गुरुवार, 5 नवंबर 2009

चौपाल : ज्ञान बड़ा या अनुभव

नमस्कार मित्रों !
आज फिर चौपाल सज गयी है और आज के चौपाल में हम मिलवायेंगे आपको कुछ नए चेहरों से। लेकिन सबसे पहले बता दें आपको आज के चौपाल का विषय। दोस्तों ! पिछले कुछेक हफ्ते से हमारा चौपाल हिन्दी के इर्द-गिर्द ही मंडरा रहा था। आज विषय परिवर्तन करते हुए हम आपसे बात करेंगे, 'ज्ञान और अनुभव' की। जीवन में जितनी आवश्यकता ज्ञान की है उससे कहीं से भी कम अनुभव भी नही है। 'ज्ञान बड़ा या अनुभव' ? हालांकि विषय तो ऐसा है कि बहस अनिर्णीत ही समाप्त होने की सम्भावना बलवती होती है। फिर भी हमारे सुधि सदस्यों ने इस महत्वपूर्ण विषय पर ज्ञान का भरपूर परिचय देते हुए अपने अनुभव प्रस्तुत किया है ! आईये अब चौपाल की कार्रवाई शुरू करें !


ज्ञान सोना अनुभव कुंदन
-- मनोज कुमार
अनुभव सोने के समान होता है। सोना आग में तप-तप कर और खड़ा होता जाता है। उसी तरह अनुभव दिन-रात की मेहनत, लगन और तप से प्राप्त किया जाता है। अनुभव किताबों में पढ़कर नहीं पाया जाता। ज्ञान किताबों से अर्जित किया जा सकता है। क्या हम उनुभव बाज़ार से ख़रीद सकते हैं। क्या इसका हम निर्माण कर सकते हैं। नहीं न। यह तो उस बैंक बैलेंस की तरह है जो हमारे हर प्रयास के साथ दुगुनी होती जाती है। हां परीक्षा में सफलता प्राप्ति के लिए ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है, पर जीवन में कई ऐसे इम्तिहान हमें देने पड़ते हैं जहां किताबी ज्ञान काम नहीं आता और अनुभव सफलता के द्वार पार करा देता है। इस आधार पर मैं कह सकता हूं कि जीवन के अच्छे-बुरे अनुभव ही हमारा शिक्षक और उचित मार्ग दर्शक होते हैं। वे ही किताबी ज्ञान से कहीं बेहतर और महत्वपूर्ण होते हैं। ज्ञान हमें योग्य बनाते हैं, पर हमारी योग्यता में निखार अनुभव की कसौटी पर तप कर ही आते हैं।


अनुभवहीन ज्ञान कूड़े के समान
-- रंजना सिंह
यह शीर्षक देख बचपन में पढी उस कथा का स्मरण हो आया जो संभवतः
पंचतंत्र में पढी थी...संक्षेप में कथा यह थी कि एक गुरुकुल से चार शिष्य शिक्षा समाप्ति के बाद अपने ज्ञान और विद्या रुपी धन के साथ समाज के बीच चले। उनके संग आश्रम में रह रहा भृत्य भी हो लिया, जिसने कि विधिवत कोई विद्या तो नहीं पायी थी,परन्तु दुनियादारी का उसे पूरा ज्ञान था। मार्ग में घने जंगल में उन शिष्यों को एक मृत पशु की अस्थियाँ मिली और शिष्यों ने अपनी विद्या को आजमाने की ठान, उस पशु को पुनर्जीवित करने का निश्चय किया। अस्थियों को देख वह भृत्य समझ गया कि यह किसी हिंसक पशु की अस्थियाँ हैं। अतः उसने उन्हें यथेष्ट सावधान किया। परन्तु, अपने ज्ञान की मद में चूर शिष्यों ने उसे ही फटकार दिया।

चारों में से एक शिष्य ने अस्थियों को एकत्रित कर उसे यथोचित क्रम से सजा दिया।दूसरे ने अपने विद्या के प्रबल प्रताप से उसमे मज्जा आरोपित कर दिया,तीसरे ने उस के शरीर मे रक्त प्रवाहित करा दिया और चौथा जैसे ही उसमे प्राण प्रतिष्ठित करने को तत्पर हुआ, भृत्य ने उन्हें पुनः सचेत किया और अपने भर उन्हें समझाने का पूरा प्रयास किया। जब किसी भांति वे नहीं माने तो उसने उन चारों से दो घडी का समय माँगा ,जब तक कि वह निकटस्थ वृक्ष की ऊंची शाख पर न चढ़ जाए....
और फिर जैसे ही चौथे ने उस पशु में प्राण फूंके,जीवित हो वह उन चारों को ही खा गया...और वह जो अज्ञानी भृत्य वृक्ष की शाख पर बैठा था,अपने दूरंदेशी और अनुभव के कारण जीवित बच गया...
वस्तुतः कोरा ज्ञान अनुभवहीनता की अवस्था में कूड़े के सामान ही मूल्यहीन हुआ करता है...लेकिन अनुभवी यदि ज्ञानी भी हो तो सोने में सुहागा वाली बात हो जाती है...ज्ञान किसी भी वस्तु या तथ्य से हमें परिचित कराती है और अनुभव हमें उस ज्ञान का प्रयोग करने का विवेक देती है॥जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य ने तकनीक का विस्तार करते हुए न जाने कितने अविष्कार किये,चाहे वह तारक हो या मारक ,परन्तु उसका उपयोग क्यों कब और कैसे करना है,जबतक कल्याणकारी भाव के साथ विवेक और अनुभव का नियंत्रण न हो कोई भी अविष्कार कल्याणकारी नहीं रह सकता।


ज्ञान वृक्ष और अनुभव छाया
- कुमार आशीष
ज्ञान वृक्ष है तो अनुभव उसकी छाया है। अब प्रश्‍न उठता है कि वृक्ष बड़ाहै या
उसकी छाया॥ तो उसकी छाया ही बड़ी होती है क्‍योंकि वह स्‍वयंअसुरक्षा का सामना करते हुए हमें सुरक्षा प्रदान करती है। ज्ञान अहंकारको जन्‍म दे सकता है॥ किन्‍तु अनुभव सदैव विनम्र होता है। ज्ञान जीवन के गहरे पर्तों में छुपा हुआ मोती है, अनुभव, जिसकी पलकें खोलता है। विशुद्धज्ञान में अहंकार को चीरने की क्षमता है किन्‍तु एक नये मनुष्‍य के रूपमें परिपक्‍व होने हेतु अनुभव की प्रक्रिया से गुजरना होता है, और फिर उसअनुभव की ही क्षमता है जो ज्ञान को बीज-रूप अपने परिवेश में बिखेर सके।


व्यवहारिक ज्ञान का नाम ही अनुभव
-- करण समस्तीपुरी
बड़ा ही द्वंद्व कारक शीर्षक है। 'गुरु गोविन्द दोउ खड़े... का के लागू पायं' ? अस्तु ! पलांतर के लिए ही सही, प्राथमिकता तो देनी ही पड़ेगी। शास्त्रों मे कहा गया है, "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम ? लोचानाभ्याम विहीनस्य दर्पणं किम करिष्यति ?" अर्थात जिसके पास अपना ज्ञान नहीं है उसे भला शास्त्र-पुराण क्या सिखा सकता है और जिसकी आँखें नहीं हैं उसे दर्पण भला क्या दिखा सकता है.... ? ज्ञान की सत्ता से भला किसे इनकार हो सकता है ? परन्तु अनुभव भी अपनी जगह कमतर नहीं है। श्रम और लगन से हम ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं किन्तु अनुभव वह कंघी है जो जिन्दगी हमें तब देती है जब हम प्रायः गंजे हो जाते हैं। पुनश्च अनुभव से ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है लेकिन ज्ञान से अनुभव मिल ही जाएगा कहा नहीं जा सकता। ज्ञान हम सायास प्राप्त कर सकते हैं और यह 'अनाभ्यासे विषमे विद्या' भी हो सकती है। किन्तु अनुभव के साथ 'स्मरण और विस्मरण' का सिद्धांत लागु नहीं होता। अनुभव तो बुढापे की तरह है जो एक बार आ जाए तो जिन्दगी के साथ ही जाए। व्यापक अर्थों मे ज्ञान की परिधि बहुत विस्तृत है। ज्ञान के अनेक स्रोत, आयाम, शाखा और प्रशाखाएं हैं। अनुभव भी वस्तुतः ज्ञान का ही घटक है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यवहारिक ज्ञान का नाम ही अनुभव है. 'ज्यों तिल माही तेल है... ज्यों चक-मक मे आग' उसी तरह ज्ञान और अनुभव एक- दूसरे मे समाये हुए हैं। व्यक्तिगत रूप से अगर मुझ पर छोडा जाए तो मैं ज्ञान प्राप्ति की कोशिश करूँगा.... अनुभव तो स्वतः ही आ जाएगा !!

15 टिप्‍पणियां:

  1. Lekh bahut hi badiya hai.GYAN aur ANUBHAV ki baat kare to mera mat yeh hai ki dono me ANUBHAV hi sarwpari hai. Hum apni puri zindagi ANUBHAV ke sahare jeete hai.Jab koi musibat aati hai to hamara anubhav hi kaam aata hai.MURKH bhi Gyan hasil kar leta hai par anubhav gyan se nahi karm karne se prapt hota hai.Isliye "EXPERIENCE IS GREATER THAN KNOWLEDGE."

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  2. बहुत अच्छि प्रस्तुति है।लेख बढ़िया है।

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  3. aapka blog dekh kar dil khush ho gaya ! isee tarah achchhe-achchhe vishay par bahas jaari rakhen !

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  4. Good debate. But I feel that there is no subsctitute to experience. So anubhav hee bada malum padta hai.

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  5. विषय पर सारगर्भित चर्चा करवाने के लिए बहुत बहुत आभार....इसी बहाने विद्वजनों के विचार जानने का सुअवसर मिला,बड़ा ही अच्छा लगा...

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  6. pata nahi aapne aisa subject hi kyun chuna jiska koi conclusion hi nahi hai.... akhir gyan aur anubhav dono to jarooree hee hai. phir kaun kise bada aur kise chhota kahega ?

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  7. धन्यवाद सभी पाठको का ! रंजना जी, आपका विशेष आभार ! आपने न केवल पहले अनुरोध में ही हमारा आग्रह स्वीकार किया वरन अपने अमूल्य आलेख से चौपाल की शोभा भी बधाई और प्रतिक्रिया के द्वारा हमारा उत्साह-वर्धन भी किया. हम आपसे आगे भी सहृदय सहयोग की अपेक्षा रखते हैं. धन्यवाद !!

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  8. धन्यवाद स्वीटी जी,
    आपकी सलाह भी अनुकरणीय है.आगे से ख्याल रखने की कोशिश करूँगा!

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  9. jo padhkar gyan na paa sake vo bhi anubhavke adhar par jivanki naiya paar laga jaate hai ...vifalata ke nirantar anubhav ke baad galtiyan sudhar sakti hai aur tab jaakar ek naya avishkaar hota hai jo gyan kahlata hai ...bahut hi sundar charcha aur vishay raha ....

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  10. khoob sajaai है chopaal आपने ........ बहुत अच्छि प्रस्तुति .............बढ़िया है sab lekh .........

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  11. Gyan se Janakari badhti hai. Lekin Anubhaw se Confidence badhta hai.

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  12. बहुत ही सार्थक चर्चा है।

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