गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

फिर सजी चौपाल : गुप्त के नवगीत पर परशुराम राय की समीक्षा

आँच
-- परशुराम राय

समीक्षा के दूसरे अंक में श्री हरीश प्रकाश गुप्त की रचना नवगीत लेते हैं जो 24 दिसम्बर 2009 को इसी ब्लाग पर देखने को मिली थी। नवगीत एक अद्यतन विधा है जिसमें कविता और गीत दोनों की विशेषताएँ देखने में आती हैं। हालाँकि बहुत स्पष्ट रूप से इसकी शास्त्रीय विवेचना नहीं हो पायी है। अभी इसके स्वरूप को समझने और समझने वालों का लगभग अभाव सा है। साथ ही, इनमें काफी मतभेद भी है। डॉ0 नगेन्द्र ने इस विधा को अपने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ ग्रंथ में स्थान दिया है। इस कविता में कवि ने परिवर्तनशील जगत को सामान्य से दिखने वाले बिम्बों के माध्यम से जीवन के उत्थान-पतन को, विशेषकर आज के जीवन को, बड़े ही आकर्षक ढंग से रेखांकित किया है।

कविता एक ओर हमारे जीवन के वर्तमान परिवेश को व्यंजित करती है तो दूसरी ओर जगत की परिवर्तनशीलता के यथार्थ को। जीवन के मोड़ पर कभी हम अभाव की परिधि में ऐसे किंकर्त्तव्यविमूढ़ से लोगों को देखते हैं मानो नाव नदी के बीच धार में खड़ी हो गयी हो। यह एक अद्भुत प्रयोग है। नाव बीच धार में बहती रहती है, लेकिन ‘खड़ी’ शब्द से परिवेश में गति के बीच ठहराव का संकेत कर ऐसी परिस्थिति में हमारी निराशा को व्यंजित किया गया है।

हम अपने जीवन की दिशा निर्धारित तो अवश्य करते हैं, लेकिन परिणाम को देखकर लगता है कि हम बिलकुल दिशाहीन हैं। सबेरा होने पर हलचल दिखती तो है, लेकिन पूर्णतया अवचेतन की अवस्था में सोए से रहते हैं बिना जागरण के बोध के।

आज का युवा वर्ग प्रतियोगितात्मक परिवेश में जीविका के अभाव की दोपहरी में उसे पाने की आशा की सुखद छाँव में जीने का प्रयास कर रहा है।

सामान्यतया, जीवन को यदि समग्र रूप में लिया जाय तो हम पाते हैं कि एक समस्या का हम समाधान कर पाते हैं, तो वहीं से समस्याओं की अन्य शाखाएँ भी पनपने लगती है। विशेषकर भारतीय जन-जीवन को देखकर ऐसा ही लगता है और अन्त में समस्या ठूँठ सी जड़ता उत्पन्न कर देती है या पठारी भूमि की तरह उच्चावच्च सी बन जाती है अथवा ऊँट की पीठ की तरह। इसे कवि ने दूसरे बन्द में बड़े सुन्दर बिम्बों से व्यक्त किया है-

रोज खूँटती

उग-उग आती

.....

पीठ ऊँट सी।

जब अथ और इति तक अर्थात् जन्म से मृत्यु तक आशा और निराशा, समस्याएँ-समाधान आदि द्वैत के बीच हमारी व्यस्त जिन्दगी अस्त सी जान पड़ने लगती है तब भी हम हमारी व्यस्त जिन्दगी के कोने-कोने से आशा की धूप समेट कर खुश और मस्त रहते हैं।

इस कविता में उपर्युक्त सब कुछ व्यंजित होते हुए भी उपमानों की भरमार के मध्य उपमेय का अभाव खलता है। ऐसा नहीं कि यहाँ उपमेय-लुप्तोपमा अलंकार नहीं है। लेकिन यहाँ उपमेय का अभाव गीत को समझना दुष्कर कर देता है।

वैसे एक स्थान पर - गीत की दूसरी पंक्ति में लगता है कि ‘कहाँ सुनाएँ’ की जगह ‘किसे सुनाँए’ होता तो अच्छा रहता अन्यथा कविता में शब्द-संयम का इतना अच्छा उदाहरण बहुत कम मिलता है। अनावश्यक शब्द कहीं प्रयोग नहीं किए गए हैं। सांसारिक द्वैविध्य को बडे़ सुन्दर ढंग से व्यंजित किया गया है। यद्यपि कि गीत की भाव-भूमि पुरानी है लेकिन कवि के नए अंदाज ने उसे नवीनता प्रदान की है।

नवगीत में प्राञ्जलता को देखकर पं0 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की याद आती है। वे इसे कविता का आवश्यक अंग मानते थे। और ठीक भी है- यदि कविता में प्राञ्जलता न हो तो कविता गद्य बन जाती है। इसे काव्य के गुण के रूप में देखा जाता है।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी संमीक्षा है धन्यवाद्

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  2. बेहतर समीक्षा मनोज जी, रही बात कहाँ सुनाये और किसे सुनाये की तो आप भी अपनी जगह ठीक है मगर कई बार शब्दार्थ के फर्क की वजह से यह हो जाता है !

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  3. आलोचनात्मक ब्याख्यान अच्छा लगा।

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  4. आदरणीय मनोज जी , पिछले शनिवार के "जनसत्ता" में आपका लेख पढ़ा, बधाई।
    2.समीक्षा अच्छी लगी।

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  5. राय जी की यह समीक्षा अच्छी लगी। राय जी को प्रणाम।

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  6. sameeksha aalochana.........?
    yanha south me salo se rahaane ke baad hindi padne ko mil rahee hai blog likhana shuru kiya blog padana shuru kiya lagata hai khajana mil gaya...
    mujh jaise logo ke liye bhav mayne rakhate hai.....
    kaaran ek sadharan insaan hoo sahitykar nahee.......
    pichalee post jo prantiy bhashame thee padne me maza aaya poora nahee samajh pai par arth samajh gayee .....:).....prantiy bhashaon me ek mithas hotee hai......

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  7. बहुत अच्छी समीक्षा है .......... और नवगीत समझने में भी आसानी हो गयी .........

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  8. rai ji ki arthpurn vyakkhya se geet ko vistar mila, arth nikhar kar samne aaya aur nishpaksh sameeksha se lekhan ko nishay disha milegi. rai sahab ko bahut bahut aabhar.

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  9. rai ji ki arthpurn vyakkhya se geet ko vistar mila, arth nikhar kar samne aaya aur nishpaksh sameeksha se lekhan ko nishay disha milegi. rai sahab ko bahut bahut aabhar.

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