--- --- मनोज कुमार
मैंने जब नई-नई नौकरी ज्वाइन की थी उस समय का एक वाकया याद आ रहा है। फैक्टरी में हमारे संगठन के चेयरमैन की विजिट थी। तब मैं सबसे निचले ओहदे का अधिकारी था और वे सबसे ऊंचे पद पर आसीन थे। जब फैक्टरी का दौरा चल रहा था तो मैने उन्हें कॉरीडोर में खड़े होकर अभिवादन किया। पर वे अन्य बड़े पदाधिकारियों के साथ बात-चीत करते हुए प्रस्थान कर गए। मेरी तरफ देखा तक नहीं। मैंने अपना जी छोटा नहीं किया। दूसरे अवसर को तलाशता रहा। हालांकि हम प्रशासन भवन में कार्यरत थे, पर उत्पादन अनुभाग के भी चक्कर-काट आए और एक बार जब वे क़रीब से गुजरे तो फिर उनका अभिवादन किया। पर प्रतिक्रया नदारद। मुझे पहले लगा काफी घमंडी है, फिर तुरंत ही मन ने सांत्वना दिया बड़े लोग काफी बीजी होते हैं। शायद न देख पाए हों।
मेरे पास अभी भी एक अवसर था। शाम को उनके सम्मान में क्लब में प्रीति भोज का आयोजन किया गया था। सारे अधिकारी आमंत्रित थे, मैं भी। पार्टी आठ बजे से ही तय थी। मैंने शादी के समय जो सूट-बूट डाला था, वही डालने का निश्चय किया। वह मेरा अब तक का बेस्ट ड्रेस था। अपने बेस्ट ड्रेस में अपने आपको सजाकर मैं आइने के सामने खड़ा हुआ। खुद को शाबाशी दी। फिर एक बड़े ही स्टाइल वाला अभिवादन का प्रैक्टिस किया। और फिर दूसरी बार खुद ही चेयरमैन बन कर उस अभिवादन का जवाब दिया। प्रसन्नता की लकीर मेरे पूरे चेहरे पर खिंच गई। खुद की पीठ ठोंका। क्लब में हाजिर हो गया। अभी साढ़े सात ही बजे थे।
यह सुन रखा था, बड़े अधिकारी अक्सरहां पार्टी-वार्टी में देर से ही आते हैं। पार्टी के पहले की उनकी तैयारी थोड़ी विस्तृत जो होती है। देर से ही सही, वो आए। इससे पहले कि उनकी निकटता का कोई चांस मारता, मेरी बदकिस्मती, वहां पर हमसे अधिक इफिशिएंट अफसरों की कमी नहीं थी। उनके सुरक्षा कवच में घिरे चेयरमैन साहब का पदापर्ण हुआ और हम उस अभेद्य श्रृंखला को भेद नहीं पाए। ..... पर मैंने भी हिम्मत नहीं हारी। मैदान-ए-अभिवादन में डटे रहे। मेरा हाथ बार-बार जुड़ता, हृदय तक आता, चेहरे पर मुस्कान निखरती, और फिर बुझे ट्यूब लाइट सा सब कुछ समाप्त हो जाता।
एक बार तो कुछ ठंढा गरम की पेशकश करने के बहाने से भी दौड़ा पर जब तक मैं लक्ष्य तक पहुँचता तब तक हमारे बौस ने, जो यूं तो रोज़ अपना सारा काम हमसे करवाते रहते थे, मेरे हाथ से ट्रे छीन कर मुझे इस अवसर से वंचित कर दिया।
डायनिंग टेबुल पर भी अवसर नहीं मिला। लंबी पंक्ति में मैं सबसे पीछे शिष्टाचारवश खड़ा था। हाथ धोते वक्त चार-चार सीनियर्स तौलिया के साथ हाजिर थे। डिनर के बाद पान-सौंफ चबाते जब वो हॉल से बाहर निकलने को तैयार हुए तब मैंने शतरंज खेल के घोड़े की चाल चली। उनके निकलने के पहले ही बाहर निकल कर दरवाजा खोले खड़ा था। और जब वो बाहर निकले तो मैं अपनी बत्तीसी बाहर कर दोनों हाथ जोड़कर अपने जीवन की सार्थकता उन्हें समर्पित कर रहा था।
सामने से हमारे महाप्रबंधक की लाल होती आखें मुझे घूर रही थी पर उस समय मैं उनकी परवाह क्यों करता। सामने अध्यक्ष महोदय का सिर मेरे अभिवादन के प्रत्युत्तर में 15 डिग्री झुका और चेहरे पर जो पहले से 100 प्रतिशत मुस्कुराहट थी, मेरा अभिवादन देखकर 15 प्रतिशत की मुस्कान में तबदील हो गई।
सब गुजर गए। मेरी दिन भर की साधना पूरी हो गई। मेरे अभिवादन के जवाब में उनकी इतनी बड़ी मुस्कुराहट से मैं अपने को धन्य मानकर आज अपने विभाग से अत्यंत ही जुड़ा हुआ महसूस कर रहा था। मेरे चेहरे और आंखों की चमक ऐसी थी मानों हजार-हजार वाट के बल्ब जल रहें हो। मेरा रोम रोम उर्जा से भर गया था। सच अपने से बड़ों का थोड़ा सा सानिध्य, थोड़ा सा प्रोत्साहन, थोड़ा सा आशीष छोटों के लिए कितनी बड़ी बात होती है। वह कितना हौसला आफजाई कर जाता है।
ब्लॉग जगत में भी तो ऐसा ही है। हालांकि मैं स्वयं ही एक नया-नया ब्लॉगर हूँ फिर भी तीन महीने तो होने ही को हैं। सौजन्य चिट्ठा जगत ई-मेल के इनबॉक्स के द्वारा कई नए ब्लागर्स से मेरी रोज़ ही मुलाकात होती है। मैं प्रायः सभी नए ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर जाता हूँ उनका स्वागत करने। क्यों कि मुझे अब भी अपने चेयरमैंन के एक आशीष को प्राप्त करने का संघर्ष याद है। मुझे याद है जिस दिन आज सक्रियता रैंक के टॉप के ब्लॉगर की उड़न तश्तरी मेरे ब्लॉग पर उतरी थी तो सारा दिन कूद-कूद कर मैं अपने सभी परिवारजनों और इस्टमित्रों को उनके कमेंट्स बार बार दिखा रहा था। सारी रात जाग कर नई नई रचनाएं लिख रहा था ताकि ये तश्तरी बार-बार तशरीफ लाएं।
मुझे मेरे ई-मेल के इनबॉक्स में सौजन्य चिट्ठा जगत नए बंलॉगर्स की सूचना के साथ हर रोज़ पहुंचती ये पंक्तियां काफी प्रेरित करती है.....
“आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नए लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है। एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
शुभकामनाएँ! - समीर लाल (उड़न तश्तरी)”
मैंने इससे प्रभावित हो कई लोगों को प्रेरित तो किया ही है हिंदी चिट्ठा लिखने के लिए। इस टिप्पणी पर इतना ही कहना चाहता हूं कि मैं चाहता हूं इन नए ब्लॉगर्स के लिए समय निकालूँ, --- मैं निकाल लेता हूँ । मैं इस आलेख के माध्यम से सीनियर ब्लॉगर्स, खास कर चिट्ठा जगत के सक्रियता के आधार पर टॉप 40 ब्लॉगर्स से निवेदन तो कर ही सकता हूँ कि आप भी नए ब्लॉगर्स को प्रोत्साहित करें। मार्गदर्शन करें, हौसला आफजाई करें। मैं अपने साथ हुए अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि आपके दो शब्द उनके लिए कितना प्रेरणा-दाई होगा। मुझे इस संक्षिप्त टिप्पणी ने कितना प्रेरित किया आप अनुमान नहीं लगा सकते। ...
Friday, 16 October, 2009
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत सुन्दर रचना!
साथ ही नए ब्लॉगर्स से भी अपील करता हूँ कि आप इनकी बातों को गंभीरता से ले एवं इनके द्वारा बताई गई कमियों को दूर करें, कम-से-कम प्रयास तो अवश्य ही करें।
जब मेरी किसी पोस्ट पर कोई प्रतिक्रया नहीं आती तो लगता है कि मेरा सृजन ही व्यर्थ है। एक नए ब्लॉगर के लिए यह कितना पीड़ादाई होता होगा, कितना हतोत्साहित करता होगा, सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है।
चिट्ठा जगत दिखाता है 12 हजार से ज्यादा की हिंदी ब्लॉगर्स संख्या और तब यदि किसी नए ब्लॉगर्स की टिप्पणी साथ मैं 0 comments लिखा देखता हूँ तो सही में बहुत दुख होता है कि 12 हजार से अधिक के सज्जन महिलाओं में किसी ने इस रचना को टिप्पणी देने लायक नहीं समझा।
क्या हिंदी ब्लॉग जगत में एक तरह की निष्क्रियता या उदासीनता है। सक्रियता है भी तो एक परिधि में, एक दायरे में, अपने आस-पास कुछ खास और बहुत खास के लिए। जरा इन नए ब्लॉगर्स की भी सोचें …. !!!!
बहुत ही भावुक विचार प्रवाह...
जवाब देंहटाएंरहिमन देखे बरेन को लघु न दीजिये डारि !
जहां काम आबे सुई कहाँ कराइ तरवारि !!
भावुक विचारों के साथ..... बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंमन में जो ठान लिया आपने वो कर दिखाया. ब्लागिंग में भी डटें रहें. हैप्पी हैप्पी ब्लागिंग.
जवाब देंहटाएंएक अच्छा लेख जो बहुत कुछ सिखाता है ।।
जवाब देंहटाएंलेख शानदार रहा । हां,एक और चीज़ कहावत है कि सब्र का फल हमेशा मीठा होता है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंमैं तो बहुत सक्रिय होकर टिप्पणियां किया करती थी .. फिलहाल बंद है .. जल्द शुरू करती हूं !!
जवाब देंहटाएंभैया आपकी सलाह काबिले गौर है। टिप्पणी पहली बार तो हो जायेगी काहे से मेल आती है। लेकिन उसके बाद तो लेखन ही सब कुछ होगा न! वैसे नये साथियों के लिये सबसे अच्छा सुझाव यह है वे जहां तहां मन आये टिपियाते रहें। लोग उनके यहां देखने अवश्य आयेंगे कि ये नये साथी कौन से हैं।
जवाब देंहटाएंअरे भैया! इतना बड़ा फॉंट और ऐसा रंगीन ! कुछ कीजिए प्रभु जी!
जवाब देंहटाएंहम तो नेट से संघर्ष करते भी टिपियाते रहते हैं। जे बात अलग है कि टॉप 40 में नहीं हैं :(
आप तो नवे नवे हो पुराने होने पर आज भी हमारे किसी न किसी पोस्ट पर ० टिप्पणी ही रहती है, पक्का इरादा करें और निरन्तरता रखें।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी मिले तो स्वागत है
जवाब देंहटाएंना मिले तो भी
स्वागत है
बस पाठक मिलें और मिलते रहें
यह प्रयास ज़रूर होना चाहिए..........
शुक्र है अपुन भी टॉप 40 में नहीं...लेकिन मनोज भैया जब पानी रफ्तार से आगे बढ़ता है तो बड़ी बड़ी चट्टानों को भी काट कर अपने लिए रास्ता निकाल लेता है...अनूप शुक्ल जी की बात से पूरी तरह सहमत...टिकेगा आखिर में लेखन ही...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बहुत सही बात आपने कही है । टिप्प्णी ही हम ब्लागरों की ऊर्जा है । मैं रोज ही नये ब्लागरों के ब्लाग पर जाता हूं ,उनका स्वागत करता हूं और उनसे अन्य ब्लागों पर जाकर टिप्पणी करने का अनुरोध भी करता हूं ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी ,
जवाब देंहटाएंआप बेफ़िक्र रहें जो चिंता जो बात जो आशंका आपने अपनी इस पोस्ट में जाहिर की है वो लगभग हर नए ब्लोग्गर ने शुरू शुरू में महसूस की है ..बांकी तो एक ही सच है कि ...आपका लिखा खुद ब खुद सब कुछ तय करेगा ....
ek salah ,aur saath hi dilchasp bhi ,jahan janne ko bahut kuchh mila ,umda post
जवाब देंहटाएंमनोज भाई सिर्फ़ लिखो ओर लिखो टिपण्णीयो के चक्कर मै मत पढो, जितनी आये उन्हे सलाम, लेकिन आप का ब्लांग तो लोग पढते है,बढते रहो आगे, हिम्मत मत हारो, हमारा प्यार ओर आशिर्वाद आप के संग है
जवाब देंहटाएंSir
जवाब देंहटाएंaaj aap chairman hai.....Appki post pad kar kabir yaad aaye...
Kabira Sangat sadhu ki, Jiyo Gandhi ka baas
Jo gandhi kachu deh naahi, to bhi baas subhaas...
Bade logo ka saath hi kafi hota hai..
aajakl ek bade hai.....sira gum hai unse baat cheet ka.. mil jayega jaldi maloom hai..
Khar timpny ka kia , log padte to hai hi..kai baar tinpni nahi kar paate.....
Iskeliye sorry....
रचना अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंहिन्दी चिट्टाजगत में, हम सब एक दूसरे को उत्साहित करते हैं। हां यह अवश्य है कि कुछ ज्याद त कुछ कम कर पाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना.... आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंaapki baat sau pratishat sahi hai ..aur blog ye jagah hai jahan par koi bhi duniyake kisi kone tak pahunch sakta hai ....
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प्रिय मनोज,
अच्छा आलेख,
पर साथ ही यह भी कहूंगा कि ब्लॉगिंग 'स्वान्त: सुखाय' माध्यम है अत: ईमानदारी से लिखो और टिप्पणियों या पोस्ट हिट की ज्यादा चिन्ता न करो... सुखी रहोगे!
Wakai fursat me likha aapka yeh leke shaandar hai. Aabhar.....
जवाब देंहटाएंलेख में रोचकता अंत तक देखने को मिलती है।
जवाब देंहटाएंअफसर के स्वागत के लिए इतना लंबा धैर्य और अंत में सफलता का खूबसूरत वर्णन है।
आपने बहुत रोचक रतीके से अपनी बात रखी है ...... और बहुत सार्थक लिखा है ..........
जवाब देंहटाएंsahee kaha hai aapne ! nirbhik kintu sabhya !!!
जवाब देंहटाएंVery true !!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंmain aapke vichaaron kaa aadar karte hue unse 100% sahmat hoon !!
जवाब देंहटाएंएक अच्छा लेख
जवाब देंहटाएंसही पोस्ट! इस दौर से सभी गुजरते हैं - टिप्पणी की आशा में!
जवाब देंहटाएंचिंतनीय... प्रशंसनीय...
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
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