--- मनोज कुमार
उस दिन दफ्तर में अफरातफरी का महौल था। बौस नहीं आये थे। दोपहर होते-होते धीरे-धीरे पूरा दफ्तर ही ख़ाली हो गया। मुझे भी आज एक आवश्यक काम से राधावल्लभ स्ट्रीट जाना था। बीमार बेटे बिट्टू के लिए डाक्टर की सलाह लेने। पर क्या करता, दफ्तर में कोई और था भी नहीं। कम-से-कम एक आदमी को तो दफ्तर में रहना ही चाहिए। शायद कोई कस्टमर आ जाए। मुझे दफ्तर में रहना ही उचित लगा।
दूसरे दिन दफ्तर आया तो सुबल ने पूछा, “तुम कल बौस के घर नहीं गए, .. जाना चाहिए था”। मैंने उत्सुकता से पूछा, “क्यों, क्या हुआ था?” सुबल ने बताया, “अरे! तुम्हें मालूम नहीं? बौस का डॉगी मर गया। बॉस उसे बहुत लाइक करते थे। चलो, कल नहीं गए तो आज ही उनसे मिल लो।”
मैंने धीरे से बौस के कक्ष में प्रवेश किया। मेरे हाथ में एक फाइल थी। वे उदास, डबडबाई आंखों से मेरी ओर देखते हुए बोले, “खन्ना, .. आओ, .. चौदह .. चौदह वर्षों से हमारे साथ था मौंटी। घर के सदस्य की तरह..” बड़ी मुश्किल से शब्द निकल रहे थे, “कल हमें अकेला छोड़ गया। मेरा तो किसी काम में दिल नहीं लग रहा है। फाइल-वाइल कल ..” उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। मैं जाने को मुड़ा, तो वो बोले, “तुम कल नहीं आए? ऑफिस से सब आए थे। ” “ज्ज जी .. वो .. कल दफ्तर के ...” “चलो छोड़ो ठीक है।” वो मुझे पूरा बोलने ही नहीं दिए, रोते रहे। मैं बोला, “सर मैं आपके दुख को समझ सकता हूं। मेरी संवेदना आपके साथ है।” मैं निकल आया।
कुछ दिनों के बाद मुझे घर से फोन आया। राम प्रसादजी अंकल गुज़र गए। मुझे गहरा धक्का लगा। वे हमारे सगे नहीं थे, पर सगे से भी ज़्यादा थे। मेरा कैरियर बनाने और मुझे इस मुकाम तक लाने में उनका बहुत बड़ा योगदान था। अभावग्रस्त पिता के बुरे दिनों में वे पिता की तरह आगे आए और मुझे इस लायक बनाया। मैं बौस के पास गया, उन्हें बताया कि मुझे छुट्टी जाहिए। घर जाना होगा। बौस ने कहा, “”देखो तुम बहुत छुट्टी ले चुके हो ... कभी पिता के देहांत के नाम पर तो कभी साले की शादी के लिए। वैसे भी ऑफिस में बहुत काम अटका पड़ा है। तुम्हारा यहां रहना ज़रूरी है।” बॉस नहीं माने।
मैं अपनी सीट पर आ गया। सुबल ने पूछा “क्या हुआ।” मैं बोला, “छुट्टी नहीं मिली। बॉस का कुत्ता मर जाए तो सारा दफ़्तर ग़ायब हो सकता है और मेरे पिता सरीखे अंकल के निधन पर मैं संवेदना भी प्रकट करने नहीं जा सकता।” सुबल ने समझाया “बॉस का कुत्ता नहीं डौगी बोल, जब मौंटी मरा तो तुम तो बॉस के दुख में शरीक हुए नहीं अब वो तुमसे क्या सहानुभूति रखे।” मैंने पूछा, “बॉस का कुत्ता कुत्ता नहीं कोई बहुत ही इज्ज़तदार प्राणी है और मेरे पिता तुल्य अंकल क्या कुत्ते से भी गये बीते हैं ?”
यही हाल है आज का अजब जगत की रीति।
जवाब देंहटाएंदूरी आदम से बहुत है कुत्ते से प्रीति।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Aj ke samaya kee sahee halat prastut karane valee kahanee----
जवाब देंहटाएंPoonam
आज के सच पर तीखी धार वाली कलम चलाई आपने
जवाब देंहटाएंमुझे यह रचना उच्च कोटि की लगी और है भी । प्रस्तुत कहानी के माध्यम से आपने बताया कि आज का मनुष्य पशु से भी बदतर होता चला जा रहा है । एक कुत्ते के मरने पर भीड़ इकठ्ठा हो जाती है ,पर एक इंसान के मरने पर छुट्टी नहीं मिल पाती । किप इट अप सर.... शुभकानाएं।
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर,बहुत अच्छे भाव संजोए यह लघुकथा हमें बहुत कुछ सीख देती है।
जवाब देंहटाएंHar kiseeka apna paimana hota hai dard tolneka...!
जवाब देंहटाएंBade dukh bhare dine ek kaifiyat rakhi hai aapne...
aapki rachna gyan ki raah pe le jati hai ,nayi sikh deti hai ,umda
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंकृपया बैकग्राउंड हलके रंग में करें !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अरविंद जी, सुझाव के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लघु कथा है अफसर शाही का सटीक चित्र प्रस्तुत करती रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंYahi to antar hai boss aur employee me..boss ko chhutti ke liye kuch b reason sahi hota hai aur jab employee chhutti ke bat kare to sara kam usi din aa jata hai....satya aur satik bat kahi hai apne is laghukatha ke jariye....mera to man kar raha hai apne boss ko b ye laghukatha bhej dun..lakn.........
जवाब देंहटाएंयही हाल है आज का ... बहुत सुन्दर लघु कथा है अफसर शाही का सटीक चित्र ...
जवाब देंहटाएंachchhi laghu katha.
जवाब देंहटाएंbahut dardnaal sachayi hai yeh......... uh kya insan se itni sanvedna bhi nahi rakh sakta.
जवाब देंहटाएंशव को दे हम रूप, रंग, आदर मानव का !
जवाब देंहटाएंमानव का हम कुत्सित रूप बना दें सव का !!
मेहरबान ! कद्रदान !! साहेबान !!!
(बॉस के) कुत्ते से सावधान !!!!
दिखावटी संवेदना ही ऊपर हो गई है......
जवाब देंहटाएंचाकरी जीवन से जुड़ी लघुकथा काफी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील
जवाब देंहटाएंश्वान देव का अपमान उचित नहीं है! :-)
जवाब देंहटाएंज्ञान जी से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंpashu aur manav me yahi to farq hai.
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक चित्रण किया आपने....बहुत ही अच्छी लगी ये लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!