .. एक ठो दबाई लाने हम ऊधर गए रहे .. तो उसको देखा साथे कौनो लड़का भी था शायद.... होगा कौनो जान-पहिचान। दुन्नु लस्सी पी रही थी.. आ हमको देख के छिपा गई .. हमहू एइसे बिहेभ किए कि देखे ही न हों...। रामदुलारी बौआ पढ़े खातिर पटना गयी है का... ?” "हूँ ।" मुरली बाबू ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया। लेकिन धनेसर साहू बीच में टपक ही पड़े, "और नहीं तो का.... अरे आज का जमाना में लड़का-लड़की में कौन फर्क है? हम तो कलकत्ता में देखते थे, भोरे-भोर लड़का कम लड़की सब पीठ पर गदहझोरा लादे साइकल चढ़े घंटी टन-टनाते चली जाती थी। तुमलोग नहीं देखा है, हम तो अपने आँख से देखा हैं, उहाँ मेमो हाकिम है। देखना रामदुलारी बेटिया पढ़-लिख कर कलस्टर बनेगी। गाँव का नाम रोशन करेगी।" यद्यपि साहूजी ने अपनी बात बहुत सपाट ढंग से कही थी लेकिन मुरली बाबू को इसमें भी व्यंग्य की बू रही थी। पैन में चढ़ी चाय की गंध रह-रह कर मुरली बाबू के मन में हलचल उत्पन्न करने लगी। वहां पर और भी कई लोग थे। प्रत्यक्ष रूप से उन्हें दिखाने के लिए मुरली बाबू तनिक भी विचलित नहीं हुए। शीशा के गिलास में जुगेसर द्वारा दी गई चाय का घूंट भरते हुए उन्हें लग रहा था कहीं उल्टी न हो जाए। पर साथ ही कहीं-न-कहीं मन में उन्हें यह भी सता रहा था अब चार जगह बात फैलेगी और जग हंसाई भी होगा। तभी बटेसर खड़ा हो गया – “अच्छा त हम चलते हैं .. जय रामजीकी। कारी पंडित के ईहां से दू गो घइला लेना है...।” |
बटेसर की बात सच है या महज अफवाह...? जो भी है, क्या होता है इसका अंजाम...?? पढ़िए अगले हफ्ते ! इसी ब्लॉग पर !! |
त्याग पत्र के पड़ाव |
भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥ |
प्रतीक्षा रहेगी.
जवाब देंहटाएंआगे की प्रतीक्षा है बहुत बढ़िया .. मित्र
जवाब देंहटाएंआगे की प्रतीक्षा है बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंBAHUT ACHI PRASTUTI .AGLI KADI KA INTEZAR HAI ...
जवाब देंहटाएंमैं बैठे बैठे महसूस कर रहा था कि गांव में बैठा हूं ।
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी ।
बहुत सुंदर अगली कडी का इंतजार
जवाब देंहटाएंगांव का सजीव चित्रण।
जवाब देंहटाएंबहुत सजीव चित्रण। गांव का। अफवाह फैलाने वाले के मनोभाव का।
जवाब देंहटाएंab to bas jaldi se kahani khatm hone ka intzar hai.
जवाब देंहटाएंग्रामीण परिवेश का नैसर्गिक चित्रण.... प्राकृतिक सौष्ठव.... हाव-भाव... आचरण..... सब कुछ तो वैसा ही जैसा मेरे गाँव में ! बहुत अच्छा.... !!!
जवाब देंहटाएंयह अपनी ओर खींच लेने वाला लेखन है! सुन्दर।
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