शनिवार, 21 नवंबर 2009

मैं कुंवारा क्यूँ हूँ ?

-- करण समस्तीपुरी
गाँव की भाभियाँ और कार्यालय के सहकर्मी की चुटीली चुहल तो अपनी हाज़िरजवाबी से हमेशा झेल लेता था। लेकिन उस दिन पार्टी में जाने के लिए, तैयार होते वक़्त आदमकद आईने के आगे खड़ा हुआ तो कनपट्टी के ऊपर खिजाब से रंगे बालों के अन्दर से झाँक रही सफ़ेद पट्टी उम्र की चुगली कर ही गयी। बालों में घूम रही कंघी हाथों में ठहर सी गयीऔर अंतर्मन में घुमरने लगे अनेक तीब्र परिवर्तनशील विचार। एक-एक सहकर्मी आँखों के आगे तैर गए। त्यागराजन... रोज लंच में लाये गए दोसे को सगर्व लहराते हुए अर्धांगिनी का आभार करता है। श्रीनिवासन के क्रीज लगे कपड़े कुशल दाम्पत्य जीवन के साक्षी प्रतीत होते हैं। और बत्रा... ? वो तो हम से कोई पांच साल छोटा ही होगा... पर हर महीने कितने शान से कमाऊ बीवी से मिलने वाले 'गिफ्ट' पर इतराता है। मोहंती को ही लीजिये, कमबख्त जब-तब मिसेज मोहंती की अस्वस्थ्यता का बहाना बना कर ऑफिस से कट लेता है! लेकिन मेरे पास तो न कोई ख़ुशी है न कोई वजह न कोई
बहाना ... ! देर तक कार्यालय में रुकना है, तो करण। ऑफिस जल्दी आना है, तो करण। क्लाइंट से 'डील' करने शहर से बाहर जाना है, करण से अधिक विश्वस्त, आश्वस्त और सुस्वस्थ तो कोई हो ही नहीं सकता! यंग है, इंटेलिजेंट है और अकेला भी तो है... ! कभी-कभी दिल को बहलाने के लिए, सोच लेता था कि 'भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं'। पर अब तो यकीन हो चला कि भगवान के घर भी अब अंधेर ही है। हृदय में गहन गवेषणा चल रही थी। आखिर मैं अभी तक कुंवारा क्यूँ हूँ ? बहुत उठा-पटक के बाद जो निष्कर्ष मिला उस पर आप भी हंस पड़ेंगे। अब शादी नहीं होगी तो कुंवारा ही रहूँगा न... हा हा हा ! लेकिन फिर सोचा मेरी शादी क्यूँ नहीं होती? फिर याद आया... मैं ठहरा भैया बिहारी। बिहार में तो शादी होती ही नहीं। लोग 'सादी' जिन्दगी ही बिता लेते हैं। अब सवाल यह था कि बिहार मे शादी क्यूँ नहीं होती? बात सीधी है... शादी होगी कैसे... वहाँ 'सड़क' जो नहीं है। लोग 'सरक-सरक' कर काम चला लेते हैं पर उस पर 'घोड़ा' नहीं दौड़ पाता... अब 'घोरा' पर शादी कैसे होगी ? इसलिए सादी रह जाती है। किसी तरह इन मुश्किलों को भुला भी दें तो 'श्री गणेश' नहीं हो पाता। जहां इतने सारे गनेश (गन बोले तो बन्दूक के स्वामी) भरे पड़े हैं, वहाँ 'श्री गणेश हो भी कैसे... ? लेकिन मैं भी हार मानने वाला नहीं। बेंगलूर की व्यवहारिक प्रयोगशाला में पिछले तीन साल से इन समस्याओं का समाधान खोज रहा हूँ, जैसे ही समाधान मिला आपको भी बताऊंगा। फिर मेरी तरह कैयेक कुंवारों के दिन बहुर जायेंगे !!!
यह आलेख मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। बिहार के एक गाँव से कोस्मो-पोलिटन बेंगलूर पहुँच कर पत्रकार जीवन में भाषाई उच्चारण की जिन समस्याओं को मैं ने झेला है आज फुरसत मे उन पर हास्य की चासनी लगा कर आपको परोस रहा हूँ। कुछ ज्यादा हो गया हो तो माफ़ कीजिएगा लेकिन टिपण्णी के माध्यम से बताइयेगा जरूर। धन्यवाद !!!

19 टिप्‍पणियां:

  1. "i feel sorry 4 u mr.samastipuri don't worry."sarkar badal gai hai sadke bhi ban rahin hai bas ghoda aane dijiye shaadi bhi ho jaaegi.

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  2. अरे राखी ढुढ रही थी पिछले दिनो एक बकरा, उस समय आप कहा थे, अजी यह सडक भी बन जायेगी कागजो मे, लालू आज कल खाली बेठा है पकड लो उस के पांव वो बनवा देगा हेमा के गालो की तरह मुलायम मुलायम सडक....... भईया अब जल्दी से शादी के लड्डू भेज दिजियो

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  3. साफ-सुथरा व्यंग्य । आज की आपकी चाशनी मीठी रही ।

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  4. बहुत ही सुंदर रूप में रचना प्रस्तुत की गई है। शुभकामनाएं..

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  5. आप ने जिस लहजे में ये रचना प्रस्तुत की वह लाजवाब रही ।

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  6. भाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग, लेखन में व्यंग्य के तत्वों की मौजूदगी से कुंवारेपन के तेवर और मुखर हो गए हैं।

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  7. मनोज सर, शब्दों के तत्सम का बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया आपने.. सीखना होगा आपसे...
    जय हिंद...

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  8. पढ़कर मजा आ गया । बहुत बढ़िया ।

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  9. अरे बहुते बढियां लिखे हैं भाई...
    लेकिन एक ठो बात तो भूलिए गए न आप...!!
    अरे सादी के लिए लरकी भी तो चाहि...
    अब लरकी तो है नहीं तो सादी कैसे होगी.....कह दीजिये तो....
    हा हा हा हा

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  10. ई पिराबलम प्रयोगशाला में नाही , साला के घर में हल होता है । बुझाया की नाहीं

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  11. अरे हमारे साथ तो उल्टा हुआ जी ,,,..इंटर के रिजल्ट से पहले ही पहला रिश्ता आ गया ....जो मान गए होते तो बच्चे के साथ ही नौकरी का फ़ार्म भर रहे होते....बांकी घोरा, सरक का समस्या तो हईए है ..

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  12. शादी को सादी से अच्छे से जोड़ा आपने..लोग तो कहते हैं कि शादी के बाद जिंदगी सादी रह जाती है..रंग बह जाते हैं बारिश मे..
    प्रयोगशाला से जो भी रिजल्ट मिले हमसे भी शेयर करें..हमारा भी भला हो जाये शायद..;-)
    गणेश से नही मगर गनेश से डरना जरूरी लगा अब..

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  13. 'भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं'। सब ठीके रहेगा।

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  14. हास्य का अच्छा सृजन हुआ है।

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  15. Aapki yeh rachna mujhe govinda ki movie ki us song ki yaad dila deti hain jismein govinda kehta hai "Laal Chunariya waali gori ghar mere v laao,main kuwanra kab tak baithun band mera bajwao,arrey jaise v chalta hai chakkar chalao, meri shaadi karwao meri chakkar chalwao...."
    Shayad kuch aisa hi haal aapka v lag raha hai...Bahut achii lagi aapki yeh rachna aasha hai jaldi hi aap v unmarried se married kehlaane lagein aur yeh व्यवहारिक प्रयोगशाला koi kaam aa jaye..

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  16. बहुत सुंदर।
    पर लड़्ड़ू का दूसरा हिस्सा भी तो सुना होगा। :)

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  17. आपकी रचना के आईने में देख रहा हूँ काम के बोझ तले सहमा आपका कुंवारापन. कारण जो भी रहा हो ऑफिस में बॉस तो आपके काम से भले ही खुश हों लेकिन पाठक आपकी व्यथा कथा पढ़कर दुखी जरुर है...........?!

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  18. Karan g ap ab tak kuwaren kyun ho ye hume to ni pata..bt aj hume ye pata chal gaya ki bihariyo ki shadi inni late kyun hoti hai..kyunki sadi ko shadi kahne aur smajhne me he wo der kar dete hai...aur jis tarah se apne ye apne ye vyangyatmak rachna likha gai ye kafi sarahniye hai..aur is rachna ko padhkar aisa lag raha hai ki apne jo b likha hai dil aur dard dono se likha hai...

    I wish.. ki ap jald ek nai rachna likho aur aur uska sirsak ho MAI AB KUWARA NAI HUN..

    Thanks

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