लघुकथा शांति का दूत
--- --- मनोज कुमार
साइबेरिया के प्रदेशों में इस बार काफी बर्फ पड़ रही थी। उस नर सारस की कुछ ही दिनों पहले एक मादा सारस से दोस्ती हुई थी। दोस्ती क्या हुई, बात थोड़ी आगे भी बढ़ गई। इतनी बर्फ पड़ती देख नर सारस ने मादा सारस को अपनी चिंता जताई – “हमारी दोस्ती का अंकुर पल्लवित-पुष्पित होने का समय आया तो इतनी जोरों की बर्फबारी शुरू हो गई है यहां .. क्या करें ?” मादा सारस ने सुझाया – “सुना है ऋषि मुनियों का एक देश है भारत ! वहां पर चलें तो हम इस मुसीबत के मौसम को सुखचैन से पार कर जाएंगे।”
दोनों हजारों मीलों की यात्रा तय कर भारत आ गए। यहां का खुशगवार मौसम उन्हें काफी रास आया। मादा सारस ने अपने नन्हें-मुन्नों को जन्म भी दिया। यहां के प्रवास के दौरान उनकी एक श्वेत-कपोत से मित्रता भी हो गई। श्वेत-कपोत हमेशा उनके साथ रहता, उन्हें भारत के पर्वत, वन-उपवन, वाटिका, सर-कूप आदि की सैर कराता।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। सारस के अपने प्रदेश लौटने का समय निकट आता गया सारस-द्वय अपने नन्हें सारसों के साथ यहां काफी खुश थे, न केवल श्वेत-कपोत की मित्रता से बल्कि आने वाले पर्यटकों से भी। एक दिन सुबह-सुबह सारस-द्वय अपने स्थानीय मित्र श्वेत-कपोत के साथ झील की तट पर अपना प्रिय आहार प्राप्त करने गए। भोजन को मुंह में दबा पंख फैलाकर उड़ान भरने की कोशिश की, पर उड़ न पाए। परदेशी सारस के साथ स्थानीय श्वेत-कपोत भी शिकारी की जाल में फंस गए।
श्वेत-कपोत की आंखों से आंसू टपक पड़े। उसे स्वयं के जाल में फंस जाने का दुख नहीं था, उसके लिए यह तो आम बात थी। सारस-द्वय के लिए उसे दुख तो था, पर उतना नहीं जितना इस बात के लिए कि वे दोनो बच्चे जो बच गए हैं, अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा। हम कहीं और चलें। अब फिर वे यहां नहीं आएंगे।
.. .. पता नहीं अपने-अपने प्रदेश के लिए कौन शांति का दूत है .. ?
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आने वाले नए वर्ष की मंगल कामनाएँ !
सुदर्शन की कहानी याद आ गयी - बाबा नहीं चाहते थे कि खड़गसिंह घोड़ा चोरी की बात बताये। उससे नेकी पर लोगों का विश्वास खत्म हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंपर कब तक बचेगी भारत की साख?
शांति का दूत तो है पर शांति नही ..बहुत बढ़िया कहानी सारस और उसके प्रेम की जो उसे कहाँ से कहाँ तक खींच लाया..सुंदर रचना....बधाई मनोज जी
जवाब देंहटाएंसारस बिम्ब को ले बहुत बड़ी बात कही है आपने...
जवाब देंहटाएं----
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
laghu katha bahut aachi lagi.
जवाब देंहटाएं... दोनो बच्चे जो बच गए हैं, अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा।
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
संदेश देती एक बहुत अच्छी लघुकथा । बधाई...
जवाब देंहटाएंbahut sundar sandesh deti hui rachna hai ,nav varsh mangalmaya ho sabhi ka .
जवाब देंहटाएंआप ने इस कहानी के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया,ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं आप की बात बिलकुल सच है....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बात सही जो आपने कही । अपनी यहॉं देशभक्ति कुछ लाइनों पर झगडने तक सीमित है । साख की चिंता सस्ती देशभक्ति के दायरे से बाहर की बात है ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंआने वाला साल मंगलमय हो।
बहुत सुंदर लघुकथा। संदेश देती।
जवाब देंहटाएंमनोज जी आप की इस पोस्ट ने मुझे गूजर ताल की याद दिला दी. मेरे जौनपुर जिले मे खेतासराय के पास एक बहुत बडा ताल है उसे गूजर ताल के नाम से जाना जात है । मुझे याद है कि अभी कोई पाच साल पहले तक परदेसी पक्षी सयबेरियन हजारो मील की यात्रा तय कर नवम्बर माह मे ही यहा पहुच जाते थे । और उनका बसेरा यहा फ़रवरी- मर्च तक रहता था । लेकिन सिकारियो की कुद्रिष्ट उन पर ऐसी पडी कि परदेसी पक्षी अब यहा नही आते ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी आप की इस पोस्ट ने मुझे गूजर ताल की याद दिला दी. मेरे जौनपुर जिले मे खेतासराय के पास एक बहुत बडा ताल है उसे गूजर ताल के नाम से जाना जात है । मुझे याद है कि अभी कोई पाच साल पहले तक परदेसी पक्षी सयबेरियन हजारो मील की यात्रा तय कर नवम्बर माह मे ही यहा पहुच जाते थे । और उनका बसेरा यहा फ़रवरी- मर्च तक रहता था । लेकिन सिकारियो की कुद्रिष्ट उन पर ऐसी पडी कि परदेसी पक्षी अब यहा नही आते ।
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!संदेश देती एक बहुत अच्छी लघुकथा । बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कहानी सारस और उसके प्रेम की ..सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण कहानी ..... भारत की भावी पीडी और इस समाज को आईना दिखाती ...... क्या आशा की किरण है कहीं .....
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...........
Manoj ji...Bahot he achi laghukatha likha hai apne...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच मे ले ली है।
सुंदर प्रस्तुतीकरण!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कथा. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सही संदेश है इस कथा में। सच में, भारत अपनी परंपरा को भूल रहा है।
जवाब देंहटाएंवाह ! मनोज जी आपने क्या बात कही है ! दिल को छू लिया आपकी इस रचना ने | ज्यादा दूर न जाके हम अपने शांति प्रिय देश में ही देख सकते हैं की क्षेत्रीयता के नाम पे क्या क्या हो रहा है, इस शांति प्रिये देश में |
जवाब देंहटाएंBahut sundar laghukatha.Badhai..
जवाब देंहटाएंमनोज जी , आपकी यह कहानी बहुत अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं ।
सारस बिम्ब को ले बहुत बड़ी बात कही है
जवाब देंहटाएंआप ने इस कहानी के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंBahut achii lagi aapki yeh laghu katha..Aur sach kaha hai aapne apne es rachna k madhyam se ki "Apna yeh rishi-muniyon ka desh ab shant nahi raha.Shayad ab yeh pakshiyan bhi jaan gaye hain.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति। जंगली जीवों के बाद अब हम आसमान के परिंदों को अमानवीयता का शिकार होता देख रहे हैं। कइयों की तादाद लुप्तप्राय होने के करीब है। कोई कवि हृदय ही जान सकता है कि पक्षियों को समूह में उड़ते देखना कितना सुखद अनुभव है।
जवाब देंहटाएंपूरे भारत में खड़कसिंह डाकुओं की फौजें नि:शंक होकर घूम रही हैं। बाबा भारती को चाहिये कि हार नहीं मानें। अच्छी लघुकथा के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएं–डॉ. मोहनलाल गुप्ता, जोधपुर
आओकी यह पोस्ट पढ़ कर हार की जीत कहानी याद आ गयी ... अच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएंअच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंvary nice good information
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