गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

चौपाल में अतिथि गुप्त के नवगीत

मित्रों ! आज फिर गुरूवार है और हम आपका स्वागत कर रहे हैं, चौपाल में ! आज की चौपाल में हम जिस अतिथि कवि का आह्वान कर रहे हैं, उनका नाम आपके लिए जाना-पहचाना है ! पढ़िए उदीयमान साहित्यकार श्री हरीश प्रकाश गुप्त द्वारा रचित मनमोहक नवगीत !!

नव गीत

-- हरीश प्रकाश गुप्त


किससे पूछे

कहाँ सुनाएं

बीच धार में

खड़ी नाव सी

कभी सुबह को

सोने जाती

भरी दोपहर

पड़ी छाँव सी ।


रोज खूँटती

उग-उग आती

गर्म जेठ में

खड़ी ठूँठ सी

पी-पी पानी

प्यास अधूरी

उबड़-खाबड़

पीठ उँट सी ।


कोर-कोर से

फूल और आँसू

अथ इति में है

व्यस्त अस्त सी

कोना-कोना

धूप समेटे

हंसी खुशी और

मस्त मस्त सी ।


***

11 टिप्‍पणियां:

  1. इस कविता को पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिलती है।

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  2. गुप्त जी की कविता अच्छी लगी , बधाई ।

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  3. आप का धन्यवाद गुप्त जी की कविता सुंदर कविता के लिये

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  4. बहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

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  5. बहुत सुन्दर रचना
    क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

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  6. बहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

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  7. मनोज JI
    नमस्कार!

    आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
    से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    Sanjay Bhaskar
    Blog link :-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  8. बहुत ही सुंदर रचना है।
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  9. साहित्यिक सौष्ठव से सजी सुन्दर कविता.

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