-- मनोज कुमार
“हां, जैसी इन्फॉर्मेशन दी गई थी, ठीक वैसे ही पूरी तैयारी कर दी गई है।” शिशिर ने बताया।
आगे के दरवाज़े से ड्राइवर बाहर निकला, फिर पिछली सीट का दरवाजा खुला पहले एक नौजवान पर नौकर टाइप का लड़का उतरा फिर सफेद पर काले धब्बों वाला, बड़ा सा कुत्ता (डलमेशियन), उसके पीछे पतली सी, सुंदर सी, (डोबरमैन) कुतिया। शिशिर चकित।
“चलिए बताइए कौन सा रूम है? जॉन्टी और जूली को गर्मी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती।”
रूम नं 2 में उन्हें शिफ्ट किया गया। बात-बात में मालूम हुआ कि साहब का सामान वाला ट्रक रात तक आ जाएगा। और जब सामान सेट हो जाएगा, तो दो-तीन दिन बाद साहब फ्लाइट से आएंगे।
खैर उन अतिथियों की मेहमान नवाजी में शिशिर ने कोई कसर नहीं छोड़ी और जॉन्टी और जूली बड़े मौज से बाकी के दिन उसकी कालीन और बिस्तर पर अपना नित्यकर्म करते चैन से रहे।
जब बड़े साहब साहब आए तो पाया कि शिशिर की कर्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा चरम पर थी। बड़े साहब प्रसन्न हुए।
रोज़ सुबह-सुबह बड़े साहब जॉन्टी और जूली को लेकर निकलते तो प्रायः शिशिर के जॉगिंग का भी वही समय होता। थोड़ी दूर साथ-साथ चलते जॉन्टी की चैन शिशिर के हाथ में होती। फिर जूली वाला भी। फिर बड़े साहब चैन से टहलते।
कुछ दिन इसी तरह बीते। एक दिन शाम को सारे अधिकारियों को सूचना दी गई कि बड़े साहब के घर नए मेहमान आए हैं। अतः एक छोटी सी टी पार्टी रखी गई है। मेहमान के बारे में सबको पता था। शिशिर जब तक पहुँचा तब तक कई अधिकारी पहुंच चुके थे। कोई बुके देकर बधाई दे रहा था तो कोई स्वीट का पैकट देकर। तो कोई शब्दों में – “क्या प्यारे प्यारे बच्चे हैं !!” ... “क्यूट!!!” .... “लवली!!!”
शिशिर झांका। देखा कार का गराज खाली कर दिया गया था। नीचे कालीन बिछी थी। और उस पर जॉन्टी और जूली के प्रेम की कई निशानियाँ कूं-कूं कर रही थी। डोबरमैन और डलमेशियन के संयोग से जो हाइब्रिड बच्चे थे, थे तो बड़े ही खूबसूरत!! शिशिर को भी खूशी हुई। .. मन से !! वह चेहरे पर छलक आई ख़ुशी छुपाता उसके पहले ही पीछे से बड़े साहब की आवाज आई, “ शिशिर! कैसे हैं? अच्छे हैं ना!!??”
शिशिर के मुंह से निकला, “जी सर !”
“तो एक ले जाओ तुम। तुम्हें तो काफी लगाव रहा है इनके माता-पिता से।”
.... और शिशिर के साथ श्रीमती शिशिर की जब वापसी हुई तो उनकी भी गोद भरी हुई थी।
“क्या है?”
“साहब ने भेजा है।”
“किस लिए?”
“... साहब ने .... वो ... पैसे मांगे हैं। कुत्ते का। दस हजार।”
शिशिर हक्का बक्का रह गया। दस हजार ?? पर चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आने दी। 10,000 रूपए का चेक काटकर उसे दे दिया। यह बात सारे कार्यालय में फैल गई कि शिशिर ने तो बाजी मार ली। पर इस तंत्र में कोई इतनी आसानी से बाजी अपनी ओर थोड़े ही कर सकता है।
सिन्हा जी बड़े साहब के ऑफिस में पहुँचे। बोले, “सर कल आप ठीक ही कह रहे थे। मैंने मार्केट में इसका रेट पता किया है। 15 से बीस हजार में है सर!! कल जो भी हुआ वह आपके लिए घाटे का सौदा हो गया। पर कोई बात नहीं एक तो मैं लंच के समय घर जाते वक्त ले ही लूंगा। और दो मेरे दोस्त को भी चाहिए। ये लीजिए साठ हजार का चेक।
इस तरह के तोल मोल के बोल चलते रहे और बड़े साहब को डेढ़ से दो लाख का नज़राना शाम तक मिल ही गया।
(चित्र साभार गूगल सर्च)
खैर उन अतिथियों की मेहमान नवाजी में शिशिर ने कोई कसर नहीं छोड़ी और जॉन्टी और जूली बड़े मौज से बाकी के दिन उसकी कालीन और बिस्तर पर अपना नित्यकर्म करते चैन से रहे। :)
जवाब देंहटाएंबढिया, इसे कहते है भगवान् जब देता है ..... :)
He bhagvaan!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगी यह कहानी. ऐसी ही कहानी का इन्तेजार रहेगा.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही बडिया कथा .लगता है जोन्ती और जुलि आन्खो के सामने आ गये हो.
जवाब देंहटाएंnice................
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! चित्र भी बहुत सुन्दर है खासकर पहला वाला जो बड़ा ही प्यारा लगा!
जवाब देंहटाएंBahut hi badia laga yeh post. Kahani sundar. photos ke hone se kahani jeevant ho uthi hai.
जवाब देंहटाएंबढ़िया कहानी रही...
जवाब देंहटाएंसर मुडाते ही ओले पड़ गए.... बहुत शानदार लिखा है आपने.... सिस्टम पर.....
जवाब देंहटाएंआभार...
अच्छा लिखा है .... ऐसी महमान नवाज़ी हो तो क्या कहने ......
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही बडिया कथा .चित्र भी बहुत सुन्दर है .
जवाब देंहटाएंप्रशासन पर एक कटु व्यंग्य।
जवाब देंहटाएं"कुत्ते से सावधान......... !!!"
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कथा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कहानी....चापलूसी कि बहुत जोर दार व्याख्या की है...बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंAcchee kahanee .......
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