-- करण समस्तीपुरी
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है !
दिल जलता है तो धुंआ कहाँ जाता है ??
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है !
दिल जलता है तो धुंआ कहाँ जाता है ??
कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल भी आता है कि धुंआ की तो ऐसी की तैसी ये दिल आख़िर जलता ही क्यूँ है? फिर अगले ही पल ख्याल आता है दिल का क्या... दिल तो पागल है ! ये तो यूँ ही जला-मारा करता है। अब मैं क्या कहूँ ? चंदन-वन में कौन नही गया... ? चंदन की सुगंध किसे नही पता ? लेकिन चंदन पर आपकी नाक ही गयी होगी... कभी दिल नही। क्यूँ ? कभी दिल लगा के सोचा... ? अब लकड़ी पर भला किसका दिल जाए... ? लाख सुगन्धित हो, है तो लकड़ी ही। इसी बात पर तो मेरा दिल जल उठता है। आख़िर क्या जा रहा था ऊपर वाले का... ? जब चंदन की लकड़ी इतनी सुगन्धित होती है तो उसका फूल कितना सुगन्धित होता ? लेकिन चंदन में फूल दिया ही नही.... ! काश चंदन में भी फूल दे दिया होता... फिर देखते सर्दी-जुकाम से बंद नाक वालों का दिल भी धड़क उठता। बात एक चंदन की होती तो इसे मानवीय भूल कह कर दिल को बहला देते।
अब ईख का ही उदाहरण ले लीजिये। तना में इतना रस दिया... वो भी इतना मीठा... इतना मीठा कि जी करे चूसते ही रहें। लेकिन हाय रे सृजनहार ! उसमें भी फल लगाना भूल गए। अब आप ही कहिये, तना इतना मीठा है, काश उसमें फल भी लगता... वो कितना मीठा होता...?? गुलाब कितना सुन्दर, सुगन्धित और आकर्षक होता है। देखते ही दिल ऊपर वाले का धन्यवाद कर उठता है। पर इतने अच्छे फूल को दी भी तो क्या...? कांटो की सोहबत! चंपा को ऐसा राधावर्णी बनाया कि जो देखे बस देखता रह जाये। सुगंध भी ऐसा दिया कि योजन महक उठे। परन्तु इतने मारक सुगंध का भी क्या लाभ... जब पुष्पों के सबसे बड़े सौभाग्य भ्रमर-मंडन से ही वंचित रहना पड़े। केला के पौधा में ही फल और आम में इतनी बड़ी गुठली! अब जरा गुठलीरहित गूदेदार रसीले आमों की कल्पना कीजिये। ओहो...हो... ! आ गया न मुंह में पानी!!! बात सिर्फ पेड़-पौधों तक ही सिमित रहती तो भी चलता था।
स्थल के सबसे बड़े जीव गजराज की ही बात लीजिये। संरचना में वैज्ञानिक अनुपात का कोई ख्याल ही नहीं रहा। इतना विशाल देह और आँखें... ? तुर्रा दो छोटे-छोटे बटन डाल दिए हों। कान बना दिए सूप जैसे और नाक तो ऐसा बनाया कि धरती बुहारता रहे। मयूर के सतरंगी पंखों पर तो अपनी कलाकारी खूब बिखेरी लेकिन पैर बनाते वक़्त लगता है सो गए थे। खूबसूरत हिरन के सिर पर पेड़-पौधों की तरह सिंघ उगाने की क्या जरूरत थी? और उगाया भी तो किस काम का... ? बारह-बारह सिंघ लेकर भी बेचारा बारहसिंघा अपनी हिफाजत नहीं कर पाता। चपल पैरों के बावजूद उन्ही सिंघो के कारण बेचारा झारियों में उलझ कर मारा जाता है। ऊपर वाले की यह भूल-चूक पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों तक ही नहीं रुकी।
सहिष्णु, संवेदनशील और समझदार मनुष्य बनाया। पर उसके हृदय को भी दो कक्षों में बाँट दिया। अब एक तरफ गन्दा रक्त और एक तरफ साफ़। अब बताइये... हृदय में केवल साफ़ रक्त ही होता तो दिल में गन्दगी नहीं न आती ? अब पृथ्वी की आवादी इतनी बढ़ती जा रही है... और उन्होंने थोड़ी भी दूर-दर्शिता दिखाई होती तो इसके तीन-चौथाई भागों में पानी ही पानी क्यूँ होता ? बताइये... तीन चौथाई जल, एक चौथाई स्थल और उस स्थल पर भी भारत में मंहगाई की तरह बढ़ती आबादी!!
पृथ्वी को तो छोड़िये, सौदर्य के प्रतीक चाँद को भी नहीं छोड़ा इन्होने। इतना सुन्दर बना दिया कि कवि-शायर को अपनी नायिका के सौन्दर्य वर्णन के लिए इसे इतर कोई उपमा ही न सूझे लेकिन सर्जक को अपने निर्माण की सुन्दरता भी रास नहीं आयी। चन्द्रानन में भी दाग लगा दिया। ये सब देख कर तो बस यही गाने को मन करता है कि "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन मे समाई.... ?" और जब मैं यह सब बोलता हूँ तो लोग कहते हैं, 'आलोचक'। फिर भी कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, कि काश उन्हें भी मालूम होता, "निंदक नियरे राखिये....तब तो ऐसा नहीं होता न.... ! खैर ये मेरा ख्याल है... कभी-कभी ऐसे ही आते रहता है !
matlab aaj bhagwan ki class laga di hai.
जवाब देंहटाएंसहिष्णु, संवेदनशील और समझदार मनुष्य बनाया। पर उसके हृदय को भी दो कक्षों में बाँट दिया। अब एक तरफ गन्दा रक्त और एक तरफ साफ़। अब बताइये... हृदय में केवल साफ़ रक्त ही होता तो दिल में गन्दगी नहीं न आती ?
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है। व्यंग्य में प्रयुक्त प्रतीक व उपमाएं अच्छे हैं और सटीक भी।
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन मे समाई.... ?"
जवाब देंहटाएंआज तो पूरा ऑडिट हो गया लेकिन
सहिष्णु, संवेदनशील और समझदार मनुष्य बनाया। पर उसके हृदय को भी दो कक्षों में बाँट दिया। अब एक तरफ गन्दा रक्त और एक तरफ साफ़।
-मारक है!!
ऊपर वाले के नियम वो ही बनाता है वो ही बिगाड़ता है ............ अब उसने ऐसा किया तो कोई क्या करे .......
जवाब देंहटाएंआपका रोचक व्यंगात्मक शैली में लिखा लेख लाजवाब है ........
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए....
जवाब देंहटाएंमन को छू गये आपके भाव।
इससे ज्यादा और क्या कहूं।
बहुत कुछ चन्द शब्दों में व्यक्त किया, आभार ।
dhuaan prashnon ke ghere me jata hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए....
जवाब देंहटाएंएक अच्छा लेख । लेखक बधाई के पात्र हैं ।
जवाब देंहटाएंमन तो बहुत कुछ लिखने को कर रहा है । पर ज्यादा कुछ न कहते हुए यही कहूंगा- फुर्सत में लिखते रहें, आपके आगामी लेख का इंतजार रहेगा । आज की रचना बहुत अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंAachi rachna.Kai udharan dekar rachna me nikhar la diya hai aapne.
जवाब देंहटाएंaree raam badi aafat hai bhai! bechaare bhagwan apni defence mein kuch na keh sakte to unpe alligations lagate raho.ye bhi koi baat hui bhala. keshav ji sahi kiya bhagwan ne jo aapko saath na rakha warna unki naak me dum kar aate aap. khair koi nahi ye to prove kar di aapne ki galti insanon se hi nahi balki bhaggwaan se bhi hoti hai.keshav ur's this post is also really fab, fantabulous,mindboggling........ as ur previous ones. words r less 4 ur appreciation. keep on writing.(may god bless)
जवाब देंहटाएंकभी किसी को मुकअम्मल जहां नहीं मिलता
जवाब देंहटाएंकहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता...
जय हिंद...
क्या ज़रूरी है जो दिल में है, जुबां पर आए
जवाब देंहटाएंये ज़माना नहीं इतना भी खरा होने का।
इसमें एक सशक्त हास्य-व्यंग्य के अनेक लक्षण मौज़ूद हैं। आपके पास हास्य चित्रण की कला है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंइस रचना का सहज हास्य मन को गुदगुदा देता है।
जवाब देंहटाएंहाथी का तो पता नहीं, पर जिसने गणेश जी की परिकल्पना की होगी; वह विलक्षण कार्टूनिस्ट रहा होगा!
जवाब देंहटाएंKaran ji..kabi kabi he kyun ap humesa he apne dil aur dimag me aise he khayal late rahen aur humara manoranjan karte rahe...
जवाब देंहटाएंLikha to apne sahi hai lakn gun aur avgun to harek jiv-jantu me hona chaiye jisse santulan bana rahe ...Ab Bhagwan ne srishti ki rachna kuch soch samjh kar he kiya hoga...hai ki nai????????????
best creation !
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