तुम हो सीता तुम्हीं भारती हो !
कैसे अपने कलेजे को खुद ही,
इतनी बेदर्द हो मारती हो !!
नमस्कार मित्रों ! अब हम आपको मिलवाने जा रहे हैं चौपाल के नए अतिथि से ! बनारस की रसमयी धरती के सपूत श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ समकालीन कविता में एक अमूल्य हस्ताक्षर के रूप में उभरे हैं। जन्म से भारतीय, शिक्षा से अभियंता, रोजगार से उद्यमी और स्वभाव से कवि, श्री मर्मज्ञ अपेक्षाकृत कम हिन्दीभाषी क्षेत्र बेंगलूर में हिंदी के प्रचार-प्रासार और विकास के साथ स्थानीय भाषा के साथ समन्वय के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। लगभग एक दशक से हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की शोभा बढ़ा रहे ज्ञानचंद जी की अभी तक एक मात्र प्रकाशित पुस्तक "मिट्टी की पलकें" ने तो श्रीमान को सम्मान और पुरस्कार का पर्याय ही बना दिया। श्री मर्मज्ञ के मुकुट-मणी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी शलाका सम्मानजैसे नगीने भी शामिल हैं। आज के चौपाल में प्रस्तुत है 'मिटटी की पलकें' में संकलित इनकी महान मर्मस्पर्शी रचना, भ्रूण-हत्या !! मित्रों ! मर्मज्ञ जी जितने संवेदनशील कवि हैं उतने ही सहृदय सज्जन ! आप चाहें तो +91 98453 20295 पर कविवर से वार्तालाप भी कर सकते हैं !!!
चंद टुकड़ों मे घायल पड़ीं हूँ,
अनकही दास्ताँ की कड़ी हूँ !
तेरी आँखों से जो बह न पाई,
आसुओं की मैं ऐसी लड़ी हूँ !!
खून के ख्वाब कल रात देखे,
देखना मैं कहीं डर न जाऊं !
तेज खंजर चलाना ना मुझ पर,
माँ तुम्हारी कसम मर ना जाऊं !!
हो गया तन बदन टुकड़े-टुकड़े,
एक मन दो नयन टुकड़े-टुकड़े !
दिल था छोटा धड़कनें थीं छोटी,
छोटे-छोटे सपन टुकड़े-टुकड़े !!
बन न पायी थी आखें हमारी,
बन न पायी थी आँखों की पलकें !
दिल तो रोया बहुत चुपके-चुपके,
पर निगाहों से आंसू न छलके !!
होंठ नाजुक गुलाबी-गुलाबी,
देर थी बस जरा खोलने की !
हो सकी ना तमन्ना ये पूरी,
रह गयी प्यास 'माँ' बोलने की !!
पास मेरे नहीं हैं वो बाँहें,
रोकने का तुम्हे काम लेती !
इन उँगलियों मे ताक़त नहीं है,
वरना आँचल तेरा थाम लेती !!
मेरे हिस्से का अमृत पड़ा है,
दूध के दर्द का क्या करोगी ?
अपनी ममता की खाली निगाहें,
कौन से आंसुओं से भरोगी ??
पैदा होते ही मुझको कई बार,
रेत में गाड़ देते हैं अपने !
फ़ेंक देते हैं बेदर्द हो कर,
झील में मेरे संग मेरे सपने !!
जिसकी साँसों ने साँसे संवारी,
फर्क साँसों मे करने लगी है !
कैसे कर लूँ यकीन इस जहां में,
माँ भी पत्थर की बनने लगी है !!
खून का खून सब कर रहे हैं,
कैसी रिश्तों की मजबूरियाँ हैं !
सौंप दी फूल सी बेटियों को,
जिनके हाथों में बस छूरियाँ हैं !!
दुनिया वालों वो तूफ़ान देखो,
किस दिए को बचाने चले हो !
बिन धरा का ये आकाश लेकर,
कैसी दुनिया बसाने चले हो !!
-- ज्ञानचंद 'मर्मज्ञ'
ज्ञानचंद जी बधाई के पात्र हैं। हमें संदेश देती बहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना। कवि महोदय को बधाई।
जवाब देंहटाएंआपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है। रचना मर्मस्पर्शी है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंAdarniya Manoj sahab ne bilkul sahi kaha hai.
जवाब देंहटाएंRachna sundar,saral aur marmsparshi hai. Dhanyawad.
Is rachnaane rula diya!
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक और मार्मिक रचना है।
जवाब देंहटाएंvery emotional poem...
जवाब देंहटाएंहृदयभेदी रचना... एक-एक शब्द एक अनकही व्यथा को कहता हुआ... ! इस मंच पर श्री ज्ञानचंद 'मर्मज्ञ' का आभिनंदन एवं इतनी मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई !! उम्मीद है, आपका यह सहयोग बना रहेगा !!!
जवाब देंहटाएंपाठक एवं ब्लोगर वृन्द, इस ब्लॉग पर श्री ज्ञान जी के स्वागत में मेरे साथ आयें !!
bahut hi hridaybhedi aur marmik rachna.
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंइस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।
जवाब देंहटाएंदुनिया वालों वो तूफ़ान देखो,
जवाब देंहटाएंकिस दिए को बचाने चले हो !
बिन धरा का ये आकाश लेकर,
कैसी दुनिया बसाने चले हो !!
मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई !!
मन को छू जाने वाले भाव। बधाई।
जवाब देंहटाएं------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
तुम हो पूजा तुम्हीं आरती हो,
जवाब देंहटाएंतुम हो सीता तुम्हीं भारती हो !
कैसे अपने कलेजे को खुद ही,
इतनी बेदर्द हो मारती हो !!
संदेश देती बहुत अच्छी रचना ।
bahut achchhi rachana
जवाब देंहटाएंI can't just break my tears after reading the potential poem.
जवाब देंहटाएंबन न पायी थी आखें हमारी,
जवाब देंहटाएंबन न पायी थी आँखों की पलकें !
दिल तो रोया बहुत चुपके-चुपके,
पर निगाहों से आंसू न छलके .....
मार्मिक ... शशक्त ......... विलक्षण रचना ...... बहुत कमाल के शब्द लिखे हैं .......... प्रणाम है मेरा इनकी लेखनी को .........
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