रविवार, 14 फ़रवरी 2010
उसका गुलाब तुम्हारे गुलाब से ज़्यादा लाल है!
उसका गुलाब तुम्हारे गुलाब से ज़्यादा लाल है!!
कल सुलभ जी के ब्लाग पर एक रोचक शब्द मिला। आफ्टर इफेक्ट्स आफ वेलेंटाइन! सही बात है। अगर लाल गुलाब देने से इफेक्ट होता है तो आफ़्टर इफ़ेक्ट भी तो हो सकता है। जैसे एक आफ़्टर इफ़ेक्ट यह हो सकता है
“उसका गुलाब तुम्हारे गुलाब से ज़्यादा लाल है!”
फिर तो मामला गड़बड़ है। ऐसी स्थिति पर एक नज़्म सुनी थी। वह याद आ गई। क़रीब ३०-३२ साल पहले की बात है। उन दिनों मैं मुज़फ़्फ़रपुर में रहता था। वहां होली के अवसर पर कवि सम्मेलन का आयोजन होता था। ज़्यादातर तो हास्यरस की कविताएँ ही सुनाई जाती थी पर किसी कवि ने एक सीरियस रचना सुनाई थी। उनका नाम मुझे याद नहीं। रचना पढने के बाद आपको रचनाकार का नाम याद आये तो कृपया बतायेंगे। रचना इतनी हॄदयस्पर्शी थी कि दिल में घर कर गयी।
आप क्या ग़ौर से पढती हैं मेरे चेहरे को?
छोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का!!
कितनी बेचैन थी कल आपकी नीली आँखें,
मेरे मुख्यपृष्ठ की सुर्ख़ियाँ पढने के लिये!
आप लेकिन कोई भी कटिंग रख न सकीं,
यादगारों के हसीं फ़्रेम में जड़ने के लिये!!
रख दीजिए मुझको भी उस आलमारी पर,
वो जहां और भी रक्खे हैं पुराने अख़बार।
रौशनी से था इक रोज़ का रिश्ता मेरा,
रास आ गया है अब रातों का अंधकार!
यूं ही बेकाम न होने पऊंगा मैं,
वक़्त पड़ने पे कभी काम आऊंगा मैं
बंद आंखों का फ़क़त एक इशारा पाकर
भाव रद्दी के बिक जाऊंगा मैं।
आपके दर पे जो बजेंगी शहनाइयां एक दिन,
काश उसका सुर मुझ तक भी पहुंचे!
मेरे ही काग़ज़ के किसी टुकड़े पर
आपकी मांग का सिंदूर लिपट कर पहुंचे!
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बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबंद आंखों का फ़क़त एक इशारा पाकर
जवाब देंहटाएंभाव रद्दी के बिक जाऊंगा मैं।
वाह क्या भाव हैं, क्या समर्पण है
सुन्दर
वाह...व्यंग का व्यंग और सोचने की जंग ....
जवाब देंहटाएंछोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का!!
जवाब देंहटाएंपुराना अख्बार भी काम आता है. भाव बहुत अच्छे लगे.
करारा व्यंग...
जवाब देंहटाएंछोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का.nice
जवाब देंहटाएंआपके दर पे जो बजेंगी शहनाइयां एक दिन,
जवाब देंहटाएंकाश उसका सुर मुझ तक भी पहुंचे!
मेरे ही काग़ज़ के किसी टुकड़े पर
आपकी मांग का सिंदूर लिपट कर पहुंचे!
छोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का!!
Bahut khoob!
आपके दर पे जो बजेंगी शहनाइयां एक दिन,
जवाब देंहटाएंकाश उसका सुर मुझ तक भी पहुंचे!
मेरे ही काग़ज़ के किसी टुकड़े पर
आपकी मांग का सिंदूर लिपट कर पहुंचे!
छोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का!
आज के फिन इतना दर्द क्यों लिख दिया मनोज जी ..... आज तो मिलन का दिन है .....
ग़ज़ब की रचना है ....
दाद देनी होगी याददाश्त की। कविता बहुत शानदार थी।
जवाब देंहटाएंछोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का!!
जवाब देंहटाएंगजब !!
मेरे ही काग़ज़ के किसी टुकड़े पर
जवाब देंहटाएंआपकी मांग का सिंदूर लिपट कर पहुंचे!
छोड़िए! मैं तो हूँ अख़बार पुराने कल का!!
वाह क्या बात है बहुत सुंदर कविता.... जबाब नही.
आप का धन्यवाद इस सुंदर रचना को पढवाने के लिये
ग़ज़ब! अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा इस पुरानी रचना को पढने का अवसर प्राप्त हुआ, मन में जो भाव उमड़े मैं यहाँ बता नहीं सकता. कुछ पंक्तियाँ अद्भूत है. कवि जो भी हैं, उनको सलाम भेजता हूँ.
जवाब देंहटाएंआजकल व्यस्तताओं की वजह से साथी ब्लोगों तक पहुँच नहीं पा रह हूँ.
वाह!! बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ.
vaah bahut sundar.kavita ke madhyam se karara vyang.
जवाब देंहटाएंगज़ब का भाव संयोजन है इस अभिव्यक्ति में ...आभार ।
जवाब देंहटाएंगजब का लिखे हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
kya baat hai aur kya gazab yaadasht hai ki puri rachna yaad hai lekin lekhak bichare ko bhool gaye.
जवाब देंहटाएंbadhiya.
वाह ...वाह ..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह वाह ....क्या बात है गजब करदीय आपने तो गजब का भाव संयोजन है जितनी तारीफ़ की जाए बहुत कम है ....दिल छु गई आपकी यह रचना आभार ....
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar
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