-- करण समस्तीपुरी,
जय राम जी की हजूर ! अरे आज फिर बुध है। आप कहाँ खोये हुए हैं... ? देखिये हम अपने गाँव से सीधा चले आ रहे हैं आपको 'देसिल बयना' सुनाने। वैसे तो अब गाँव-जवार में भी पहिले वाला बात नहीं रहा। लेकिन ई बार नवका धान का मिठका चिउरा खा के आये हैं सो एकदम मुंह मिठाया हुआ है।
अरे धान से याद आया... ई बार तो इन्द्रे महराज धोखा दे दिए। बरसे ही नहीं मन से। खरीफ का तो हाल खराब होय गया साहिब! पहिले ई..... तोड़ के धान उपजता था कि लोग-बाग़ कहैं, "अगहन महीना तो चूहा-मूसा भी दू गो बीवी रखता है।" लेकिन ई बार तो पलटन बाबू के दालान पर भी आधे पुआल था। धान का फसले मार खा गया। पूरा गाँव मे सबहि किसान माथा पर हाथ रखे था लेकिन मंगरुआ के आँगन से चारे बजे भोर से झटा-झट धान झाड़े के ताल पर पूरा टोला थिड़क उठता था। का बताएं भैया! हमका तो खुदे बड़ी आश्चर्य लगा! जब से घुरण काका और काकी मरे, उका बेटा मंगरुआ.... उका तो पूरा गाँव निखट्टू समझे लगा।
घुरण काका थोड़ा बहुत खेती कर के छः महीने का जोगार लगा लेते थे। बांकी मजदूरी से चलता था। लेकिन उनके सरंग सिधारे ई मंगरुआ तो खेत-पथार घुर के भी नहीं देखिस... बस इधर-उधर बौख के, किसी का बेगारी कर के पेट भर ले अपना। अकेला पेट तो कुत्तो पाल लेता है, साहब! मंगरुआ का जिनगी वैसा ही समझ लीजिये। बरसो बीत गया... घर के छप्पर का बत्ती हाथी-दांत जैसा दुन्नु तरफ से निकल गया मगर ससुर एगो पुदिनो नहीं उगाया। उका दिन वैसे ही पानी जैसा बह रहा था।
उ त धन्य हो सुक्कन मामू ! बीते लगन में मंगरुआ का भी जोड़ा लगा दिए, चन्दनपट्टी की रूपवती से। जैसा नाम वैसा काम! रूपवती गुणवती भी निकली। बसाए लगी मंगरुआ का घर। बरसों से जहां चूल्हा नहीं जला, उका टूटा छप्पर से सांझ-सबेरे दोनों बखत धुंआ उठे लगा। दोनों जून सिद्ध अन्न पेट में और घर में सुन्दर लुगाई देख कर मंगरुआ को भी अपना कर्त्तव्य-बोध हुआ।
ई बार हार नहीं मानेगा, पट्ठा! पिल गया कुदाल ले के। सारे खेत का आर-मेढ़ ठीक किहिस। पानी का ठहराव किया। बिचरा गिराया। दिन-दुगुना रात चौगुना मेहनत किहिस लेकिन चनपट्टी वाली को घर से बाहर नहीं निकलने दिया। पिछला तीसों बरिस का दम इसी बार लगा दिया। अब इन्द्र भगवान रूठे तो का... सारा गड्ढा तालाब उपछ के पटवन किहिस... हार नहीं माना... बियाह में मिला रेडियो बंधक रख के डी.ए.पी आ यूरिया भी डाला खेत में। मुखिया जी के हाथ-गोर जोर के दमकल से पानी दिया... आ हा हा... ! भगवान उका मेहनत का फल भी दिए। चढ़ते अगहन उका दुआर पर धान के बोझा का पहाड़ खड़ा हो गया।
झरैय्या हुआ फेर धान का बड़का कुरी बना के ऊपर गोबर के महादेव बना कर ऊपर फूल लगा के खुदहि मंगरुआ डंडी पकर के रामे जी राम कर के धान तौल के चनपट्टी वाली के चंगेरा मे डाले लगा तो दुन्नु प्राणी का चेहरा ख़ुशी,गर्व और संतुष्टि से चमक उठा। तबहि आयी सुमित्रा बुआ ... मंगरुआ बोला, "पायं लागू बुआ !" चनपट्टी वाली चंगेरी छोड़ माथा पर साड़ी डाला और बुआ को पीढ़िया पर बिठा के चरण छूए। बुआ बीड़ी के धुंआ उगलते हुए आशीर्वाद दी। बोली मंगरुआ, तोहरी बहुरिया तो सच्छात लछमी है रे। ऐसा उपज तो घुरण भाई के जमाने में भी तोहरे घर नहीं आया था। ई बार देखो, बड़े-बड़े किसान धोती के खूट से आँख पोछ रहे हैं। तोहरे दुआर पर तो लछमी दमक रही है। साल भर पहिले कैसा दरिद्रा लोटता था, आज देखो कैसा खिलखिला रहा है घर-आँगन! साँची, बड़ी लच्छनमान औरत आयी है तोहरे घर। देखो पहिले फसल में तोका घर भर दिहिस।
बुआ तो चनपट्टी वाली के तारीफ़ में कसीदे पढी जा रही थी। बातो सही था लेकिन मंगरुआ का जी-तोड़ मेहनत का कोई चर्चे नहीं था। ई पर हमरे मुंह से निकल गया, "हाँ ! हाँ ! बुआ !! सोलह आने साँची कहती हो !!! आखिर काहे नहीं ? मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!" ई पर मंगरुआ डंडी पटक के लगा खिलखिलाए और चनपट्टी वाली भी साड़ी के पल्लू मुंह पर डाल के उत्तर बगल मुड़ गयी। बुआ बोले लगी, "मार मुंहझौंसा! ई तो कहावते बनाते रहता है!" लेकिन आप सोच के देखिये तो बात बिलकुल दुरुस्त कहे हैं। अब भाई, मेहनत किसी का और श्रेय किसी को मिले? मंगरुआ मेहनत न करता तो चनपट्टी वाली लक्ष्मी होती का ??? कहावत की जड़ तो आपको दे दिए हम। तो फिर याद रखिये, जब भी मेहनत किसी का और श्रेय किसी और को मिले तो यही कहावत कहियेगा, "मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!'
और सब तो ठीके है। तो अब भेंट होगा अगले बुध को !!! कहावत कैसी लगी, ई बता दीजियेगा टिपण्णी के माध्यम से ! तो अब चलते हैं ! राम राम !!
lajawaab guru !!!
जवाब देंहटाएंऊपर में कमेंट आया है लाजवाब गुरु। लाजवाब तो है ही, गुरु भी तुम्हें कहने का मन कर रहा है। देसिल बयना को समझाने के लिए कितना बढ़िया कहानी का ताना-बाना बुना गया है। लाजवाब गुरु।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति। आज के बाद अगले बुधवार का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंekdame sahi kaha hai bhaiyya !
जवाब देंहटाएंDesil Bayna me Aakar man khush ho jata hai.Aaj ka bayna Bhi achaa laga.( MOHSIN)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी, "मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!' कहावात भी बहुत अच्छी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुते बढिया कहानी अउर फकरा त सोन सन।
जवाब देंहटाएंप्रशस्त लेखनी से कहावत के सौंदर्य में चार चांद लग गए हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंManoj sir... kya kahoon main.. ek dard ko jan-jan tak pahunchane wali bhasha me likh dala aapne.. kisaan ki baat kkisaan ki bhasha me..
जवाब देंहटाएंsundar krati ke liye..badhai...
Jai Hind...
Yet another mind-blowing stuff.... fun reading !
जवाब देंहटाएंbahute achchha hai karan ji !
जवाब देंहटाएंkahawat, kahani to jo hai.barhiya hai... sabse majedar hai aapkee bhasha aur prastutikaran !
जवाब देंहटाएंवाह आपने बहुत ही सुंदर और बखूबी प्रस्तुत किया है! बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने ! बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंGood story
जवाब देंहटाएंAwesome... !
जवाब देंहटाएंकहावत तो वाकई जोरदार है। और आपकी प्रस्तुति भी सराहनीय।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
story padhne ko bahuth majhedhar hai.
जवाब देंहटाएं-thyagarajan
बहुते नीमन बतिया कहे हो भाई एकदम जो है हम तो उ का कहते कहते पहुँच गए !!!
जवाब देंहटाएंA fabulous story... must say !
जवाब देंहटाएंEk bar phir gaon-ghar me pahunch gaye aapki rachna ke saath.
जवाब देंहटाएंA humorous fiction !
जवाब देंहटाएंpretty nice way to tell proverbs !
जवाब देंहटाएंबहुते बढिया कहानी प्रस्तुति भी सराहनीय।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रोचक तरीके से आपने कहावत के बारे में जानकारी दी.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्!
बहुत अच्छा !
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