बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

देसिल बयना 19 : घर भर देवर.....

-- करण समस्तीपुरी
है जोगीरा..... सा.....रा....रा...रा..... जोगीरा...... सा....रा....रा.....रा.....रा..... ! भैय्या रे होली है...... ! भैय्या रे होली है... !! "अरे ! हल्ला गुल्ला शांत करो, सुनो हमारी वाणी जी ! वाह जी वाह... ! देसिल बयना में कहता हूँ अपने गाँव की कहानी जी !! वाह जी वाह !! इसी बात पर दे ढोलक पर ताल ......... जोगीरा सा...रा...रा...रा...रा.... !!!
अरे हजूर ! फगुआ में दू-चार दिन बचा है। लड़िकन के संग में, होली के रंग में, मालपुआ-भंग में पूरा माहौल फगुआय गया है। हमरे तो गाँव से पुराना परेम है। फागुन में जब कोयलिया कूकती है तो विरहिन के हिरदय में जैसे हूक उठता है, वैसहि हमरे करेज में टीस मारता है, जौन होली में गाँव से दूर रहे तो। अचानके लगा कि गाँव के एक-एक पगडण्डी विरह में बसंती राग गा रही है, "एलई फगुआ बहार..... हो बबुआ काहे न आइला..... !!" फिर हम से बर्दाश्त नहीं हुआ और बोरिया विस्तार समेटे और पकड़ लिए रेवा-खंड का रास्ता।
अभी झखनो गाछी पार नहीं किये थे कि दूरे से मिरदंग के थाप पर झांझ के झंकार सुनाई दिया। भगलू दास गा रहा था, "गोरिया तोड़ देबौ गुमान..... अबके फगुआ में !" समझिये कि इतना सुनते ही हमरा पैर का गियर अपने-आप चेंज होय गया। धर-फर करते घर पहुंचे। बड़े-बुजुर्ग के पायं लागे और गठरी पटक के फटाक से दौड़ गए चौपाल पर। फिर तो खूब हुआ जोगीरा सा...रा...रा...रा...रा... !!
नयी दुल्हन के तरह कुसुम रंग चुनर ओढ़े हमरे गाँव फगुआ मद में मदमाता हुलास भर रहा था। शहर-बाजार, दूर-देश में रहने वाले भी होली खेलने 'रेवा-खंड' आ गए थे। चारो तरफ गुलजार था। बड़का कक्का के अंगना में तो दू दिन पहिलही से झमाझम रंग बरस रहा था। पीरपैंती वाली भौजी और पुरैनिया वाले पाहून आये हुए थे। दरिभंगा से बड़की दीदी भी आयी थी। रगेदन भाई का बियाह हुआ था पिछले लगन में। उनकी लुगाई माने कि नवादा वाली भौजी का पहिले होली था ससुराल में।
लगता है कक्का के आँगन में फागुनी पूर्णिमा पहिलही आ गया है। काकी भोरे से तान छोडी हुई है, "केशिया संभारि जुड़वा बाँध ले बहुरिया..... होली खेले आएतो देवर-ननदोसिया !!' उधर ढोरिया अलगे राग अलाप रहा था, "ऐसे होली खेलेंगे..... नयकी भौजी के संग...रंग...!" हमहू चट से हजूम में शामिल हो गए। दीदी, भौजी, पाहून, भैया, सुखाई, चमन लाल सब मिल के लगे फगुआ के रंग लूटे। पुरैनिया वाले पाहून डफली पीट-पीट के कूद रहे थे। बड़की भौजी डेकची पर ताल दे रही थी। बांकी लोग ताली पीट-पीट के होली गा रहे थे।
इधर आँगन में होली का धूम मचा था लेकिन रगेदन भाई की लुगाई ओसारे पर से गुम-सुम देख रही थी। हम भी कम उकाथी नहीं हैं। लगे उनके तरफ इशारा कर के गाए, "जियरा उदास भौजी सोचन लागी ! आँगन टिकुली हेराय हो..... जियरा.... !!" हमको लगा कि भौजी इहो गीत पर आयेगी अंगना में। लेकिन ई का...... भौजी तो नहिए आयी, ऊ का इशारा पाय के रगेदनो भाई अन्दर चले गए। हमलोग समझे कि अच्छा कौनो बात नहीं। भौजी का पहिल-पहिल होली है, सो सरमा रही हैं। रगेदन भाई अपने साथ लेकर आयेंगे।
एगो गीत पास हुआ। दू गो हुआ। फिर जोगीरा सा...रा....रा....रा....रा.... !! लेकिन न रगेदन भाई आये ना भौजी। हमलोग सोचे कि का बात है? तभी अन्दर से टेप-रेकट पर फिलमी होली बजे का आवाज़ आया....... 'चाभे गोरी का यार बालम तरसे.... रंग बरसे....!' ओह तोरी के........ तो अन्दरो में परोगराम चल रहा है। आहि बलैय्या.... भौजी तो अन्दर में खिलखिला कर हंस रही हैं। अब लो यही बात पर काकी खिसिया गयी। बोली, "देखो रे बाबू नया जमाना के कनिया..... ! इसी को कहते हैं 'घर भर देवर, पति से ठट्ठा !!' गुस्सो में काकी ऐसे अलाप के कही थी कि पूरे मंडली को हंसी आ गयी। काकी फेर चौल करते हुए बोली, "हाँ रे बाबू ! देखते नहीं हो ? इहाँ आँगन में ननद-ननदोई, देवर फैले हुए हैं और दुल्हिन रगेदेने के साथ हंसी ठिठोली कर रही है।" अब ई पर तो कहबे न करेंगे, "घर भर देवर, पति से ठट्ठा !"
हम भी लगले दुहरा दिए, "घर भर देवर, पति से ठट्ठा !" फिर पूछे, "लेकिन काकी ! ई कहावत का अरथ का होता है ? काकी देहाती भाषा में जो ई का अरथ कहिन उ आपके समझ में आयेगा कि नहि सो पता नहीं। मगर हम अपने तरफ से समझाने का कोशिश करते हैं। "घर भर देवर, पति से ठट्ठा" का मतलब हुआ, 'हंसुआ का ब्याह में खुरपी का गीत'अवसर है कुछ का और कर रहे हैं कुछ। दूसरा, गाँव घर में आज भी रिश्तों में काफी अनुशासन बरता जाता है। वहाँ पर हर रिश्ते के लिए अलग-अलग भाव, स्नेह, प्रेम और सम्मान है। हंसी मजाक का रिश्ता है देवर से। मान लिया कि कहीं देवर नहीं रहे तो कोई बात नहीं। जब देवर की प्रचुरता है, तब कोई पति से ही ठट्ठा मतलब मजाक करे तो कहाबत सही ही है, "घर भर देवर, पति से ठट्ठा !"
अब इसका भावार्थ ये हुआ कि 'उचित संसाधन की उपलब्धता के बावजूद जब कोई व्यक्ति, वस्तु या संबंधों का दुरूपयोग करे तो काकी की कहावत याद रहे, "घर भर देवर, पति से ठट्ठा !" तो यही था आज का देसिल बयना........ पसंद आया तो दे ढोलक पर ताल....... और बोल, जोगीरा सा....रा.....रा.....रा.....रा............ !!!!

15 टिप्‍पणियां:

  1. सा...रा...रा...रा...रा... !!
    मज़ेदार पोस्ट..आभार!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  2. बहुत ही सुन्दर लगा आज का देसिल बयना. शुभकामनाएं.

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  3. हमारे समाज में लोकोक्ति की एक परंपरा चली आ रही है । लोकोक्ति जीवन के निरीक्षण और गहरी अनुभूति से उभरती है। वह बड़ी सटीक होती है। वह जनजीवन की समृति का हिस्सा होती है। ये लोकोक्तियां न हमें सिर्फ याद रहती हैं, बल्कि हम इन्हें जीते भी हैं। इनसे प्रेरित होकर हम अपने कर्तव्य का निर्धारण भी करते हैं।

    आपका इन लोकोक्तियों को कथा के मध्यम से सार्जवजनिक करने का प्रयास स्तुत्य है।

    तो दे ढोलक पर ताल....... और बोल, जोगीरा सा....रा.....रा.....रा.....रा............ !!!!

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  4. ढोलक पर ताल....... और बोल, जोगीरा सा....रा.....रा.....रा.....रा............ !!!!
    vaah-vaah.

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  5. waaaaaaahhhh ji jogira. aapne to sa ra ra ra kar hi dala. bhai waah maajaa aa gaya. holi ke rang to abhi se hi hame bhigone lage. Dhanyawad.

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  6. वाह!मनोज जी-------मजा आ गया।
    होली का माहौल तो अब बन रहा है।
    जोर दार रहा देसिल बयना।

    आभार

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  7. bahute khub karan ji...dhansu post....ekdum holi ke tyohar jaisa....padhkar to aisa lag raha hai ki aaje holi mana le....

    e desil bayna rote hue b koi padhe to hans he de...
    to lijiye hum b hanste hue boliye dete hai...JOGIRA SA... RA... RA.... RA :)

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  8. कहावत का तो जवाब नहीं ,
    मनोज जी को धन्यवाद मेरे ब्लॉग को चिट्ठा चर्चा में शामिल करने के लिए

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  9. ओह ...डाइरेक्ट गाँव का गली चौपाल घर दुआर घुमा सब रिस्तेदारण से मिला दिए आप तो... आनंद आ गया...

    फगुआ का बहुत बहुत शुभकामना...

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  10. देसिल बयना इस बार भी पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा.

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  11. अच्छा लिखा आपने ..... होली सबके लिए कई खुशियाँ लेकर आया करता है.
    पर.......................!!!!!!!!!!!!!

    बढ़िया है.

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  12. karanjee lagata hai ab aap mujhe pooree tour par ye dialect sikha hee denge .
    Vaise 90% samajhane me aane laga hai........
    bahut acchee lagee ye post apanee sanskruti tyohar aur lokokti par prakash daltee...........
    Badhai..

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