-- करण समस्तीपुरी
मित्रों ! आज बुधवार है और हम आपका स्वागत कर रहे हैं देसिल बयना के साथ। देसिल बयना में यूँ तो हमेशा आपको अपने गाँव घर ले जाते रहे हैं लेकिन सोचा इस बार आपको माया नगरी मुंबई की सैर करा दें।
बचपन में बाबा एक कहावत कहते थे, "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?" हम ने पूछा, "बाबा ! ई कौन बड़ी बात है ? बिल्ली पकड़ के आप लाइए घंटिया तो हमहि बाँध देंगे !!" तब बाबा हमें ई कहाबत का किस्सा कहिन। आप भी पहिले ई किस्सा सुन लीजिये फिर मुंबई चलेंगे।
हमरे गाँव मे एगो थे धनपत चौधरी ! उनका ई.... बड़ा सा खलिहान था। उ मे अनाज-पानी तो जो था सो था ही, दुनिया भर का चूहा भरा हुआ था। खलिहान में कटाई खुटाई के मौसम ही लोग-बाग़ जाते थे वरना वहाँ चूहाराज ही था। चूहे दिन-रात कबड्डी खेलते रहता था। धनपत बाबू एगो मोटगर बिल्लैया पोसे हुए थे। उ बिल्लैय्या दिन-दोपहर कभी भी चुप्पे से खलिहान मे घुसे और फटाक से एगो चुहबा का 'फास्ट-फ़ूड' कर के आ जाए।
एक दिन चूहा सब मीटिंग बैठाया। कहा कि यार हम लोग इतने चूहे हैं और एगो बिल्लैय्या... फिर भी कमबख्त जब चाहती है तब हम लोगों को अपना शिकार बना लेती है... कुछ तो उपाय करना पड़ेगा। मसला तो बहुत गंभीर था। सो बड़ी देर तक 'भेजा-फ्राई' के बाद बूढा चूहा बोला, "देखो बिल्ली से हम लोग लड़ तो नहीं सकते लेकिन बुद्धि लगा के बच सकते हैं। क्यूँ न बिल्ली के गले में एक घंटी बाँध दी जाए ?? इस तरह से जब बिल्ली इधर आयेगी घंटी की आवाज़ सुन कर हम लोग छुप जायेंगे।" अरे शाब्बाश....!!!! सारा चूहा ई बात पर उछल पड़ा। लगा कि जीवन वीमा ही हो गया। लेकिन चूहा का सरदार बोला, 'आईडिया तो सॉलिड है पर बिल्ली के गले मे घंटी बांधेगा कौन ?' बूढा चूहा तो सबसे पहले पीछे हट गया। जवान भी और बच्चा भी ! कौन पहिले जाए मौत के मुंह में ... ? कौन घंटी बांधे...? थे तो सब चूहे... ! सो रोज अपनी नियति पर मरते रहे। समझे... !
फिर बाबा ने हमें बुझाया कि निरंकुश अत्याचारी के खिलाफ जब किसी मे चुनौती लेने कि हिम्मत न हो तो कहते हैं, "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे?" लेकिन का बताएं.... समय के साथ ई कहावत और इसका मतलब सब धुंधला होता जा रहा था। लेकिन धन्य हो माया-नगरी ! एक बार फिर ई कहावत चल पड़ा।
हालांकि मुंबई मे तो चालीस साल से बिल्ली के गले मे घंटी बाँधने का पिलान हो रहा है... और दू-चार गो बिलैय्या तो पूरे देश में फैली हुई है.... लेकिन उहे बात... कि उनके गले में घंटी बांधे कौन....? उ दिन तो टीवी पर समाचार का फुटेज देख कर बाबा का किस्सा सोलहो आने याद आ गया हमें। अरे वही बड़का खलिहान था... भले नाम उ का विधान सभा रखा हुआ था.... वहाँ भी बहुत सारा चूहा भरा हुआ था.... कैय्येक किसिम का ! वहीं पर बिल्लैय्या भी कान खरा कर के घात लगा रही थी। जैसे ही एगो चूहा 'हिन्दी' में बोला...... बस हो गया 'हर-हर महादेव' ! फेर चूहा सब का मीटिंग बैठा.... लेकिन सवाल उहे कि "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे ?" खलिहान के मालिक धनपत बाबू तो अब रहे नहीं... लेकिन उका मोख्तार बिल्लैया को चार साल तक खलिहान मे घुसने पर रोक लगा दिया है...!!' चलो चूहा सब को कुछ तो राहत मिला.... लेकिन बिना घंटी बांधे कैसे काम चलेगा.... खलिहान मे नहीं तो खेत मे मरेगा.... आखिर चूहा बन कर बैठे रहने से कब तक निर्वाह होगा... रोज-रोज मरने से बचना है तो बिल्ली के गले मे घंटी तो बांधना ही पड़ेगा... !!"
दोस्तों ! आज यही था हमरा देसिल बयना "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे ?" है कोई बाँधने वाला तो टिपण्णी कर के बताइये !!!
दोस्तों ! आज यही था हमरा देसिल बयना "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे ?" है कोई बाँधने वाला तो टिपण्णी कर के बताइये !!!
जब पाप का घड़ा भरता है तो फूटता ही है। कोई-न-कोई तो इनके गले में नकेल डालेगा ही, पहल तो ब्लॉग के माध्यम से भी खूब हुई है। वैसे सामयिक प्रश्न के परिप्रेक्ष्य में ये देसिल बयना भी अच्छा रहा। बधाई।
जवाब देंहटाएंवैसे तो हम कहते हैं घंटियों बाँध कर का होगा...एतना होसियार हैं बजने नहीं देंगे....
जवाब देंहटाएंइनको तो घंटी में बाँध कर पीटना चाही......बस यही उपाय है..और कुछो नहीं...
हम अदा जी से बिल्कुल सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne.... chooha ban kar kab tak baithe rahenge.... ghanti bandhna to padega hee.
जवाब देंहटाएंKhoob likhe ho yaar! ghantiyo bandh jaayega... ! bas 2-4 go rahul raj aur aa jaaye...
जवाब देंहटाएंइ कहानी तो बढिया है पर इहाँ मामला कुछ ज्यादा गंभीर है । घंटी बांधने भर से काम नहीं न चलेगा ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! पर बात ये है कि घंटी तो बांधना ही पड़ेगा वरना चूहा बनकर ज़्यादा देर तक बैठना सम्भव तो नहीं !
जवाब देंहटाएंमैं मनाली घुमने गई थी वहां के सेब के पेड़ के फोटो हैं! वैसे कश्मीर में भी देखा है मैंने!
Karan ji
जवाब देंहटाएंe story to hum bachpan me padhe the lakn aj fero se padhkar maja aa gaya...hai to purana kahawat lakn apne ekdume naye tarika se likh diya hai...
auro jaha tak mayanagri ya humre desh ke bat hai billaya to bahute hai sawal wahi par hai ki unke gale me ghanti kon bandhe...kisi ko to bandhna he parega...fero kisi Mahatma Gandhi ko aana he hoga...
Ek purani aur suni sunai kahani ko naye tarike se hamare samne prastut karne ke liye apko bahute bahuuuuuuuuuuure badahi...
Dhnyabaad...
आपकी चिंता जायज है, पर अफसोस हमें तो कोई ऐसा हिम्मत वाला नहीं दिखता। हर आदमी अपना स्वार्थ पहले देखता है, बाकी चीजें बाद में।
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बहुत घातक है प्रेमचन्द्र का मंत्र।
हिन्दी ब्लॉगर्स अवार्ड-नॉमिनेशन खुला है।
ye essay tho achcha likha hai. keshav karan ji bahoth sharp comment karthe hain.
जवाब देंहटाएं- thyagarajan
ek vyang ke jariye aapne bahut hi karari baat kahi hai. Sachmuch Naam liye bina sab kuchh samjha diya aapne....... bahut khub....
जवाब देंहटाएंWah!kya khub likha hai.Aapki yeh kataksh karti rachna sach mein hum sab ko sochne par majbur karti hai.Mujhe nahi maalum ki aakhir billi k gale mein ghanti bandhega kaun....... par hum janta se bara koi nahi.Ab agar koi kuch kar sakta hai toh woh hum janta hi hain.Hamein awaz uthani hi chahiye.
जवाब देंहटाएंzabardast kissa deshi tarke ke saath .bharpur aanand mila aur is kahavat ko jis roop me prastut kiya wo chintaniye aur tarife kabil hai .ada ji ki tippani maza laga di .
जवाब देंहटाएंहै तो बहुत अच्छा पर एक सुझाव है - आप गांव वाले देसिल बयना पर चले आइए, करने दीजिए इन शहर वालों को चूहे-बिल्ली का खेल।
जवाब देंहटाएंसम-सामयिक विषय से देसिल बयना को जोड़ना अच्छा लगा।
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