मित्रों ! आज फिर गुरूवार है और हम आपका स्वागत कर रहे हैं, चौपाल में ! आज की चौपाल में हम जिस अतिथि कवि का आह्वान कर रहे हैं, उनका नाम आपके लिए जाना-पहचाना है ! पढ़िए उदीयमान साहित्यकार श्री हरीश प्रकाश गुप्त द्वारा रचित मनमोहक नवगीत !!
नव गीत
-- हरीश प्रकाश गुप्त
किससे पूछे
कहाँ सुनाएं
बीच धार में
खड़ी नाव सी
कभी सुबह को
सोने जाती
भरी दोपहर
पड़ी छाँव सी ।
रोज खूँटती
उग-उग आती
गर्म जेठ में
खड़ी ठूँठ सी
पी-पी पानी
प्यास अधूरी
उबड़-खाबड़
पीठ उँट सी ।
कोर-कोर से
फूल और आँसू
अथ इति में है
व्यस्त अस्त सी
कोना-कोना
धूप समेटे
हंसी खुशी और
मस्त मस्त सी ।
***
इस कविता को पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिलती है।
जवाब देंहटाएंEk Achi kavita.
जवाब देंहटाएंगुप्त जी की कविता अच्छी लगी , बधाई ।
जवाब देंहटाएंआप का धन्यवाद गुप्त जी की कविता सुंदर कविता के लिये
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंक्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।
बहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंमनोज JI
जवाब देंहटाएंनमस्कार!
आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत ही सुंदर रचना है।
जवाब देंहटाएंpls visit...
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साहित्यिक सौष्ठव से सजी सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंVSAT in Hindi
जवाब देंहटाएंEthernet in Hindi
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