ये मेरा जीवन एकाकी।
नित - नित नूतन रूप तुम्हारा, देखूं मैं तो हारा - हारा।
कभी उर्वशी, कभी मेनका, लगो परी तुम इन्द्र सभा की।
ये मेरा जीवन एकाकी।
डालो एक नज़र है काफी, अंतिम सफ़र अभी भी बाक़ी।
मैं पीऊं तुम मुझे पिलाओ, पल भर को बन जाओ साक़ी।
ये मेरा जीवन एकाकी।
कहने को अधराधर तरसे, वही बात आंखों से बरसे।
गहन वेदना से भारी मन, लेकर आया बूंद घटा की।
ये मेरा जीवन एकाकी।
नियति जाल में उलझ-उलझ कर,अस्त हुआ ख़ुशियों का दिनकर।
संध्या के इस क्रंदन में है, कहां छुपी मुसकान उषा की।
ये मेरा जीवन एकाकी।
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मनोज कुमार जी रचना अच्छी लगी, बहुत आभार प्रस्तुत करने का.
जवाब देंहटाएंलिखते और पढ़ते रहिएगा..,मेरी शुभकामनाएँ..
जवाब देंहटाएंये मेरा जीवन एकाकी।
जवाब देंहटाएंनित - नित नूतन रूप तुम्हारा, देखूं मैं तो हारा - हारा।
कभी उर्वशी, कभी मेनका, लगो परी तुम इन्द्र सभा की।
वाह क्या बात है जी, बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी है आपके प्रेम की पुकार
जवाब देंहटाएंGood Poem
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंक्लासिकल अंदाज में आपनी बात खूब कही है :-
नियति जाल में उलझ-उलझ कर,अस्त हुआ ख़ुशियों का दिनकर।
संध्या के इस क्रंदन में है, कहां छुपी मुसकान उषा की।
सच है नियति जो ना कराये वो.....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कहने को अधराधर तरसे, वही बात आंखों से बरसे।
जवाब देंहटाएंगहन वेदना से भारी मन, लेकर आया बूंद घटा की।
ये मेरा जीवन एकाकी।
नियति जाल में उलझ-उलझ कर,अस्त हुआ ख़ुशियों का दिनकर।
संध्या के इस क्रंदन में है, कहां छुपी मुसकान उषा की।
ये मेरा जीवन एकाकी।
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भावों को क्या उकेरा है आपने. विशुद्ध काव्य के अंदाज में बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
निर्मल, निश्छल, सरस पद्य !
जवाब देंहटाएंBahot he achi rachna
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंBAHUT DINO KE BAAD IS TARAH KI KAVITA PADNE KO MILI. LAAJAJAB.
जवाब देंहटाएंकवि महोदय,इस सुंदर रचना को पेश करने के लिए आपको थैंक्स । कविता मन को छू गई ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंbahut saras achana,aapka abhar.
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