-- करण समस्तीपुरी
हा...हा... हा... ! हा...हा...हा..हा... !! आ...हा..हा...हा... हा......... !!! अरे बाप रे बाप ! हा...हा...हा... !!!! बुध का सांझ हो गया । आप लोग भी देसिल बयना का इंतिजार कर रहे होंगे..... ! हा...हा... हा.... !! लेकिन का बताएं.... मारे हंसी के दम नहीं धरा जा रहा है। हा...हा...हा....!!! बड़का भैय्या कल्हे ससुराल से आये हैं। सांझ में ऐसन न किस्सा सुनाये कि हंसी रुकिए नहीं रहा है। हा...हा....हा....हा..... !!
पछिला हफ्ता बड़का भैय्या गए रहे ससुराल, अपने मझिला साला के बियाह में। आ..हा... हा.... भगवान सब का घर आवाद करें। भैय्या का साला बेचारा सोलहो सोमवारी का व्रत रखा था। तब जा के ई रिश्ता पक्का हुआ। फिर भी कौनो खोंखी-भांगठ न पड़े... सो बेचारा लगन निकलते ही सत्यनारायण भगवान का पूजा कबूल दिया.... "हे भगवान ! भले-भली हमरी 'लीलावती-कलावती' मिल जाएँ तो मधु-यामिनी से पहले ही पान-फूल और पांच खंड नैवेद लेके आपका पूजा करेंगे।" ई अंदेशा के बावजूदो बेचारा था बड़ा खुश। उछल-उछल कर जोरा-जामा-जूता बनवाया। जयपुरिया पगरी का औडर दिया...। आई-माई पौनी पसारी के साड़ी-धोती, न्योत-निमंत्रण से लेकर एंड-बैंड सब का जोगार.... बेचारा भूख प्यास भूल कर लगा रहा। जैसे-जैसे दिन नजदीक आ रहा था, बेचारे की ख़ुशी का पारावार उमरा जा रहा था। इसी ख़ुशी में गधा के सिंघ के तरह साला ऐसा गायब हुआ कि आज तक नजर नहीं आया।
खैर, भैय्या के मुंह से ही सही, बियाह का आँखों देखा हाल सुन कर हँसते-हँसते अभी भी पेट में बग्घा लग रहा है। भैय्या को तो पहिले अपना ससुराले खोजे में ढाई चक्कर लगाना पड़ा। ऊँह.... पचासनो आदमी लगा हुआ था पंडाल बांधे में। भैय्या झट से पाकिट से पुर्जी निकाल कर पता देखे... "अरे पता तो यही है। फिर हमरा ससुराल कहाँ चला गया... ई अगहन महीना कौन दुर्गा-पूजा के पंडाल में हम पहुँच गए...?" भैय्या अपने मन में ई बात कहिये रहे थे कि उधर से ससुरजी तम्बाकू पर चाटी मारते हुए निकले और व्यस्त हो गए मजदूरों को निर्देश देने में। भैय्या ससुरजी के पैर छुए तब जा कर उनकी नजर पड़ीं.... 'पाहून...!' फिर तो पाहून आये-पाहून आये का शोर मच गया। बड़का साला-छोटका साला... साली सभे तर-ऊपर बाहर निकल पड़े। बालकनी से सासूजी और खिड़की से सरहजें झाँकने लगी। एक खवास समान उठा कर अन्दर ले गया। पीछे भैय्या भी दरवाजे पर जा कर बैठे। चाह-पानी के साथ-साथ वर-बारात व्यवस्था-बात पर चर्चा चलने लगी।
लगन के घर में कहीं समय का पता चलता है। गीत-गाली, रंग-रहस करते-करते बियाहो का दिन आ गया। भैय्या का मझिला साला पीला धोती पहिने, कलाई पर आम का पत्ता बांधे दिन भर बेतार वाला फोन पर पता नहीं किस से कितना बतिया रहा था। बीच-बीच में ब्रेक लेकर उबटनों मलवा लेता था। दसे बजे दिन में बाजा वाला भी पहुँच गया। ढोलपुजाई हुआ और शुरू हो गया.... 'आज मेरे यार की शादी है....!' दिन भर ई विध, वो व्यवहार.... ये आये... वो निकले... सब व्यस्त। इधर घड़ी का कांटा दू पर गया और दूल्हा जी घुस गए बाथरूम में। पता नहीं.... नहा रहे थे कि दहा रहे थे। ऊ तो लोग-बाग़ बार-बार किवाड़ पीटे लगे तो बेचारा निकला। चारे बजे से जोरा-जामा पहन कर कुर्सी छेक लिया। सबको हरकाए लगा... जल्दी करो, सांझ हो गया, बारात निकलेगी। और बारात का... समझिये कि 'देखले कनिया देखले वर ! कोठी तर बिछौना कर !!' ई गली से निकल कर ऊ मोहल्ला में जाना था। लेकिन साले साहब को भरोसा कहाँ। खैर सुरुज ढलते ही बेचारे घोड़ी पर सवार हो गए। अब तो बारात निकलना मजबूरी ही था।
भैय्या बाराते तो एगो ऐसा मौका होता है कि जिसके पैर में जांता बंधा हो उहो दू बार कूद जरूर लेगा। सो दूल्हा लाख धर-फराए लेकिन बिना नाच के बारात कैसी। ई पांच मिनट के रास्ता नाच-गान के चक्कर में पांच कोस हो गया था। वो...... दूर से एगो और सजा सजाया पंडाल जैसे ही दिखा कि दूल्हा का बेगरता तो समझिये कि सौगुना बढ़ गया। अब शादी की घोड़ी तो अंग्रेजी बाजा के ताल पर ही चलेगी लेकिन दूल्हा का बेगरता इतना जोर कि लोग हाँ..हाँ... न करते तो बेचारा उतर के दौर पड़ता। फिर बाजा वाला 'आगे बाराती पीछे बैंड बाजा ....' वाला धुन बदल कर, 'जिमी....जिमी....जिमी... ! आजा...आजा...आजा... !!' लगा दिया तब जा के घोड़ी का कुछ स्पीड बढ़ा और दुल्हे राजा की उम्मीद।
जल्दी-जल्दी गल-सेंकाई हुआ। फटाक से महाराजजी मंडप में पहुंचे। दूल्हा के दू-चार दोस्त और भैय्या लोगों के लिए मंडप के पास ही बैठने की ख़ास व्यवस्था थी। संयोग देखिये कि पंडितोजी किराए वाले ही थे। बस, फास्ट-फॉरवार्ड बटन दबा दिए। फटाफट सारा विध-व्यवहार होते हुए नौ से बारह के शो की तरह बियाहो कम्प्लीट हो गया। कनिया की सखी-सहेली गीत-नाद गाती हुई, उन्हें लेके कोहबर के तरफ बढ़ चली।
दूल्हा वहीं खड़े दोस्तों से दू-चार बात किये। फिर पता नहीं क्या याद आया.... बेचारे दौड़ पड़े कोहबर के तरफ। जैसे ही करीब पहुंचे.... हल्ला हो गया..... 'जा...जा.... दूल्हा आ गया.... कैसा धर-फरिया दूल्हा है.... अभी विध बांकिये है ! जा..जा... !! आनन-फानन में कनियाँ की माँ बीच में रास्ता रोकते हुए बोली, "पाहून !! यहाँ कहाँ आ गए ? अरे, अभी यहाँ पर विध हो रहा है। आपको बुलाया जाता, तब आना चाहिए था न... !" कनिया की माँ बेचारे दुल्हे की बेगरता क्या समझे... उनको तो विध की पड़ीं थी। लेकिन सखी-सहेलियां कहाँ चूकने वाली। हंसी का सो पटखा फूटा और लगी दुल्हे राजा से मजाक करने, "बिना बुलाये कोहबर (सुहाग-कक्ष) धाये ! कनिया की माँ पूछी, आप कहाँ आये ??" हा..हा...हा.... !! इतना कहते-कहते भैय्या की भी हंसी नहीं रुकी ! हा...हा...हा.... !! महराज अब क्या बताएं, हम तो कल्ह सांझे से हँसते-हँसते बेदम हैं। हा...हा...हा... !
लेकिन देखिये, हंसिये-मजाक में एगो कहावत बन गया... "बिना बुलाये कोहबर धाये ! कनिया की माँ पूछी, आप कहाँ आये ?" आ ई कहावत में अर्थ भी छुपा हुआ है बड़ी चमत्कारी। मतलब कि 'रिश्ता चाहे जैसा भी हो, जितना भी ख़ास हो, लेकिन बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए। नहीं तो आपको भी खा-म-खा सुनना पड़ेगा, "बिना बुलाये कोहबर धाये ! कनिया की माँ पूछी, आप कहाँ आये ??" हा..हा...हा.... !! वैसे बिना पूछ-ताछ के अपने मन से सब जगह टपकने वाले भैय्या के साला की तरह ई सब तो सुनते ही रहते हैं। हा...हा...हा... !!
'रिश्ता चाहे जैसा भी हो, जितना भी ख़ास हो, लेकिन बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए। नहीं तो आपको भी खा-म-खा सुनना पड़ेगा...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने...
Phir pasand aaya apka desil bayana.
जवाब देंहटाएंPadkar maja aa gaya KARANJI.Dhanyawad.
जवाब देंहटाएंलोक कहावत पर बनी कथा आपको पसंद आयी, धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंउत्साह-वर्धन के लिए, आभार !!!
As usual..superb.....
जवाब देंहटाएंदसिल बयना की एक और उत्तम प्रस्तुति कथा के माध्यम से। बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदेसिल बयना का ये अंदाज तो हाय रेssss
जवाब देंहटाएंअपन गामक याद आबि गेल
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जवाब देंहटाएंबिना बुलाये कोहबर गए.
जवाब देंहटाएंby
Rajput status
Too Good Information Sir
जवाब देंहटाएंWhatsapp status video download
जवाब देंहटाएंDOWNLOAD WHATSAPP STATUS VIDEO
जवाब देंहटाएंGood information nice
जवाब देंहटाएंHello sir I am Vijay i will this is best information
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