सोमवार, 28 दिसंबर 2009

शांति का दूत


लघुकथा शांति का दूत

--- --- मनोज कुमार

साइबेरिया के प्रदेशों में इस बार काफी बर्फ पड़ रही थी। उस नर सारस की कुछ ही दिनों पहले एक मादा सारस से दोस्ती हुई थी। दोस्ती क्या हुई, बात थोड़ी आगे भी बढ़ गई। इतनी बर्फ पड़ती देख नर सारस ने मादा सारस को अपनी चिंता जताई हमारी दोस्ती का अंकुर पल्लवित-पुष्पित होने का समय आया तो इतनी जोरों की बर्फबारी शुरू हो गई है यहां .. क्या करें ?” मादा सारस ने सुझाया सुना है ऋषि मुनियों का एक देश है भारत ! वहां पर चलें तो हम इस मुसीबत के मौसम को सुखचैन से पार कर जाएंगे।

दोनों हजारों मीलों की यात्रा तय कर भारत आ गए। यहां का खुशगवार मौसम उन्हें काफी रास आया। मादा सारस ने अपने नन्हें-मुन्नों को जन्म भी दिया। यहां के प्रवास के दौरान उनकी एक श्वेत-कपोत से मित्रता भी हो गई। श्वेत-कपोत हमेशा उनके साथ रहता, उन्हें भारत के पर्वत, वन-उपवन, वाटिका, सर-कूप आदि की सैर कराता।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। सारस के अपने प्रदेश लौटने का समय निकट आता गया सारस-द्वय अपने नन्हें सारसों के साथ यहां काफी खुश थे, न केवल श्वेत-कपोत की मित्रता से बल्कि आने वाले पर्यटकों से भी। एक दिन सुबह-सुबह सारस-द्वय अपने स्थानीय मित्र श्वेत-कपोत के साथ झील की तट पर अपना प्रिय आहार प्राप्त करने गए। भोजन को मुंह में दबा पंख फैलाकर उड़ान भरने की कोशिश की, पर उड़ न पाए। परदेशी सारस के साथ स्थानीय श्वेत-कपोत भी शिकारी की जाल में फंस गए।

श्वेत-कपोत की आंखों से आंसू टपक पड़े। उसे स्वयं के जाल में फंस जाने का दुख नहीं था, उसके लिए यह तो आम बात थी। सारस-द्वय के लिए उसे दुख तो था, पर उतना नहीं जितना इस बात के लिए कि वे दोनो बच्चे जो बच गए हैं, अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा। हम कहीं और चलें। अब फिर वे यहां नहीं आएंगे।

.. .. पता नहीं अपने-अपने प्रदेश के लिए कौन शांति का दूत है .. ?

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आने वाले नए वर्ष की मंगल कामनाएँ !

34 टिप्‍पणियां:

  1. सुदर्शन की कहानी याद आ गयी - बाबा नहीं चाहते थे कि खड़गसिंह घोड़ा चोरी की बात बताये। उससे नेकी पर लोगों का विश्वास खत्म हो जायेगा।

    पर कब तक बचेगी भारत की साख?

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  2. शांति का दूत तो है पर शांति नही ..बहुत बढ़िया कहानी सारस और उसके प्रेम की जो उसे कहाँ से कहाँ तक खींच लाया..सुंदर रचना....बधाई मनोज जी

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  3. सारस बिम्ब को ले बहुत बड़ी बात कही है आपने...


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    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  4. ... दोनो बच्चे जो बच गए हैं, अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा।
    ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

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  5. संदेश देती एक बहुत अच्छी लघुकथा । बधाई...

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  6. आप ने इस कहानी के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया,ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं आप की बात बिलकुल सच है....
    धन्यवाद

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  7. बात सही जो आपने कही । अपनी यहॉं देशभक्ति कुछ लाइनों पर झगडने तक सीमित है । साख की चिंता सस्‍ती देशभक्ति के दायरे से बाहर की बात है ।

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. बहुत अच्छी लघुकथा।
    आने वाला साल मंगलमय हो।

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  10. बहुत सुंदर लघुकथा। संदेश देती।

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  11. मनोज जी आप की इस पोस्ट ने मुझे गूजर ताल की याद दिला दी. मेरे जौनपुर जिले मे खेतासराय के पास एक बहुत बडा ताल है उसे गूजर ताल के नाम से जाना जात है । मुझे याद है कि अभी कोई पाच साल पहले तक परदेसी पक्षी सयबेरियन हजारो मील की यात्रा तय कर नवम्बर माह मे ही यहा पहुच जाते थे । और उनका बसेरा यहा फ़रवरी- मर्च तक रहता था । लेकिन सिकारियो की कुद्रिष्ट उन पर ऐसी पडी कि परदेसी पक्षी अब यहा नही आते ।

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  12. मनोज जी आप की इस पोस्ट ने मुझे गूजर ताल की याद दिला दी. मेरे जौनपुर जिले मे खेतासराय के पास एक बहुत बडा ताल है उसे गूजर ताल के नाम से जाना जात है । मुझे याद है कि अभी कोई पाच साल पहले तक परदेसी पक्षी सयबेरियन हजारो मील की यात्रा तय कर नवम्बर माह मे ही यहा पहुच जाते थे । और उनका बसेरा यहा फ़रवरी- मर्च तक रहता था । लेकिन सिकारियो की कुद्रिष्ट उन पर ऐसी पडी कि परदेसी पक्षी अब यहा नही आते ।

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  13. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!संदेश देती एक बहुत अच्छी लघुकथा । बधाई...

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  14. बहुत बढ़िया कहानी सारस और उसके प्रेम की ..सुंदर रचना..

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  15. भाव पूर्ण कहानी ..... भारत की भावी पीडी और इस समाज को आईना दिखाती ...... क्या आशा की किरण है कहीं .....
    आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...........

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  16. आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
    चर्चा मंच मे ले ली है।

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  17. बहुत सही संदेश है इस कथा में। सच में, भारत अपनी परंपरा को भूल रहा है।

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  18. वाह ! मनोज जी आपने क्या बात कही है ! दिल को छू लिया आपकी इस रचना ने | ज्यादा दूर न जाके हम अपने शांति प्रिय देश में ही देख सकते हैं की क्षेत्रीयता के नाम पे क्या क्या हो रहा है, इस शांति प्रिये देश में |

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  19. मनोज जी , आपकी यह कहानी बहुत अच्छी लगी ।
    नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं ।

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  20. सारस बिम्ब को ले बहुत बड़ी बात कही है

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  21. आप ने इस कहानी के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया.

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  22. Bahut achii lagi aapki yeh laghu katha..Aur sach kaha hai aapne apne es rachna k madhyam se ki "Apna yeh rishi-muniyon ka desh ab shant nahi raha.Shayad ab yeh pakshiyan bhi jaan gaye hain.

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  23. सुंदर प्रस्तुति। जंगली जीवों के बाद अब हम आसमान के परिंदों को अमानवीयता का शिकार होता देख रहे हैं। कइयों की तादाद लुप्तप्राय होने के करीब है। कोई कवि हृदय ही जान सकता है कि पक्षियों को समूह में उड़ते देखना कितना सुखद अनुभव है।

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  24. पूरे भारत में खड़कसिंह डाकुओं की फौजें नि:शंक होकर घूम रही हैं। बाबा भारती को चाहिये कि हार नहीं मानें। अच्छी लघुकथा के लिये बधाई।
    –डॉ. मोहनलाल गुप्ता, जोधपुर

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  25. आओकी यह पोस्ट पढ़ कर हार की जीत कहानी याद आ गयी ... अच्छी लघु कथा

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