इस से पहले आपने पढ़ा, 'ठाकुर बच्चन सिंह के अभियंता बेटे बांके बिहारी से रामदुलारी का व्याह निश्चित हुआ। इधर आगे की पढाई के लिए रामदुलारी की पटना जाने की आकांक्षा पर घरवालों का प्रबल विरोध। लेकिन बाबा की आज्ञा और आशीष से उसका सपना सच होने की दहलीज पर है। पटना विश्वविद्यालय में नामांकन हो गया। वह आज जा रही है शहर। अब आगे पढ़िए !!
६
शहर जाने का समय आ गया। कसौटी पर चढ़ने का समय था वह। रामदुलारी ने अपना सामान उठाया। मैय्या के चरण स्पर्श मात्र से उसके मन में एक विचित्र सी सनसनाहट भर गई। हृदय धड़-धड़ करने लगा। इन अपनों को छोड़ प्रदेश में जाने का भय तो नहीं था यह। उसने अपनी आत्मशक्ति संचित की। हारना नहीं। वह उठ खड़ी हुई। मां की आंखो के आंसू की उपेक्षा भी तो नहीं कर सकती थी। पर वह दृढ़ निश्चय के सहारे आगे बढ़ गई। कोठरी के बाहर आई। बाबू मूर्ति के समान खड़े थे। स्तब्ध-सी रामदुलारी उनकी ओर देखती रही। उसे लगा बाबू का क्रोध अभी शांत नहीं हुआ है। अपने पिता के द्वारा दिए गए वचन से बाबू पराजित महसूस कर रहे थे। पर सबल इच्छाशक्ति के वशीभूत रामदुलारी ने आज नया रूप धारण कर लिया था। वह दिखा देना चाहती थी कि नारी बल अधिक शक्तिशाली है। बाबू के पैर छूकर आगे बढ़ गई। बाबा ने गोवर्धन के चहरे पर नजर दौड़ाई। कहा, “मैं तुम्हारे चेहरे पर स्पष्ट देख रहा हूँ, तुम रामदुलारी के भविष्य को लेकर विशेष चिंतित हो। किंतु मैं नहीं। जिन संस्कारों में वह पली-बढ़ी है, वे ही उसकी पथ-बोधिनी बनेंगी। कर्तव्य-अकर्तव्य की बुद्धि है उसमें। कुल-खानदान का नाम रोशन करेगी हमारी बिटिया।"
बाबा के लिए हृदय में अगाध श्रद्धा-भाव के लिए जब वह उनके सम्मुख आई तो अपने को रोक न पाई। उनके चरणकमल स्पर्श करते समय अब तक पलकों के कोरों पर रूके अश्रुकण झर-झर कर उनके पैरों को भिंगोने लगे। हवेली के फाटक के पार छोटके चाचा बुद्दर के तांगे पर फिर से रामदुलारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। गाड़ी के समय का हवाला दिया तभी जा कर "बेटी की विदाई" जैसी ही इस मर्मस्पर्शी घड़ी का शीघ्र समापन हुआ।
पटना कॉलेज का विशाल ऑडिटोरियम छात्रों के शैलाव से गुलजार था। हो भी क्यूँ न.... साल में एक ही बार तो इस ऑडिटोरियम की किस्मत खुलती है। बड़े-बड़े चोंगे वाले लाउड-स्पीकर और पुराने कनात राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की आर्थिक प्रबंधन का पोल खोल रहे हैं। यत्र-तत्र कार्ड-बोर्ड पर "पटना कॉलेज में आपका अभिनन्दन" लिखा हुआ मिल जाता है। प्रेक्षागार के मध्य में बने मंच के ऊपर रंगीन बैनर पर लिखा हुआ है, "फ्रेशेर्स वीक"। आज महाविद्यालय के कला संकाय में नवागंतुकों का स्वागत किया जा रहा है। द्वितीय वर्ष की छात्राओं द्वारा सामूहिक सरस्वती वंदना के बाद कुछ भी स्पष्ट सुनाई नहीं देता है किन्तु कानों में मिश्रित आवाजों का एक तूफ़ान कौंध रहा है। तभी एक मधुर स्वर लहरी गूंजती है, "नमस्कार....!" मानो तानसेन ने सितार के तार छेड़ दिए हों। सारी आँखें सम्मोहित सी मंच पर मचलने लगीं। धवल चन्द्र की भांति गोरे चेहरे पर बादलों सी झुकी काली घनी केश-राशि, मझोला कद, शरीर से भरी, पर मोटी नहीं, कुल मिलाकर आकर्षक व्यक्तित्व। उसकी बोली में सुस्पष्टता के साथ मिठास थी और बड़ी-बड़ी झील सी आँखों में निर्मल जल सी मासूमियत। यह थी रुचिरा... रुचिरा पाण्डे। स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष की छात्रा। रुचिरा महाविद्यालय में आये नए छात्र-छात्राओं के परिचय समारोह का संचालन कर रही थी। समारोह के अवसान के समीप रुचिरा के इशारे पर गुलाबी सूट में एक कोमलांगी कृषवदना मंच पर आयी। अंग-भंगिमा में एक निश्छल कोमलता, सकुचाई सी आवाज़ किन्तु मुख-मंडल पर तेजमय गाम्भीर्य। 'मेरा नाम रामदुलारी है। तिरहुत के राघोपुर गाँव से आयी हूँ। हिंदी स्नातक में दाखिला लिया है। स्नातकोत्तर और पीएच.डी. करना चाहती हूँ।' आम तौर पर आज की संक्षिप्त परिचय की प्रथा को तोड़ते हुए रुचिरा ने ही रामदुलारी को कुछ सुनाने का आग्रह किया था। फिर रामदुलारी ने महादेवी वर्मा की "मैं नीर भरी दुःख की बदली...." को अपने मीठे सुरों में ढाल कर पूरी सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया था। रुचिरा तो प्रस्सन्न-मन देखती भर रह गयी थी रामदुलारी को। मंच के नीचे दोनों मे कुछ गुप-चुप बातें भी हुई थी, जिसे आप मंचीय परिचय का विस्तार कह सकते हैं।
समारोह के उपरान्त छात्र-छात्राओं की भीड़ गुटों मे बँट कर अलग-अलग दिशा में चल पड़ीं। रामदुलारी भी अपने सर को दुपट्टे से ढंके आषाढ़ की दोपहरी से बचने का प्रयास करती हुई तेज़-तेज़ कदमों से अकेली ही चली जा रही थी। तभी एक भद्दी आवाज़ "गाइज! देख उधर !! एक देहाती कबूतर आयी है।" ने उसकी गति और बढ़ा दी। सामने कतारबद्ध लगे अशोक पेड़ के नीचे बैठे कुछ आवारानुमे लड़के सिगरेट की कश लगा रहे थे। रामदुलारी जैसे ही उनके आगे से गुजरी, नीली जींस पर बॉडी-फिट काला टी-शर्ट पहने, काला चश्मा चढ़ाए लम्बी बालों वाला एक लड़का लगभग उसके रास्ते में टांग अड़ाता हुआ बोला, "ऐ छम्मकछल्लो... ! जरा धीरे चलो !! सिनिअर्स का जरा भी लिहाज नहीं है? किस जंगल से आयी है रे... ?" रामदुलारी के लिलार पर पसीने की बूंदे आ गयी... कलेजा धौंकनी की तरह चलने लगा। आँखों के सामने बाबा, बाबू, मैय्या सबके चेहरे उनकी कही बातों के साथ तैर गए। तभी चश्मे वाले के बगल मे खड़ा आधी बांह का कुरता वाले लड़के ने रामदुलारी के हाथों से उसकी डायरी और किताब छिनते हुए कुछ आपत्तिजनक आदेश दिया। अब तक आँख मे रोक रखे आंसू ढलक पड़े। उन्होंने अपना आदेश दुहराया। रामदुलारी अपनी सारी हिम्मत बटोर कर संयत स्वर में बोली, "माफ़ कीजिये! मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं आपका पूरा सम्मान करती हूँ। आप मुझे कोई और टास्क दीजिये।" रामदुलारी की बात ख़त्म होने से पहले ही पीछे खड़ा गंजे सिर वाला लड़का बोल पड़ा, "ऐ छोरी ! जरा नच के दिखा... !" इतना कहना था कि उसके सभी साथी ताली और मुंह से सिटी बजाने लगे। घिग्घी बंधी रामदुलारी की आँखों से आंसू बहे जा रहे थे। वह सिर झुकाए चमरे के चप्पल के अगले भाग से धरती का सीना कुरेद देना चाहती थी। तभी पीछे से एक हलकी सी परिचित आवाज़ आयी, "अरे, रामदुलारी ! तू यहाँ क्या कर रही है ?" रामदुलारी तो जैसे डूबते हुए तिनके का सहारा पा गयी। पीछे रुचिरा थी। वह सिर्फ इतना ही कह पायी, 'जी'। रुचिरा को देख कर वे बिगडैल लड़के चुप तो हो गए लेकिन अपनी जगह से टस-मस नहीं हुए। सबसे पुरानी और समझदार छात्रा के तौर पर रुचिरा की पहचान पूरे विश्वविद्यालय में थी। रुचिरा की लतार पर उनमे से एक थोड़ा भड़का भी। तभी रुचिरा को ढूंढ़ता हुआ समीर भी वहाँ आ पहुंचा। अरे, आप यहाँ हैं। मैं स्टैंड में आपका इंतज़ार कर रहा था।' समीर ने आते ही बोला। "हां समीर ! मैं उधर ही आ रही थी। समीर ये है, रामदुलारी। हिंदी स्नातक में नामांकन लिया है। नयी है। पहला दिन है कॉलेज में।" समीर ने हाय कहते हुए रामदुलारी की तरफ हाथ बढ़ा दिया। तब तक वे लड़के भी कट लेने में ही भलाई समझ रामदुलारी की किताबें वा डायरी वहीं सीमेंट के बने बेंच पर छोड़ कर आगे बढ़ गए। रुचिरा ने रामदुलारी के हाथ पकड़ते हुए कहा, चल रामदुलारी। हम तुझे तुम्हारे होस्टल तक छोड़ देते हैं।
रामदुलारी बिना कुछ कहे साथ तो चल पड़ीं। लेकिन एक अंतर्द्वंद चल रहा था, "आज तो रुचिरा और समीर संकटमोचन बने लेकिन अभी तो पांच वर्ष शेष हैं...।"
बाबा के लिए हृदय में अगाध श्रद्धा-भाव के लिए जब वह उनके सम्मुख आई तो अपने को रोक न पाई। उनके चरणकमल स्पर्श करते समय अब तक पलकों के कोरों पर रूके अश्रुकण झर-झर कर उनके पैरों को भिंगोने लगे। हवेली के फाटक के पार छोटके चाचा बुद्दर के तांगे पर फिर से रामदुलारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। गाड़ी के समय का हवाला दिया तभी जा कर "बेटी की विदाई" जैसी ही इस मर्मस्पर्शी घड़ी का शीघ्र समापन हुआ।
पटना कॉलेज का विशाल ऑडिटोरियम छात्रों के शैलाव से गुलजार था। हो भी क्यूँ न.... साल में एक ही बार तो इस ऑडिटोरियम की किस्मत खुलती है। बड़े-बड़े चोंगे वाले लाउड-स्पीकर और पुराने कनात राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की आर्थिक प्रबंधन का पोल खोल रहे हैं। यत्र-तत्र कार्ड-बोर्ड पर "पटना कॉलेज में आपका अभिनन्दन" लिखा हुआ मिल जाता है। प्रेक्षागार के मध्य में बने मंच के ऊपर रंगीन बैनर पर लिखा हुआ है, "फ्रेशेर्स वीक"। आज महाविद्यालय के कला संकाय में नवागंतुकों का स्वागत किया जा रहा है। द्वितीय वर्ष की छात्राओं द्वारा सामूहिक सरस्वती वंदना के बाद कुछ भी स्पष्ट सुनाई नहीं देता है किन्तु कानों में मिश्रित आवाजों का एक तूफ़ान कौंध रहा है। तभी एक मधुर स्वर लहरी गूंजती है, "नमस्कार....!" मानो तानसेन ने सितार के तार छेड़ दिए हों। सारी आँखें सम्मोहित सी मंच पर मचलने लगीं। धवल चन्द्र की भांति गोरे चेहरे पर बादलों सी झुकी काली घनी केश-राशि, मझोला कद, शरीर से भरी, पर मोटी नहीं, कुल मिलाकर आकर्षक व्यक्तित्व। उसकी बोली में सुस्पष्टता के साथ मिठास थी और बड़ी-बड़ी झील सी आँखों में निर्मल जल सी मासूमियत। यह थी रुचिरा... रुचिरा पाण्डे। स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष की छात्रा। रुचिरा महाविद्यालय में आये नए छात्र-छात्राओं के परिचय समारोह का संचालन कर रही थी। समारोह के अवसान के समीप रुचिरा के इशारे पर गुलाबी सूट में एक कोमलांगी कृषवदना मंच पर आयी। अंग-भंगिमा में एक निश्छल कोमलता, सकुचाई सी आवाज़ किन्तु मुख-मंडल पर तेजमय गाम्भीर्य। 'मेरा नाम रामदुलारी है। तिरहुत के राघोपुर गाँव से आयी हूँ। हिंदी स्नातक में दाखिला लिया है। स्नातकोत्तर और पीएच.डी. करना चाहती हूँ।' आम तौर पर आज की संक्षिप्त परिचय की प्रथा को तोड़ते हुए रुचिरा ने ही रामदुलारी को कुछ सुनाने का आग्रह किया था। फिर रामदुलारी ने महादेवी वर्मा की "मैं नीर भरी दुःख की बदली...." को अपने मीठे सुरों में ढाल कर पूरी सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया था। रुचिरा तो प्रस्सन्न-मन देखती भर रह गयी थी रामदुलारी को। मंच के नीचे दोनों मे कुछ गुप-चुप बातें भी हुई थी, जिसे आप मंचीय परिचय का विस्तार कह सकते हैं।
समारोह के उपरान्त छात्र-छात्राओं की भीड़ गुटों मे बँट कर अलग-अलग दिशा में चल पड़ीं। रामदुलारी भी अपने सर को दुपट्टे से ढंके आषाढ़ की दोपहरी से बचने का प्रयास करती हुई तेज़-तेज़ कदमों से अकेली ही चली जा रही थी। तभी एक भद्दी आवाज़ "गाइज! देख उधर !! एक देहाती कबूतर आयी है।" ने उसकी गति और बढ़ा दी। सामने कतारबद्ध लगे अशोक पेड़ के नीचे बैठे कुछ आवारानुमे लड़के सिगरेट की कश लगा रहे थे। रामदुलारी जैसे ही उनके आगे से गुजरी, नीली जींस पर बॉडी-फिट काला टी-शर्ट पहने, काला चश्मा चढ़ाए लम्बी बालों वाला एक लड़का लगभग उसके रास्ते में टांग अड़ाता हुआ बोला, "ऐ छम्मकछल्लो... ! जरा धीरे चलो !! सिनिअर्स का जरा भी लिहाज नहीं है? किस जंगल से आयी है रे... ?" रामदुलारी के लिलार पर पसीने की बूंदे आ गयी... कलेजा धौंकनी की तरह चलने लगा। आँखों के सामने बाबा, बाबू, मैय्या सबके चेहरे उनकी कही बातों के साथ तैर गए। तभी चश्मे वाले के बगल मे खड़ा आधी बांह का कुरता वाले लड़के ने रामदुलारी के हाथों से उसकी डायरी और किताब छिनते हुए कुछ आपत्तिजनक आदेश दिया। अब तक आँख मे रोक रखे आंसू ढलक पड़े। उन्होंने अपना आदेश दुहराया। रामदुलारी अपनी सारी हिम्मत बटोर कर संयत स्वर में बोली, "माफ़ कीजिये! मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं आपका पूरा सम्मान करती हूँ। आप मुझे कोई और टास्क दीजिये।" रामदुलारी की बात ख़त्म होने से पहले ही पीछे खड़ा गंजे सिर वाला लड़का बोल पड़ा, "ऐ छोरी ! जरा नच के दिखा... !" इतना कहना था कि उसके सभी साथी ताली और मुंह से सिटी बजाने लगे। घिग्घी बंधी रामदुलारी की आँखों से आंसू बहे जा रहे थे। वह सिर झुकाए चमरे के चप्पल के अगले भाग से धरती का सीना कुरेद देना चाहती थी। तभी पीछे से एक हलकी सी परिचित आवाज़ आयी, "अरे, रामदुलारी ! तू यहाँ क्या कर रही है ?" रामदुलारी तो जैसे डूबते हुए तिनके का सहारा पा गयी। पीछे रुचिरा थी। वह सिर्फ इतना ही कह पायी, 'जी'। रुचिरा को देख कर वे बिगडैल लड़के चुप तो हो गए लेकिन अपनी जगह से टस-मस नहीं हुए। सबसे पुरानी और समझदार छात्रा के तौर पर रुचिरा की पहचान पूरे विश्वविद्यालय में थी। रुचिरा की लतार पर उनमे से एक थोड़ा भड़का भी। तभी रुचिरा को ढूंढ़ता हुआ समीर भी वहाँ आ पहुंचा। अरे, आप यहाँ हैं। मैं स्टैंड में आपका इंतज़ार कर रहा था।' समीर ने आते ही बोला। "हां समीर ! मैं उधर ही आ रही थी। समीर ये है, रामदुलारी। हिंदी स्नातक में नामांकन लिया है। नयी है। पहला दिन है कॉलेज में।" समीर ने हाय कहते हुए रामदुलारी की तरफ हाथ बढ़ा दिया। तब तक वे लड़के भी कट लेने में ही भलाई समझ रामदुलारी की किताबें वा डायरी वहीं सीमेंट के बने बेंच पर छोड़ कर आगे बढ़ गए। रुचिरा ने रामदुलारी के हाथ पकड़ते हुए कहा, चल रामदुलारी। हम तुझे तुम्हारे होस्टल तक छोड़ देते हैं।
रामदुलारी बिना कुछ कहे साथ तो चल पड़ीं। लेकिन एक अंतर्द्वंद चल रहा था, "आज तो रुचिरा और समीर संकटमोचन बने लेकिन अभी तो पांच वर्ष शेष हैं...।"
क्या होगा रामदुलारी का ? एक तरफ उसका संकल्प और एक तरफ संस्कार। एक तरफ संकट और एक तरफ सपने। पढ़िए अगले हफ्ते इसी ब्लॉग पर।
त्याग पत्र के पड़ाव |
भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥ |
राम दुलारी जेसी कितनी ही लडकिया बेचारी इन आवारा लड्को से बचती होगी, लेकिन कोई ना कोई रास्ता दिखाने वाला मिल ही जाता है, देखे आगे क्या होता है....
जवाब देंहटाएंकहानी क़ाबिले-तारीफ़ है। आगे की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंAakhir ramdulari padhne aa hee gayee !
जवाब देंहटाएंGood! story seems to take a good turn !! Thanks !!!
जवाब देंहटाएंJo hota hai college me wahi is kahani me b ho raha hai...waise to aj apklogo ki is kahani ko mai pahli bar padh rahi hun..fir b bahot acha laga ye kahani ..aage ka intzar...
जवाब देंहटाएंYe Kahani pichle kai hafto se chali aa rai ..aur ab ye ek upanyas ka roop le rai hai..halanki aplogo ki is kahani me kuch naya nai hai ..aisa lagta hai padhte hue jaise koi movie ya tv serial dekh rai hun.. aplogo se nivedan hai ki isse movie he rahne dijiyega..tv serial na bane...kyunki movie banne me tme jo b lage 3 ghante me khatm to ho jati hai..bt tv serial chalte he rahta hai aur bad me story boring ho jati hai...Dhanyawad
जवाब देंहटाएंRamdulari ka hosla dekh kar lag raha hai wo kuch acha he karegi, achi kahani !!!! Thanks
जवाब देंहटाएंGhar se bahar rahna aur padhna, kafi muskil hota hai ..hope ramdulari acha he karegi..
जवाब देंहटाएंAchi kahani ..aage aur bhi interesting honi chaiye
जवाब देंहटाएंKabile tarif hai apki ye ramdulari aur sath me story bhi.
जवाब देंहटाएंHona kya hai Ramdulari ka wahi hoga jo wo chahegi..kyunki jiske irade majbut ho unhe unki manjil mil he jati hai..achi kahani ..Thanks
जवाब देंहटाएंYour dis story motivate everyone.
जवाब देंहटाएंNice Story...
जवाब देंहटाएंKya khub kahani hai, acha laga apke is blog par aakar..aage ki pratiksha rahegi.
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