-- करण समस्तीपुरी
धुंध काली रात,
खनकते फ़ोन,
कंपकपाते हाथ,
हलक में फंसी जुबाँ,
संज्ञाशून्य !! अब कहाँ-क्या हुआ ??
क्या फिर शुरू हुई,
कोई बारूदी कहानी ?
निगल गयी,
इंसानियत और यकीन को,
हैवानियत ??
रह गयी सिसकती निशानी,
फिर किसी अपनों की ?
या वर्षों बाद ही सही,
हो गया है इन्साफ !!
हम तो रहमदिल हैं,
उदार !
कर दिया है,
भेड़िये को माफ़ !!
छंट रही है धुंध,
जा रही है रात !
किन्तु,
मुंह क्यूँ छुपा रहा प्रभात ?
धुंध काली रात ..... !!
हम तो रहमदिल हैं,
जवाब देंहटाएंउदार !
कर दिया है,
भेरिये को माफ़ !!
लेकिन अब सख्तदिल हो कर भेड़िये को मारने की जरूरत है
विचारोत्तेजक!बिल्कुल सही कहा है अजय जी ने। शांति-अमन-चैन भंग करने वाले भेड़िये को बख्शा न जाए। उसे सख्तदिल हो कर मारने की जरूरत है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंSachai se avgat karati kavita...
जवाब देंहटाएंsahi nirnay,warna bhediyaa kaal ban jayega
जवाब देंहटाएंKaran ji..Apki ye kavita hamAre desh par aatangkwad kE khof ko saf saf darsa rai hai...aur sath me ye b ki hamare desh par kitni b muskil kyun na aa jaye hum unka samna dat kar to karte rahenge lakn unhe humesa ke liye khatm ni kar sakenge...kyunki HUM RAHAMDIL JO HAI............LAKN AISA HONA NI CHAIYE..
जवाब देंहटाएंMr Ajay Kumar ki baton se bilkul sehmat hun
जवाब देंहटाएंAisa he hota hai jab der rat phn ki ghanti bajti hai, phn uthate hue hath kanpte hai jaise kuch anhoni to ni ho gai, achi aur sachi kavita..thank u
जवाब देंहटाएंHamare desh ka kadwa sach, acha laga apki kavita padhkar.
जवाब देंहटाएंGood one
जवाब देंहटाएंHume kuch na kuch to karna he hoga..aisa aatankwadiyo ko mafi dene se kabi aatangwad khatm ni hoga.
जवाब देंहटाएंयथार्थ को चित्रित करती रचना। बहुत संदर।
जवाब देंहटाएंBahot he achi rahi is bar ki apki rachna.
जवाब देंहटाएंIs kavita ke bare me ek he line kahna chahunga...
जवाब देंहटाएंSachi ghatnao par adharit hai ye kavita.
बेहतरीन। बधाई।
जवाब देंहटाएंAjab desh ki Gajab Kahani..good peom ..Keep it up
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंbhut satik rachana. inhe to maar hi dena chahiye...!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंछंट रही है धुंध,
जवाब देंहटाएंजा रही है रात !
किन्तु,
मुंह क्यूँ छुपा रहा प्रभात ?
धुंध काली रात ..... !!
kali raat bhi chhategi. bahut achchhi kavita.
kadwa sach, acha laga apki kavita padhkar.
जवाब देंहटाएंSaal gaya par malaal nahi..... bhediye ko ab maarna hi padega !
जवाब देंहटाएंpoem shows the anger we still have..... would the politicians have understood it !!!
जवाब देंहटाएंek ojpurn kavita.
जवाब देंहटाएंकविता वर्तमान परिदृश्य का सही चित्रण है. भय... अविश्वास.... अतिशय उदारता.... शायद हम भूल गए हैं, "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल हो... !"
जवाब देंहटाएंaaj apkee kavita kuchh hat ke lagee !
जवाब देंहटाएंकविता आज हर भारतवासी के दिल में छुपे एक टीस, एक मलाल, एक दर्द, एक भय, एक अविश्वास को अभिव्यक्त करती है !
जवाब देंहटाएंआज के समय की सबसे सटीक अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
हमने तो कर दिया भेडिये को माफ़ ...!!
जवाब देंहटाएंऔर कोई विकल्प है ..??
ho gai hai peer parvat ki tarah,
जवाब देंहटाएंias himalay se bhi to koi ganga nikalni chahiye!
jis tarah... bhi ho bhaiyo yah mausam badalana chahihe.