मित्रों ! आज फिर गुरूवार है और सज गयी है हमारी चौपाल ! पाठकों के असीम प्यार और आग्रह के वशीभूत हम ने एक बार पुनः आमंत्रित किया है हमारे चौपाल के पुराने अतिथि कवि श्री परशुराम राय जी को !! इस ब्लॉग पर इनकी कविता को पहले भी पढ़ा एवं पसंद किया जा चुका है! पढ़िए श्री राय की एक और विचारोत्तेजक रचना !!
कुंठाओं से ग्रसित आज जग
स्वार्थ भँवर के घेरे में ।
बैठा है इतिहास मौन बन
विपदाओं के डेरे में।
किस दानव ने कर डाला है
मानवता का यज्ञ घ्वंस।
करती क्रंदन वसुधा अधीर
शव सागर निज लिए अंक।
बिक गए सुयोधन के हाथों
ये कृष्ण नयी कुछ शर्त लिए।
वह खोज रहा है अर्जुन को
अपने कर में गाण्डीव लिए।
खड़े चतुर्दिक देख रहे जन
नव करतब दुश्शासन का।
और द्रौपदी की चीत्कारें
हृदय फाड़ती हैं नभ का।
पता नहीं वह यक्ष कौन है?
जिसकी माया के बल से ।
मुर्दा बना भीम है लेटा ।
और युधिष्ठिर ठगे खड़े ।
*****
-- परशुराम राय
ओज रस का सुन्दर प्रवाह ! विचारों में आग लगाने वाली... सालंकारा सुपद्न्यासा कविता !! दुश्शासन.... के रूप में अपह्नुति अलंकार का अद्भुत चमत्कार.... पौराणिक प्रतीकों का एक बार फिर अभिनव प्रयोग!! साधु ! साधु !!!
जवाब देंहटाएंGood poem!!!
जवाब देंहटाएंPRATIKO KE MADHYAM SE SHRI RAI KI KAVITA SUNDAR BAN PADI HAI.PHIR SE EK ACHI KAVITA KE LIYE DHANYAWAD.
जवाब देंहटाएंऐसे प्रयोग मैंने बहुत कम कविताओ में देखे हैं । बहुत अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी और साफ सुथर कविता जो अपने अंदर अनेक भाव और अर्थ छिपाए हुए है।
जवाब देंहटाएंसच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंकुंठाओं से ग्रसित आज जग
जवाब देंहटाएंस्वार्थ भँवर के घेरे में ।
बैठा है इतिहास मौन बन
विपदाओं के डेरे में।
खड़े चतुर्दिक देख रहे जन
नव करतब दुश्शासन का।
और द्रौपदी की चीत्कारें
हृदय फाड़ती हैं नभ का।
बेहद सुन्दर रचना मनोज जी , आज की सच्चाई बयाँ करती !
मुझे एक टेक्नीकल त्रुटी नज़र आरही है--
जवाब देंहटाएंगांडीव केवल अर्जुन धारण कर सकते थे ,और किसी के हाथ में वह दिव्य ,मंत्रपूरित धनुष नहीं जा सकता था
कुछ शाश्वत सत्यों को व्यग्य में भी नहीं बदला जा सकता
आपकी इस कविता में सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंबिक गए सुयोधन के हाथों
जवाब देंहटाएंये कृष्ण नयी कुछ शर्त लिए।
वह खोज रहा है अर्जुन को
अपने कर में गाण्डीव लिए ....
सच है आज भारत भी चाहता है की कोई अर्जुन और कृष्ण आएँ और फिर से गांडीव टंकारें ......... बहुत ही उम्दा रचना है .....