शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

हम तो रहमदिल हैं !

-- करण समस्तीपुरी

धुंध काली रात,
खनकते फ़ोन,
कंपकपाते हाथ,
हलक में फंसी जुबाँ,
संज्ञाशून्य !! अब कहाँ-क्या हुआ ??
क्या फिर शुरू हुई,
कोई बारूदी कहानी ?
निगल गयी,
इंसानियत और यकीन को,
हैवानियत ??
रह गयी सिसकती निशानी,
फिर किसी अपनों की ?
या वर्षों बाद ही सही,
हो गया है इन्साफ !!
हम तो रहमदिल हैं,
उदार !
कर दिया है,
भेड़िये को माफ़ !!
छंट रही है धुंध,
जा रही है रात !
किन्तु,
मुंह क्यूँ छुपा रहा प्रभात ?
धुंध काली रात ..... !!

30 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो रहमदिल हैं,
    उदार !
    कर दिया है,
    भेरिये को माफ़ !!
    लेकिन अब सख्तदिल हो कर भेड़िये को मारने की जरूरत है

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  2. विचारोत्तेजक!बिल्कुल सही कहा है अजय जी ने। शांति-अमन-चैन भंग करने वाले भेड़िये को बख्शा न जाए। उसे सख्तदिल हो कर मारने की जरूरत है

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. Karan ji..Apki ye kavita hamAre desh par aatangkwad kE khof ko saf saf darsa rai hai...aur sath me ye b ki hamare desh par kitni b muskil kyun na aa jaye hum unka samna dat kar to karte rahenge lakn unhe humesa ke liye khatm ni kar sakenge...kyunki HUM RAHAMDIL JO HAI............LAKN AISA HONA NI CHAIYE..

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  5. Aisa he hota hai jab der rat phn ki ghanti bajti hai, phn uthate hue hath kanpte hai jaise kuch anhoni to ni ho gai, achi aur sachi kavita..thank u

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  6. Hamare desh ka kadwa sach, acha laga apki kavita padhkar.

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  7. Hume kuch na kuch to karna he hoga..aisa aatankwadiyo ko mafi dene se kabi aatangwad khatm ni hoga.

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  8. यथार्थ को चित्रित करती रचना। बहुत संदर।

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  9. Is kavita ke bare me ek he line kahna chahunga...
    Sachi ghatnao par adharit hai ye kavita.

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  10. Ajab desh ki Gajab Kahani..good peom ..Keep it up

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  11. छंट रही है धुंध,
    जा रही है रात !
    किन्तु,
    मुंह क्यूँ छुपा रहा प्रभात ?
    धुंध काली रात ..... !!
    kali raat bhi chhategi. bahut achchhi kavita.

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  12. Saal gaya par malaal nahi..... bhediye ko ab maarna hi padega !

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  13. poem shows the anger we still have..... would the politicians have understood it !!!

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  14. कविता वर्तमान परिदृश्य का सही चित्रण है. भय... अविश्वास.... अतिशय उदारता.... शायद हम भूल गए हैं, "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल हो... !"

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  15. कविता आज हर भारतवासी के दिल में छुपे एक टीस, एक मलाल, एक दर्द, एक भय, एक अविश्वास को अभिव्यक्त करती है !

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  16. हमने तो कर दिया भेडिये को माफ़ ...!!
    और कोई विकल्प है ..??

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  17. ho gai hai peer parvat ki tarah,
    ias himalay se bhi to koi ganga nikalni chahiye!
    jis tarah... bhi ho bhaiyo yah mausam badalana chahihe.

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