शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

त्याग पत्र : भाग 18

पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का परिवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना ! फिर रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! रामदुलारी अब पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत है ! गाँव में रामदुलारी के खुले विचारों की कटु-चर्चा होती है ! रामदुलारी से प्रकाश की और रुचिरा से समीर की मित्रता प्रगाढ़ होती जाती है ! शिवरात्रि में रामदुलारी गाँव आना और घरवालों द्वरा शादी की बात अनसुनी करते हुए शहर को लौट जाना ! अब पढ़िए आगे !!

-- मनोज कुमार



प्रो. सहाय बाबू के निर्देशन में "हिंदी साहित्य की आधुनिक विधाओं में नारी विमर्श' पर रामदुलारी का शोध पूरा हो चुका था। विश्वविद्यालय से प्रस्तुति एवं मौखिक परिक्षा की तारीख मिलने का इन्तिज़ार था। रामदुलारी के कार्य पर सहाय बाबू को न केवल भरोसा बल्कि गर्व भी था। उन्होंने तो रामदुलारी के महान साहित्यकार होने की समपुर्व घोषणा भी कर रखा था। शोध-कार्य पूर्ण हो जाने पर पटना में रामदुलारी को खालीपन सालने लगा। विश्वविद्यालय आने-जाने, पुस्तकों का गहन अध्ययन, थीसिस लिखने आदि का सिलसिला थम सा चुका था। अब सिर्फ पत्र-पत्रिकाओं का पाठन और उनके लिए थोड़ा-बहुत लेखन भर रह गया था रामदुलारी की दिनचर्या में। गाहे-बगाने रुचिरा और समीर मिलने आ जाते थे। प्रकाश शहर से बाहर गया हुआ था। पटना आये वर्षों बीत चुके थे। पढाई-लिखाई में मशगूल होने के कारण वक़्त कैसे निकल गया, पता भी नहीं चला। इन वर्षों में शहर का परायापन और भीड़-भाड़ कब उसका अपना हो गया, शायद वह जान नहीं सकी थी। वर्षों बाद एक बार फिर शहर उसे उमस देने लगा था।


प्रकाश की अनुपस्थिति उसके खाली के अहसास को और बढ़ा रही थी। इस दौरान भी प्रकाश एकाध बार फ़ोन कर के रामदुलारी की सुध लेना नहीं भुला था किन्तु रामदुलारी अपनी तरफ से कभी हिम्मत नहीं जुटा पायी थी। प्रकाश कल ही पटना वापस आया था। बता रहा था कि म्यूजिक-डायरेक्टर मित्रघोष को उसकी आवाज़ और गायन शैली पसंद आ गयी है। ऑडिशन के लिए मुंबई बुअलाया है। अगर चयन हो गया तो मुंबई में ही रुकना पड़ेगा। कल से ही रामदुलारी के विचारों में जबर्दश्त संघर्ष चल रहा है। वह लगातार मौन है किन्तु दिमाग में कठिन कसरत चल रहा है। तरह-तरह के विचार उम्र रहे थे। किसी भी व्यक्ति की सबसे बड़ी खूबी चरित्र और अनुशासन है। चरित्र में सत्यप्रियता, बड़ों का आज्ञा का पालन करना, दया और प्रेमपूर्वक रहना सम्मिलित है। रामदुलारी में ये गुण कूट-कूट कर भरे हैं। हालाकि मन विद्रोह करना चाह रहा था। वह कह रहा था गायक का तेरे प्रति आकर्षण है। वह भी तेरी तरह पढ़ा लिखा है। तुझे उस-सा प्रियतम नहीं मिलेगा। उसके प्रेम का प्रतिदान दे।


.... .... नहीं-नहीं मैय्या को वचन दिया है।विवेक ने समझाया ... मैय्या को दिया वचन निभा। नहीं तो दुनियां थूकेगी तुझ पर। बाबू की प्रतिष्ठा भी नहीं बचेगी। बाबा तो प्रण ही त्याग देंगे।रामदुलारी का विद्रोह ठिठक गया। .... नहीं-नहीं मुझे इस माया-जाल से निकलना होगा। कल ही गांव जाकर हामी भर दूंगी।


गायक का कुछ दिनों के लिए पटना छोड़कर जाना और आकर फिर-से उसकी जाने की बातों ने रामदुलारी के सपनों के संसार में भयंकर भू-चाल खड़ा कर दिया। वह मन-ही-मन सोचने लगी ... जन्म काल से लेकर अबतक केवल अपार दुःख-दुर्भाग्य ही मेरे साथ रहा है। परलोक की तो मैं जानती नहीं। इस लोक में जो जीवन सारतत्व है, वह तो माता-पिता की ही देन है। उनसे अलग नहीं जा सकती मैं।

रामदुलारी ने राघोपुर जाने का मन बना लिया।

वह गांव आ गई। घर के सभी लोग रामदुलारी के कक्ष में एकत्रित हो गये। मैय्या, चाचा, बाबू, बाबा ...। कोई कुछ बोल नहीं रहा था। एक अपरिचित-सा मौन उनके बीच था। पर किसी ने तो बात छेड़नी ही थी। छोटके चाचा ने ही शुरु किया, कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई, की औपचारिकता से। उतनी ही आत्मीयता से रामदुलारी ने जवाब दिया .. बहुत अच्छी। …. “थोड़ी दुबली हो गई है” … वाला वाक्य भी दुहराया गया, चाची की तरफ से। और औपचारिकता वाला जवाब भी कि … “नहीं ठीक तो हूं। शिष्टाचार वाली औपचारिकता बाबू ने पूरी की, रास्ते में कहीं तकलीफ़ तो नहीं हुई।“ ……. नहीं, रामदुलारी ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया। मुख्य मुद्दे पर कोई आ ही नहीं रहा था। रामदुलारी की मां को लगा आहे माहे गोजा रोटी खाहे कब तक चलता रहेगा। उसने शुभस्यशीघ्रम् की नीति अपनाई। माधोपुर वालों ने जवाब मांगा है।फिर तो सब लोगों ने अपने-अपने ढ़ंग से विवाह की बात छेड़ दी। सब अपनी-अपनी भावनाएँ और विचार व्यक्त करने लगे, जो लगभग एक समान ही थे। रामदुलारी कुछ सुन रही थी, अधिकांश नहीं। बैठक के द्वारे वह टेक लगाए बैठी थी। अपने घुटनों पर मुट्ठी बांधे बांहें टेक कर उन पर अपनी ठोढ़ी टिकाकर सुन रही थी। त्याग वाली बात उसके मन में चल रही थी। मन में उठ रही उत्तेजना को उसने दबा लिया था। माता-पिता की झोली में अपना जीवन-वृत्त डाल देने की कामना उठने लगी। झट-से उठी। मैय्या के कांधे पर सिर रख कर बोली, जो तेरी इच्छा।

भावावेश में मैय्या रोने लगी। ... ...

रामदुलारी ने मन-ही-मन सोचा ... त्याग है यह या और कुछ।

वह स्वयं अपनी ही मानसिक यंत्रणाओं से अत्यधिक त्रस्त थी। पर उसे अपना वचन तो निभाना ही था, कर्तव्य भी। मन अपनी आशाओं और

यथार्थ के बीच तालमेल बिठाना चाह रहा था।


सपना या सम्मान.... किसकी होगी जीत ? क्या नारी सिर्फ त्याग करने के लिए बनी है ?? पढ़िए अगले हफ्ते ! इसी ब्लॉग पर !!

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5 टिप्‍पणियां:

  1. आज तक तो पुरुश की ही जीत हुयी है यथार्थ मे । शायद कहानी मे औरत की हो जाये। बहुत अच्छी चल रही है कहानी। अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। होली की शुभकामनायें

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  2. बहुत सुंदर लगी यह कडी भी.धन्यवाद

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